आनुवंशिकता और जैव विकास
सेक्स डिटरमिनेशन
किसी के लड़का पैदा लेगा या लड़की यह किस्मत पर निर्भर नहीं करता है। इसका एक ठोस वैज्ञानिक कारण होता है। आपको याद होगा कि मनुष्य के शरीर के नॉर्मल यानि सोमैटिक सेल में 46 क्रोमोसोम (23 जोड़े) होते हैं। इनमें से 22 जोड़ों में एक जैसे क्रोमोसोम होते हैं। लेकिन 23 वें जोड़े के क्रोमोसोम अलग अलग आकार के हो सकते हैं। इनमें से बड़े क्रोमोसोम को X क्रोमोसोम और छोटे क्रोमोसोम को Y क्रोमोसोम कहते हैं। किसी भी पुरुष में 23 वें जोड़े में X और Y क्रोमोसोम रहते हैं, जबकि किसी भी महिला में 23 वें जोड़े में X और X क्रोमोसोम रहते हैं। आपने यह भी पढ़ा होगा कि गैमेट में क्रोमोसोम की संख्या आधी हो जाती है क्योंकि गैमेट का निर्माण मीऑसिस द्वारा होता है।
- इस तरह हर एग में 23 वाँ क्रोमोसोम X क्रोमोसोम होता है। लेकिन 50% स्पर्म में X क्रोमोसोम रहता है जबकि बाकी के 50% स्पर्म में Y क्रोमोसोम रहता है।
- यदि X क्रोमोसोम वाला स्पर्म एक एग को फर्टिलाइज करता है तो इससे बने जाइगोट से लड़की का जन्म होगा।
- यदि Y क्रोमोसोम वाला स्पर्म एक एग को फर्टिलाइज करता है इससे बने जाइगोट से लड़के का जन्म होगा।
इवोल्यूशन
वंशानुगत लक्षणों में पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव आते रहते है। इन्हीं बदलावों को क्रमिक विकास या जैव विकास या इवोल्यूशन कहते हैं। वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है आज धरती पर जीवन के जितने भी रूप पाये जाते हैं उन सबका विकास एक ही पूर्वज से हुआ है।
एक उदाहरण
जैविक विकास की प्रक्रिया को समझने के लिये एक काल्पनिक उदाहरण लेते हैं जिसमें तीन अलग-अलग परिस्थितियाँ आती हैं। इनसे यह समझने में मदद मिलेगी कि एवोल्यूशन कैसे होता है।
सिचुएशन 1: मान लीजिए कि एक झाड़ी में लाल बीटल की एक जनसंख्या रहती है। बीटल सेक्सुअली प्रजनन करते हैं इसलिये इनमें हर पीढ़ी में वैरियेशन आते रहते हैं। इस झाड़ी में अक्सर कौवे भी आते हैं क्योंकि बीटल उनका पसंदीदा भोजन है। मान लीजिए कि बीटल के रंग में कुछ वैरियेशन आता है जिसके कारण कुछ हरे रंग के बीटल पैदा हो जाते हैं। किसी कौवे के लिये हरी झाड़ी में लाल बीटल को देख पाना बड़ा आसान है। लेकिन उसी कौवे के लिये हरी झाड़ी में हरे बीटल को देख पाना मुश्किल है। यहाँ पर हरा रंग बीटल को सरवाइवल के मामले में एडवांटेज देता है। कुछ समय बीतने के बाद उस झाड़ी के सभी लाल बीटल समाप्त हो जाते हैं और केवल हरे बीटल रह जाते हैं।
सिचुएशन 2: मान लीजिए कि रंग में आये वैरियेशन के कारण कुछ नीले रंग के बीटल पैदा हो जाते हैं। कौवों को हरी झाड़ी में नीले बीटल उतनी ही आसानी से दिखेंगे जितनी आसानी से लाल बीटल दिखते हैं। इसलिये नीले बीटल की संख्या में बहुट इजाफा नहीं होगा। एक दिन कहीं से एक हाथी आता है और झाड़ी को रौंदता हुआ चला जाता है। इस दुर्घटना में ज्यादातर बीटल मारे जाते हैं। संयोग से जो बीटल जिंदा बच जाते हैं वे नीले रंग के हैं। उस दुर्घटना के बाद झाड़ी में नीले बीटल की जनसंख्या बढ़ जाती है। पिछले उदाहरण में हरे रंग से सरवाइवल एडवांटेज मिला था। लेकिन इस उदाहरण में किसी दुर्घटना के कारण नीले बीटल की जनसंख्या बढ़ गई। पहले उदाहरण में नैचुरल सेलेक्शन के कारण इवोल्यूशन हुआ। दूसरे उदाहरण में किसी दुर्घटना के कारण इवोल्यूशन हुआ।
