इलेक्ट्रिक करेंट का मैग्नेटिक इफेक्ट
किसी सर्कुलर लूप से करेंट के कारण मैग्नेटिक फील्ड
एक सर्कुलर लूप और कुछ नहीं है बल्कि एक सीधे कंडक्टर को लूप की शक्ल में मोड़ा गया है। इसलिये सर्कुलर लूप पर भी राइट हैंड थम्ब रूल ही लागू होगा। हम जानते हैं कि जब हम कंडक्टर से दूर जाते हैं तो मैग्नेटिक लाइन भी एक दूसरे से दूर हो जाती हैं। इसलिये जब हम लूप के सेंटर की तरफ जाते हैं तो फील्ड लाइन सीधी दिखने लगती हैं। लूप के हर पार्ट में फील्ड लाइन की दिशा समान होती है।
आपने यह भी पढ़ा होगा कि मैग्नेटिक फील्ड की प्रबलता करेंट की मात्रा के सीधे अनुपात में होती है। लूप में तार के फेरों की संख्या बढ़ाने से करेंट बढ़ जाता है। इसलिये तार के फेरों की संख्या बढ़ाने से मैग्नेटिक फील्ड और भी प्रबल हो जाता है।
सोलेनॉयड से करेंट के कारण मैग्नेटिक फील्ड
सोलेनॉयड: एक सोलेनॉयड में एक सर्कुलर सिलिंडर के चारों ओर कॉपर का इंसुलेटेड तार लपेटा हुआ रहता है।
सोलेनॉयड से करेंट के कारण बनने वाली मैग्नेटिक फील्ड का व्यवहार वैसा ही होगा जैसा किसी सर्कुलर लूप के केस में होता है। सोलेनॉयड का एक सिरा नॉर्थ पोल की तरह काम करता है, और दूसरा सिरा साउथ पोल की तरह काम करता है। सोलेनॉयड के भीतर फील्ड लाइन समानांतर होती हैं। इसका मतलब यह है कि सोलेनॉयड के भीतर मैगनेटिक फील्ड यूनिफॉर्म रहता है।
सोलेनॉयड का इस्तेमाल मजबूत टेम्पररी मैग्नेट बनाने में होता है। सोलेनॉयड के भीतर एक सॉफ्ट आयरन के कोर को रखने से ऐसा मैग्नेट बनता है। इस तरह के मैग्नेट को इलेक्ट्रोमैग्नेट कहते हैं।
किसी मैग्नेटिक फील्ड में कंडक्टर पर लगने वाला बल
अब तक आपने पढ़ा कि जब किसी कंडक्टर से करेंट फ्लो करता है तो इससे उसके पास रखे मैग्नेट पर एक फोर्स लगता है। इसका उलटा भी सच होता है। जब किसी मैग्नेट की मैग्नेटिक फील्ड में कोई करेंट कैरीइंग कंडक्टर रखा जाता है तो मैग्नेट द्वारा कंडक्टर पर भी एक फोर्स लगता है। इसका पता सबसे पहले आंद्रे मैरी एम्पियर (1775 – 1836) ने लगाया था।
जब एक मैग्नेटिक फील्ड में किसी कंडक्टर को रखा जाता तो कंडक्टर से करेंट फ्लो करने पर कंडक्टर में डिसप्लेसमेंट होता है। जब कंडक्टर में करेंट की दिशा बदली जाती है तो कंडक्टर के डिसप्लेसमेंट की दिशा भी बदल जाती है। उसी तरह, जब मैग्नेटिक फील्ड की दिशा बदली जाती है तो कंडक्टर के डिसप्लेसमेंट की दिशा भी बदल जाती है। किसी करेंट कैरीइंग कंडक्टर पर मैग्नेटिक फील्ड के प्रभाव को फ्लेमिंग के लेफ़्ट हैंड थम्ब रूल से समझाया जा सकता है।
फ्लेमिंग का लेफ्ट हैंड थम्ब रूल: अपने लेफ्ट हैंड को इस तरह से रखिए कि अंगूठा, इंडेक्स फिंगर और मिडल फिंगर एक दूसरे से राइट एंगल पर हों। ऐसी स्थिति में तीनों अंगुलियाँ तीन परपेंडिकुलर प्लेन को दिखाती हैं। यदि मिडल फिंगर करेंट की दिशा को दिखाती है, और इंडेक्स फिंगर मैग्नेटिक फील्ड की दिशा को; तो कंडक्टर पर काम करने वाले फोर्स की दिशा को अंगूठा दिखाता है। इसका मतलब है कि कंडक्टर उस दिशा में डिफ्लेक्ट करेगा जिस दिशा में अंगूठा है।