आनुवंशिकता और जैव विकास
मोनोहाइब्रिड क्रॉस:
अपने प्रयोग के लिये मेंडल ने कॉन्ट्रास्टिंग लक्षणों ले विभिन्न जोड़ों को चुना; जैसे पौधे की लम्बाई, फूल का रंग, बीज का रंग, बीज का टेक्सचर, पॉड का रंग और आकार, आदि।
अब उस प्रयोग के बारे में बात करते हैं जिसमें मेंडल ने एक लम्बे पौधे और एक नाटे पौधे के बीच क्रॉस करवाया। लम्बे पौधे के जीनोटाइप को TT लिखा जाता है, जबकि नाटे पौधे के जीनोटाइप को tt लिखा जाता है।
जब एक प्योर ब्रीडिंग लम्बे प्लांट को एक प्योर ब्रीडिंग नाटे प्लांट के साथ क्रॉस करवाया गया, तो F1 पीढ़ी में पैदा होने वाले सारे प्लांट लम्बे प्लांट थे। उन पौधों का जीनोटाइप Tt था।
उसके बाद F1 जेनरेशन के सभी प्लांट को सेल्फ पॉलिनेशन करने दिया गया। यह देखा गया कि F2 जेनरेशन में ज्यादातर प्लांट लम्बे थे लेकिन कुछ प्लांट नाटे थे। यह भी देखा गया कि F2 जेनरेशन में लम्बे और नाटे प्लांट का अनुपात 3:1 था।
F2 जेनरेशन में हर चार प्लांट में से एक प्लांट प्योर लम्बा (TT) था, दो प्लांट इम्प्योर लम्बे (Tt) थे और एक प्लांट प्योर नाटा (tt) था।
मेंडल का ऑब्जर्वेशन: ऐसा लगा कि नाटेपन का लक्षण F1 जेनरेशन में गायब हो गया था लेकिन यह लक्षण F2 जेनरेशन में दिखाई दिया। इसका मतलब यह है कि नाटेपन का लक्षण F1 में मौजूद था। मेंडल ने बताया कि कोई लक्षण या तो डॉमिनैंट हो सकता है या रिसेसिव हो सकता है। हो सकता है कि एक रिसेसिव ट्रेट किसी एक जेनरेशन में दिखाई न पड़े। लेकिन उसके अगले जेनरेशन में रिसेसिव ट्रेट दिखाई पड़ेगा। यह ध्यान रखना जरूरी है कि जरूरी नहीं की लम्बेपन का लक्षण ही डॉमिनैंट हो और नाटेपन का लक्षण ही रिसेसिव हो। इसका उलटा भी हो सकता है।
इनहेरिटेंस का पहला नियम: हर इंडिविजुअल जीव में प्रत्येक लक्षण के लिये एक जोड़ा एलील होता है। गैमेट फॉर्मेशन के दौरान एक जोड़े के एलील अलग हो जाते हैं और हर गैमेट को केवल एक ही एलील मिलता है। इस तरह से संतान को मिले एलील के जोड़े में हर पैरेंट से एक एलील मिलता है। इस नियम को सेग्रिगेशन का नियम कहते हैं।
डाइहाइब्रिड क्रॉस:
डाइहाइब्रिड क्रॉस के लिये मेंडल ने गोल और हरे बीज (RRyy) वाले प्लांट को झुर्रीदार और पीले बीज (rrYY) वाले प्लांट से क्रॉस करवाया। यहाँ पर गोलापन (चिकने बीज) और पीला रंग डॉमिनैंट लक्षण हैं, जबकि झुर्रीदार बीज और हरा रंग रिसेसिव लक्षण हैं।
मेंडल का ऑब्जर्वेशन: F1 जेनरेशन के हर प्लांट में गोल और पीले बीज (RrYy) निकले। जब इन पौधों को सेल्फ पॉलिनेशन करवाया गया तो F2 जेनरेशन के प्लांट से गोल पीले, गोल हरे, झुर्रीदार पीले और झुर्रीदार हरे बीज मिले। इनका अनुपात क्रमश: 9:3:3:1 था। ऐसा देखा गया कि गोलापन आसानी से पीले या हरे रंग के साथ कम्बाइन हो गया। इसी तरह से झुर्रीदार सतह आसानी से पीले या हरे रंग के साथ कम्बाइन हो गया।
इनहेरिटेंस का दूसरा नियम: इस नियम को लॉ ऑफ इंडिपेंडेंट एसॉर्टमेंट भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार; गैमेट फॉर्मेशन के दौरान अलग-अलग लक्षण एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से अलग होते हैं।
लक्षणों का एक्सप्रेशन:
डीएनए वह इंफॉर्मेशन सेंटर है जहाँ से प्रोटीन बनाने का मैसेज राइबोजोम को भेजा जाता है। इसलिये डीएनए का कोई खास सेक्शन जो किसी खास प्रोटीन के लिये मैसेज भेजता है वह उस खास प्रोटीन का जीन कहलाता है। किसी खास जीन की एफिसियेंसी पर यह निर्भर करता है कि कोई खास लक्षण किसी जेनरेशन में दिखेगा या नहीं।
इसे समझने के लिये लम्बेपन का उदाहरण लेते हैं। किसी भी जीव की लम्बाई कितनी होगी यह कुछ हॉर्मोन द्वारा नियंत्रित होता है। कोई भी हॉर्मोन प्रोटीन से बना होता है। यदि लम्बेपन के हॉर्मोन को बनाने के लिये जीन से सही इंफॉर्मेशन मिलता है तो उस जीव को लम्बा होने के लिये जरूरी हॉर्मोन सही मात्रा में मिलेगी। यदि हॉर्मोन बनाने के लिये जीन से सही इंफॉर्मेशन नहीं मिलेगा तो उस जीव को लम्बा होने के लिये जरूरी हॉर्मोन सही मात्रा में नहीं मिलेगा। इससे पता चलता है कि किसी पीढ़ी में कोई इंडिविजुअल लम्बा होता है या नाटा।