जेनेटिक ड्रिफ्ट: जब बिना किसी सरवाइवल बेनिफिट के ही डाइवर्सिटी आती है तो इसे जेनेटिक ड्रिफ्ट कहते हैं। दूसरे उदाहरण में नीले बीटल का इवोल्यूशन होना जेनेटिक ड्रिफ्ट का उदाहरण है।
सिचुएशन 3: अब एक तीसरी परिस्थिति के बारे में कल्पना करते हैं जिसमें रंग में कोई वैरियेशन नहीं हुआ। एक बार सूखा पड़ा जिसकी वजह से उस झाड़ी के अधिकतर प्लांट सूख गये। अब उन बीटल को सही से खाना नहीं मिल पा रहा था। इसके कारण पीढ़ी दर पीढ़ी छोटे आकार के बीटल पैदा होने लगते हैं। कई पीढ़ियों के बाद झाड़ी में वातावरण अनुकूल हो जाता है। अब बीटल को फिर से प्रचुर मात्रा में भोजन मिलने लगता है। अब बीटल फिर से मोटे ताजे हो जाते हैं और बाद की पीढ़ियों में सामान्य आकार के बीटल पैदा होते हैं। इस उदाहरण में लक्षण में जो बदलाव आया था उससे बीटल के जीनोटाइप में कोई बदलाव नहीं आया। इसलिये उस लक्षण का पीढ़ियों में इनहेरिटेंस नहीं हो पाया।
एक्वायर्ड और इनहेरिटेड लक्षण
एक्वायर्ड लक्षण: जो लक्षण किसी जीव के जीवन काल में आते हैं लेकिन उनसे जीनोटाइप में कोई बदलाव नहीं आता है उन्हें एक्वायर्ड लक्षण कहते हैं। उदाहरण: कोई कितना मेधावी है, किसी को क्रिकेट में महारत हासिल है, कोई बहुत अच्छी पेंटिंग बनाता है, आदि।
इनहेरिटेड लक्षण: जो लक्षण जीनोटाइप में बदलाव लाते हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं उन्हें इनहेरिटेड लक्षण कहते हैं। उदाहरण: बालों का रंग, भारी आवाज, नाक नक्श, आदि।
पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत
जे बी एस हल्दाने एक ब्रिटिश वैज्ञानिक था। उसने 1929 में बताया कि निर्जीव पदार्थों से जीवन की शुरुआत हुई होगी। हल्दाने के अनुसार, धरती पर ऐसी परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण इनॉर्गेनिक पदार्थों में कुछ रासायनिक प्रतिक्रिया हुई होगी जिससे सरल ऑर्गेनिक पदार्थ बने होंगे। उसके बाद उन ऑर्गेनिक पदार्थों से शुरुआती जीव बने होंगे।
उरे और मिलर का प्रयोग: स्टैनली एल मिलर और हैरॉल्ड सी उरे ने 1953 में एक प्रयोग किया। उन्होंने एक सेटअप बनाया जिसमें उस वातावरण का नकल बनाया गया जो धरती पर करोड़ों साल पहले हुआ करता था। उस सेटअप में एक वायुमंडल बनाया गया जिसमें पानी के ऊपर अमोनिया, मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, आदि थे लेकिन ऑक्सीजन नहीं था। उस सेटअप का तापमान 100C से थोड़ा कम रखा गया और बिजली कड़कने की नकल के लिये बिजली की चिंगारियाँ निकाली गईं। एक सप्ताह के अंत में 15% कार्बन (मीथेन से) बदलकर सरल ऑर्गेनिक कंपाउंड (जिसमें एमिनो एसिड शामिल थे) बन चुका था। इस प्रयोग ने हल्दाने के हाइपोथेसिस को सिद्ध किया।