प्रकाश: परावर्तन और अपवर्तन
आप क्या सीखेंगे:
- लाइट का रिफ्लेक्शन
- स्फेरिकल मिरर में इमेज के लिये रे डायग्राम
- स्फेरिकल मिरर और लेंस के लिये कार्टेजियन साइन कन्वेंशन
- चौकोर ग्लास स्लैब से लाइट का रिफ्रैक्शन
- लेंस में इमेज के लिये रे डायग्राम
- मिरर फॉर्मूला और लेंस फॉर्मूला
लाइट: प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जिसके कारण हम अपने आस पास की दुनिया को देख पाते हैं। लाइट एक सीधी रेखा में चलती है लेकिन लाइट के डिफ्रैक्शन में यह नियम फेल कर जाता है। जब लाइट के रास्ते में कोई छोटी बाधा आती है तो यह अपने रास्ते से मुड़ जाती है। वैज्ञानिकों में लाइट के सही नेचर को लेकर काफी बहस होती है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि लाइट किसी पार्टिकल की तरह बर्ताव करता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि लाइट किसी वेव की तरह बर्ताव करता है। अभी तक की सबसे मान्य थ्योरी के अनुसार लाइट एक पार्टिकल है जिसमें वेव जैसे गुण होते हैं। इस लेसन में दी गई बातें लाइट के सीधी रेखा में चलने के आधार पर की गई हैं।
लाइट का रिफ्लेक्शन
रिफ्लेक्शन: जब लाइट की एक रे किसी चमकदार सतह पर पड़ती है तो यह वापस मुड़ जाती है। इसे लाइट का रिफ्लेक्शन कहते हैं।
लाइट के रिफ्लेक्शन के नियम:
- रिफ्लेक्शन का एंगल इंसिडेंस के एंगल के बराबर होता है।
- इंसिडेंट रे, रिफ्लेक्टेड रे और इंसिडेंस के प्वाइंट पर का नॉर्मल; ये सभी एक ही प्लेन में होते हैं।
प्लेन मिरर में इमेज का नेचर: प्लेन मिरर में बनने वाला इमेज वर्चुअल, सीधा और लैटेरली इनवर्टेड होता है। इमेज डिस्टांस और ऑब्जेक्ट डिस्टांस बराबर होते हैं।
स्फेरिकल मिरर
जो मिरर किसी गोले का पार्ट होता है उसे स्फेरिकल मिरर या गोलीय दर्पण कहते हैं। स्फेरिकल मिरर दो प्रकार के होते हैं; कॉन्केव मिरर (अवतल दर्पण) और कॉन्वेक्स मिरर (उत्तल दर्पण)।
कॉन्केव मिरर: जब स्फेरिकल मिरर का रिफ्लेक्टिंग सरफेस गोले के अंदर होता है तो इसे कॉन्केव मिरर कहते हैं।
कॉन्वेक्स मिरर: जब स्फेरिकल मिरर का रिफ्लेक्टिंग सरफेस गोले के बाहर होता है तो इसे कॉन्वेक्स मिरर कहते हैं।
मिरर का पोल: रिफ्लेक्टिंग सरफेस के सेंटर को मिरर का पोल कहते हैं। पोल को अंग्रेजी के अक्षर ‘P’ से दिखाया जाता है।
कर्वेचर का सेंटर: जिस गोले से मिरर बना है उस गोले के सेंटर को कर्वेचर का सेंटर कहते हैं। कर्वेचर के सेंटर को अंग्रेजी के अक्षर ‘C’ से दिखाया जाता है।
कर्वेचर का रेडियस: P और C के बीच की दूरी को कर्वेचर का रेडियस कहते हैं। दूसरे शब्दों में; जिस गोले से मिरर बना है उसे गोले के रेडियस को कर्वेचर का रेडियस कहते हैं। इसे अंग्रेजी के अक्षर ‘R’ से दिखाया जाता है।
प्रिंसिपल एक्सिस: C और P से गुजरने वाली सीधी लाइन को प्रिंसिपल एक्सिस कहते हैं। प्रिंसिपल एक्सिस पोल के नॉर्मल (लंबवत) होता है।
फोकस: प्रिंसिपल एक्सिस के पैरेलल आने वाली सारी लाइट रे एक कॉन्केव मिरर से रिफ्लेक्ट होने के बाद एक प्वाइंट पर कंवर्ज होती हैं। इसी प्वाइंट को कॉन्केव मिरर का फोकस कहते हैं। प्रिंसिपल एक्सिस के पैरेलल आने वाली सारी लाइट रे एक कॉन्वेक्स मिरर से रिफ्लेक्ट होने के बाद एक प्वाइंट से डाइवर्ज होती हुई दिखती हैं। इस प्वाइंट को कॉन्वेक्स मिरर का फोकस कहते हैं। कॉन्केव मिरर में फोकस उसके रिफ्लेक्टिव सरफेस की तरफ होता है, जबकि कॉन्वेक्स मिरर में यह रिफ्लेक्टिव सरफेस की दूसरी तरफ होता है। फोकस को अंग्रेजी के अक्षर ‘F’ से दिखाया जाता है।
फोकल लेंथ: P और फोकस के बीच की दूरी को फोकल लेंथ कहते हैं। फोकल लेंथ हमेशा कर्वेचर के रेडियस का आधा होता है। इसे अंग्रेजी के अक्षर ‘f’ से दिखाया जाता है। इसलिये, R = 2f
एपर्चर: किसी स्फेरिकल मिरर का रिफ्लेक्टिंग सरफेस सामान्य रूप से स्फेरिकल होता है। इस सरफेस के डायमीटर को मिरर का एपर्चर कहते हैं। इस लेसन में हम वैसे मिरर के बारे में बात करेंगे जिनका एपर्चर उनके कर्वेचर के रेडियस की तुलना में बहुत छोटा होता है।