लाइट का रिफ्रैक्शन
प्रिज्म से लाइट का रिफ्रैक्शन
अब तक आपने एक चौकोर ग्लास स्लैब से लाइट के रिफ्रैक्शन के बारे में पढ़ा। जब ग्लास स्लैब से लाइट का रिफ्रैक्शन होता है तो इमर्जेंट रे और इंसिडेंट रे आपस में समानांतर होती हैं। लेकिन जब किसी ट्राइएंगुलर प्रिज्म से लाइट का रिफ्रैक्शन होता है तो इमर्जेंट रे इंसिडेंट रे के साथ एक कोण बनाती है। ऐसा प्रिज्म के खास शेप के कारण होता है। एक ट्राइएंगुलर प्रिज्म में दो ट्राइएंगुलर बेस और तीन रेक्टैंगुलर लैटेरल सरफेस होते हैं।
प्रिज्म का एंगल: प्रिज्म के दो लैटेरल सरफेस के बीच के एंगल को प्रिज्म का एंगल कहते हैं।
दिये गये फिगर में PE इंसिडेंट रे है, NE इंसिडेंस के प्वाइंट पर नॉर्मल है और ∠i इंसिडेंस का एंगल है। EF रिफ्रैक्टेड रे है और ∠r रिफ्रैक्शन का एंगल है। FS इमरजेंट रे है और ∠e इमरजेंस का एंगल है। जब इंसिडेंट रे और इमरजेंट रे को आगे बढ़ाया जाता है तो वे प्वाइंट G पर इंटरसेक्ट करती हैं। यहाँ पर, ∠D डेवियेशन का एंगल है। डेवियेशन का एंगल प्रिज्म के एंगल पर निर्भर करता है।
काँच के प्रिज्म द्वारा लाइट का डिस्पर्सन
सफेद लाइट जब अपने कॉम्पोनेंट रंगों में टूट जाती है तो इसे लाइट का डिस्पर्सन कहते हैं। विजिबल लाइट सात रंगों से मिल कर बनी होती है; वायलेट, इंडिगो, ब्लू, ग्रीन, येलो, ऑरेंज और रेड। इन रंगों के अंग्रेजी नामों के पहले अक्षरों के मिलाने से ‘VIBGYOR’ बनता है।
जब विजिबल लाइट की एक किरण प्रिज्म में प्रवेश करती है तो अलग-अलग रंग अलग-अलग एंगल से मुड़ते हैं क्योंकि उनकी स्पीड अलग-अलग होती है। लाल रंग की रोशनी सबसे अधिक एंगल से मुड़ती है, जबकि नीले रंग की रोशनी सबसे कम एंगल से मुड़ती है। इसके परिणामस्वरूप स्क्रीन पर एक स्पेक्ट्रम बनता है जिसमें लाल रंग प्रिज्म के एपेक्स की तरफ होता है। सनलाइट का स्पेक्ट्रम पता करने वाले सबसे पहले वैज्ञानिक थे सर आइजैक न्यूटन। जब उन्होंने दो प्रिज्म को एक दूसरे से सटाकर रखा तो उन्हें सफेद लाइट की एक किरण प्राप्त हुई। ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि दूसरे प्रिज्म से विजिबल स्पेक्ट्रम के रंगों का रिकॉम्बिनेशन हो गया।
इंद्रधनुष: इंद्रधनुष एक नैचुरल स्पेक्ट्रम है जो बारिश के तुरंत बाद आसमान में बनता है। बादलों में मौजूद बारिश की बूँदें किसी प्रिज्म के तरह काम करती हैं। जब लाइट की एक किरण किसी बूँद में प्रवेश करती है तो लाइट का डिस्पर्सन होता है। उसके बाद इन किरणों का टोटल इंटर्नल रिफ्लेक्शन होता है और वे बूँद से बाहर आकर इंद्रधनुष बनाती हैं। आकाश किसी गुम्बद की तरह दिखता है। इसलिये इंद्रधनुष का आकार सेमीसर्किल की तरह होता है।
एटमोस्फेयरिक रिफ्रैक्शन
दूर के ऑब्जेक्ट का फ्लिकर करना: आपने गौर किया होगा कि खासकर गर्मी के दिनों में दूर की चीजें फ्लिकर करती हुई दिखती हैं। जमीन के पास की हवा की तुलना में जमीन के ठीक ऊपर की हवा गर्म होती है। इसलिये हवा की अलग-अलग परतों के रिफ्रैक्टिव इंडेक्स अलग-अलग होते हैं। इसलिये जब लाइट एटमोस्फेयर के विभिन्न परतों से गुजरती है तो उसका रिफ्रैक्शन होता है। इसलिये ऐसा लगता है कि दूर की चीज का पोजीशन बदलता रहता है। इसके कारण दूर की चीजें फ्लिकर करती हुई दिखती हैं।
तारों का टिमटिमाना:
जब तारे की रोशनी पृथ्वी के एटमोस्फेयर की विभिन्न परतों से होकर गुजरती है तो उसका रिफ्रैक्शन होता है क्योंकि अलग-अलग परतों के रिफ्रैक्टिव इंडेक्स अलग-अलग होते हैं। इसके कारण तारे का एपेरैंट पोजीशन क्षितिज पर के इसके वास्तविक पोजीशन से थोड़ा ऊपर होता है। एटमोस्फेयर का कंडीशन हर समय बदलता रहता है। इसलिये तारे का एपेरैंट पोजीशन भी बदलता रहता है। तारे हमसे अत्यधिक दूरी पर होते हैं इसलिये कोई भी तारा लाइट के एक प्वाइंट सोर्स की तरह काम करता है। इसलिये स्टार से आती हुई लाइट फ्लिकर करती रहती है जिसके कारण तारे टिमटिमाते हैं।
तारों की तुलना में ग्रह हमसे काफी नजदीक होते हैं। इसलिये कोई ग्रह लाइट के प्वाइंट सोर्स की तरह काम नहीं करता है। इसलिये प्लैनेट टिमटिमाते नहीं हैं। लेकिन प्लैनेट का भी एपेरैंट पोजीशन इसके वास्तविक पोजीशन से कुछ ऊँचा होता है।
एडवांस सनराइज और डीलेड सनसेट: जब सूर्य की रोशनी पृथ्वी के एटमोस्फेयर के अलग-अलग लेयर से पास करती है तो इसका रिफ्रैक्शन होता है। इसके कारण क्षितिज पर सूर्य का एपेरैंट पोजीशन इसके वास्तविक पोजीशन से थोड़ा ऊँचा होता है। इसलिये सूर्योदय से दो मिनट पहले ही सूर्य दिखना शुरु हो जाता है। इसी कारण से सूर्यास्त से दो मिनट बाद तक सूर्य दिखता रहता है।