नियंत्रण और समंवय
आप क्या सीखेंगे:
- नर्वस सिस्टम, रिफ्लेक्स ऐक्शन और मानव मस्तिष्क की संरचना
- नर्वस टिशू का काम
- प्लांट में को-ऑर्डिनेशन, ट्रॉपिक और नैस्टिक मूवमेंट।
- मानव एंडोक्राइन सिस्टम और हॉर्मोन
जंतुओं में नर्वस सिस्टम
पिछले लेसन में आपने पढ़ा कि किसी भी सजीव के शरीर में कई तरह के मूवमेंट होते रहते हैं। इन मूवमेंट की उपस्थिति से ये पता चलता है कि किसी जीव में जान है। ये अलग बात है कि इनमें से अधिकांश मूवमेंट को हमारी आँखें देख नहीं पाती हैं। कोई भी जीव सही ढंग से काम करे इसके लिये सजीव में होने वाले विभिन्न मूवमेंट को सही तरीके से कंट्रोल करना और को-ऑर्डिनेट करना जरूरी होता है। इसे समझने के लिये चलने जैसी क्रिया को लेते हैं जो हमारे लिये एक साधारण काम जैसा लगता है। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि चलने के लिये भी शरीर के कई अंगों में उचित को-ऑर्डिनेशन जरूरी होता है। अगर ऐसा नहीं होगा तो हम ठीक से चल नहीं पाएँगे और गिर जाएँगे। जटिल जंतुओं में नर्वस सिस्टम और एंडोक्राइन सिस्टम मिलकर कंट्रोल और को-ऑर्डिनेशन का काम करते हैं।
मानव शरीर के नर्वस सिस्टम के दो मुख्य भाग होते हैं:
(a) सेंट्रल नर्वस सिस्टम: यह ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड से मिलकर बना हुआ है।
(b) पेरिफेरल नर्वस सिस्टम: यह पेरिफेरल नर्व्स से मिलकर बना हुआ है। पेरिफेरल नर्व दो प्रकार के हैं; क्रेनियल नर्व और स्पाइनल नर्व। क्रेनियल नर्व सीधे ब्रेन से निकलते हैं, जबकि स्पाइनल नर्व स्पाइनल कॉर्ड से निकलते हैं।
न्यूरॉन
नर्वस सिस्टम का फंक्शनल यूनिट होता है न्यूरॉन। न्यूरॉन में एक सेल बॉडी और एक टेल (दुम) होती है। सेल बॉडी को साइटॉन कहते हैं। साइटॉन पर कई बालों जैसी रचनाएँ होती हैं; जिन्हें डेंड्राइट कहते हैं। दुम या एक्झॉन के ऊपर मायेलिन शीथ की परत होती है जो नर्व इम्पल्स से इंसुलेशन प्रदान करती है। दुम की छोर पर नर्व एंडिंग होते हैं। न्यूरॉन अपने डेंड्राइट वाले सिरे से सिग्नल रिसीव करता है और दुम वाले सिरे से सिग्नल भेजता है।
डेंड्राइट आने वाले इलेक्ट्रिकल इंपल्स को पकड़ते हैं। फिर ये इंपल्स साइटॉन और एक्झॉन से होते हुए एक्झॉन के आखिर में लगे नर्व एंडिंग तक पहुँचते हैं। जब इलेक्ट्रिकल इंपल्स दुम के आखिर तक पहुँचता है तो दुम से न्यूरोट्रांसमिटर निकलने लगते हैं। न्यूरोट्रांसमिटर एक खास तरह के केमिकल होते हैं जो नर्व इंपल्स को अगले न्यूरॉन तक या टार्गेट ऑर्गन तक ले जाते हैं। दो न्यूरॉन के बीच के गैप को साइनैप्स कहते हैं। न्यूरोट्रांसमिटर इस साइनैप्स से गुजरते हैं और अगले न्यूरॉन के डेंड्राइट द्वारा पकड़ लिये जाते हैं। इस तरह से नर्व इंपल्स एक न्यूरॉन से अगले न्यूरॉन; और फिर उसके अगले न्यूरॉन तक जाते रहते हैं।
जब कोई नर्व सिग्नल किसी मसल तक पहुँचता है, तो मसल की कोशिकाओं में आयनों का आदान प्रदान होता है। मसल की कोशिकाओं में कैल्सियम आयन के पहुँचने से मसल सिकुड़ता है। जब मसल की कोशिकाओं से कैल्सियम आयन निकलता है तो मसल फैलता है।
रिफ्लेक्स ऐक्शन
किसी वॉल्युंटरी अंग में किसी स्टिमुलस के कारण अचानक होने वाले इनवॉल्युंटरी ऐक्शन को रिफ्लेक्स ऐक्शन कहते हैं। जब आपका हाथ गलती से किसी गर्म तवे पर पड़ जाता है तो आप झटके से अपने हाथ को तवे से दूर खींचते हैं। यह रिफ्लेक्स ऐक्शन का बहुत अच्छा उदाहरण है। किसी रोचक चीज को देखने पर पुतलियों का फैलना भी रिफ्लेक्स ऐक्शन का उदाहरण है।
रिफ्लेक्स आर्क: जिस पाथवे से रिफ्लेक्स ऐक्शन की पूरी प्रक्रिया संपन्न होती है उसे रिफ्लेक्स आर्क कहते हैं। रिफ्लेक्स आर्क में रिसेप्टर, सेंसरी न्यूरॉन, स्पाइनल कॉर्ड, रीले न्यूरॉन, मोटर न्यूरॉन और इफेक्टर शामिल होते हैं। रिसेप्टर का काम है किसी अचानक से हुए स्टिमुलस से सिग्नल पकड़ना। यह सिग्नल फिर सेंसरी न्यूरॉन की सहायता से स्पाइनल कॉर्ड तक भेजा जाता है। स्पाइनल कॉर्ड इस सिग्नल का मतलब निकालता है और फिर जरूरी सिग्नल रीले न्यूरॉन को देता है। फिर रीले न्यूरॉन उस सिग्नल को मोटर न्यूरॉन की सहायता से इफेक्टर तक भेजता है। सिग्नल मिलते ही इफेक्टर (जो कि एक मसल है) हरकत में आता है और स्टिमुलस के प्रभाव में आये अंग में जरूरत के मुताबिक मूवमेंट होती है।
यह याद रखना जरूरी है कि रिफ्लेक्स ऐक्शन से जुड़ी हुई सभी सूचना को स्पाइनल कॉर्ड के लेवेल पर ही सुलझाया जाता है और इसमें ब्रेन की कोई सीधी भूमिका नहीं होती है। इससे ब्रेन तक सिग्नल भेजने और वहाँ से सिग्नल प्राप्त करने में लगने वाले समय की बचत होती है। ऐसा किसी भी खतरनाक स्थिति से निकलने के लिये जरूरी होता है।