मानव नेत्र और रंगबिरंगा संसार
आप क्या सीखेंगे
- मानव नेत्र की रचना और कार्य
- दृष्टि दोष और उनके निवारण
- प्रिज्म से होकर लाइट का रिफ्रैक्शन और डिस्पर्सन
- लाइट के रिफ्रैक्शन और डिस्पर्सन के कारण होने वाली कुछ प्राकृतिक घटनाएँ
मानव नेत्र
हमारी आँखें हमारे पाँच सेंस ऑर्गन में से एक हैं। आँखों के कारण ही हम अपने आस पास का रंगबिरंगा संसार देख पाते हैं। आँख का आकार एक स्फेरिकल बॉल की तरह होता है जिसका व्यास 2.3 सेमी रहता है। इसमें निम्नलिखित रचनाएँ होती हैं।
कॉर्निया: आँख के आगे वाली सबसे बाहरी सतह को कॉर्निया कहते हैं। आँख के पीछे वाली सतह को स्क्लेरा कहते हैं। कॉर्निया सफेद रंग का दिखता है लेकिन यह ट्रांसपैरेंट होता है। इससे आइरिस और प्युपिल ढ़का रहता है। कॉर्निया तक ब्लड की सप्लाई नहीं जाती है। इसे हवा से जरूरी ऑक्सीजन मिलता है।
आइरिस: यह एक गहरे रंग का मस्कुलर डायफ्राम है। यह प्युपिल के आकार को कंट्रोल करता है। प्युपिल का आकार बदलने से आँख के भीतर पहुँचने वाले प्रकाश की मात्रा कंट्रोल होती है। तेज रोशनी में प्युपिल सिकुड़ जाता है जिससे आँख के भीतर कम लाइट पहुँचती है। कम रोशनी में प्युपिल फैल जाता है जिससे आँख के भीतर अधिक लाइट पहुँचती है। किसी व्यक्ति की आँख का खास रंग आइरिस के रंग के कारण होता है।
आपने गौर किया होगा कि जब अप तेज रोशनी वाली जगह से किसी कम रोशनी वाले कमरे में जाते हैं तो कुछ देर तक आपको कुछ भी दिखाई नहीं देता है। ऐसा इसलिये होता है कि प्युपिल को बदली हुई रोशनी में एडजस्ट करने में थोड़ा समय लगता है। ऐसा तब भी होता है जब आप किसी कम रोशनी वाली जगह से किसी तेज रोशनी वाली जगह में जाते हैं।
लेंस: यह एक क्रिस्टल जैसी रचना होती है जो एक बाइकॉन्केव लेंस की तरह होती है। लेंस से रेटिना पर इमेज को फोकस करने में मदद मिलती है। सिलियरी मसल द्वारा लेंस के साइज को कंट्रोल किया जाता है।
रेटिना: यह आँख की सबसे अंदर की सतह होती है। रेटिना एक स्क्रीन की तरह काम करता है जिसपर इमेज बनता है। रेटिना में फोटोसेंसिटिव सेल होते हैं जिनमें रॉड सेल और कोन सेल होते हैं। फोटोसेंसिटिव सेल न्यूरॉन से जुड़े होते हैं, और वो सभी न्यूरॉन ऑप्टिक नर्व से जुड़े रहते हैं।
मानव नेत्र के काम करने की विधि: आँख में पहुँचने वाली लाइट की किरणों का रिफ्रैक्शन कॉर्निया और लेंस द्वारा होता है। उसके बाद लाइट रे को रेटिना पर फोकस किया जाता है जिससे रेटिना पर रियल और उलटा इमेज बनता है। रेटिना के फोटोसेंसिटिव सेल इलेक्ट्रिक सिग्नल पैदा करते हैं। ये सिग्नल ऑप्टिक नर्व द्वारा ब्रेन तक भेज दिये जाते हैं। ब्रेन इन सिग्नल को प्रॉसेस करता है और हम फिर किसी चीज को देख पाते हैं।
पावर ऑफ एकोमोडेशन
हमारी आँखें नजदीक और दूर की चीजों को बड़ी आसानी से देख लेती हैं। आँखों की इस क्षमता को पावर ऑफ एकोमोडेशन कहते हैं। साफ दृष्टि के लिये मिनिमम दूरी 25 सेमी होती है। इसका मतलब यह है कि 25 सेमी से कम दूरी की चीजों को हम साफ साफ नहीं देख पाते हैं। साफ दृष्टि के लिये मैक्सिमम दूरी इनफिनिटी होती है।
दूर के ऑब्जेक्ट पर फोकस करना: जब आँख को दूर के ऑब्जेक्ट पर फोकस करना होता है तो सिलियरी मसल फैल जाते हैं। इससे लेंस पतला हो जाता है और उसका फोकल लेंथ बढ़ जाता है। दूसरे शब्दों में; लेंस का कर्वेचर बढ़ जाता है जिससे फोकल लेंथ बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप हम दूर की चीजों को साफ साफ देख पाते हैं।
नजदीक के ऑब्जेक्ट पर फोकस करना: जब आँख को नजदीक के ऑब्जेक्ट पर फोकस करना होता है तो सिलियरी मसल सिकुड़ जाते हैं। इससे लेंस मोटा हो जाता है और उसका फोकल लेंथ घट जाता है। दूसरे शब्दों में लेंस का कर्वेचर घट जाता है जिससे फोकल लेंथ घट जाता है।
फील्ड ऑफ विजन और स्टीरियोऑप्सिस: एक आँख का फील्ड ऑफ विजन 150° होता है। दोनों आँखों से फील्ड ऑफ विजन 180° होता है। कुछ जानवरों में आँखें सिर के विपरीत साइड पर होती हैं। इससे इन जानवरों का फील्ड ऑफ विजन अधिक होता है। लेकिन हमारी आँखें सिर के सामने की ओर होती हैं जिससे स्टीरियोऑप्सिस में मदद मिलती है। तीन डाइमेंशन को समझने की क्षमता को स्टीरियोऑप्सिस कहते हैं। बाइनोकुलर विजन के कारण मनुष्य की आँखों में गहराई का सेंस सबसे अधिक विकसित होता है। दोनों आँखों का लोकेशन अलग होने के कारण अलग-अलग आँखों में अलग-अलग इमेज बनते हैं। दोनों आँखों में बने इमेज को ब्रेन कम्बाइन कर देता है जिससे हमें गहराई का अंदाजा मिलता है।