जीवों में प्रजनन
रिप्रोडक्टिव हेल्थ
रिप्रोडक्टिव हेल्थ के अंदर फिजिकल, मेंटल और सोसाइटल वेल बिइंग सभी को शामिल किया जाता है।
फिजिकल स्तर पर ने केवल यह देखा जाता है कि रिप्रोडक्टिव सिस्टम सही तरीके से काम कर रहा है बल्कि यह भी देखा जाता है कि चाइल्ड बीयरिंग का किसी महिला के शरीर पर क्या असर होता है। एक बच्चे को पालने में जो फाइनेंसियल और इमोशनल परेशानियाँ आती हैं उन्हें मेन्टल वेल बीइंग के नजरिये से देखा जाता है।
जनसंख्या वृद्धि और लिंग अनुपात के नजरिये से रिप्रोडक्टिव हेल्थ बहुत महत्वपूर्ण है। भारत आज आबादी के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिये हर नागरिक के लिये यह जरूरी हो जाता है कि वह जनसंख्या को नियंत्रण में रखने का प्रयास करे। हमारे समाज में लिंग अनुपात महिलाओं के हित में नहीं है। इसलिये हर उस तरीके को रोकना होगा जिनसे किसी कन्या को जन्म लेने से रोका जाता है। सेक्स डिटरमिनेशन, फीमेल फीटिसाइड और फीमेल इनफैंटिसाइड के चलन को रोकने के लिये कठोर से कठोर कदम उठाने की जरूरत है।
कॉन्ट्रासेप्शन: प्रेग्नेंसी को रोकने के तरीकों को कॉन्ट्रासेप्शन या बर्थ कंट्रोल कहते हैं। इन तरीकों को चार टाइप में रखा जा सकता है: बैरियर मेथड, इंट्रायूटेराइन डिवाइस, हॉर्मोनल मेथड और सर्जिकल मेथड।
बैरियर मेथड: इस तरीके से ऐसा फिजिकल बैरियर बनाया जाता है जिससे एग तक स्पर्म पहुँच नहीं पाते हैं। उदाहरण: कंडोम और डायफ्राम। कंडोम को पेनिस के ऊपर चढ़ाया जाता है, जबकि डायफ्राम को वेजाइना के भीतर डाला जाता है।
इंट्रायूटेराइन डिवाइस: कॉपर-टी इसका अच्छा उदाहरण है। इसे यूटेरस के अंदर लगा दिया जाता है ताकि यह स्पर्म को फैलोपियन ट्यूब तक पहुँचने से रोके। इसके अलावा कॉपर में कुछ कॉन्ट्रासेप्टिव गुण भी होते हैं जिनके कारण यह स्पर्म की मोटिलिटी को कम कर देता है। IUDs को 3 से 5 वर्षों तक के लिये लगाया जाता है। दो बच्चों के बीच उचित अंतर बनाने के लिये यह बहुत ही कारगर तरीका है।
हॉर्मोनल मेथड: हॉर्मोन की गोलियाँ और सुई आती हैं। ये हॉर्मोन ओव्युलेशन को रोकते हैं। हॉर्मोन की गोलियों से गर्भ की रोकथाम होती है। लेकिन हॉर्मोन की गोलियों से कई साइड इफेक्ट भी होते हैं।
सर्जिकल मेथड: सर्जिकल मेथड से गर्भनिरोधन हमेशा के लिये हो जाता है। यह वैसे दंपति के लिये सही है जिन्हें अब और बच्चे नहीं चाहिए। सर्जिकल मेथड में पुरुष के वास डिफरेंस को या तो काट दिया जाता है या उसमें गाँठ लगा दी जाती है। महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब को या तो काट दिया जाता है या उसमें गाँठ लगा दी जाती है।
सारांश
- जिस प्रक्रिया से कोई जीव अपने संतान उत्पन्न करता है उसे प्रजनन कहते हैं।
- डीएनए रेप्लिकेशन एक बहुत ही दक्ष प्रक्रिया है लेकिन इसमें भी कुछ गलतियाँ हो जाती हैं।
- जब रिप्रोडक्शन की क्रिया में केवल एक पैरेंट शामिल होता है तो इसे एसेक्सुअल रिप्रोडक्शन कहते हैं।
- डीएनए रेप्लिकेशन के दौरान कुछ छोटे मोटे वैरियेशन हो जाते हैं। इसलिये कोई भी दो इंडिविजुअल एक जैसे नहीं दिखते हैं।
- जब रिप्रोडक्शन की क्रिया में केवल एक पैरेंट शामिल होता है तो इसे एसेक्सुअल रिप्रोडक्शन कहते हैं।
- यूनिसेल्युलर जीव फिजन द्वारा प्रजनन करते हैं। फिजन दो प्रकार के होते हैं: बाइनरी फिजन और मल्टिपल फिजन।
- सरल बॉडी ऑर्गेनाइजेशन वाले मल्टीसेल्युलर जीवों में फ्रैगमेंटेशन से प्रजनन होता है।
- जब किसी वेजिटेटिव अंग से एक नये प्लांट का जन्म होता है तो इस क्रिया को वेजिटेटिव प्रोपागेशन कहते हैं। वेजिटेटिव प्रोपागेशन जड़, तना और पत्ती से होता है।
- जब रिप्रोडक्शन की क्रिया में दो पैरेंट शामिल होते हैं तो इसे सेक्सुअल रिप्रोडक्शन कहते हैं।
- परंपरा के अनुसार बड़े जर्म सेल को फीमेल गैमेट कहते हैं, जबकि छोटे जर्म सेल को मेल गैमेट कहते हैं। फीमेल गैमेट में भोजन स्टोर रहता जो विकसित होने वाले जाइगोट को न्युट्रिशन प्रदान करता है।
- मेल और फीमेल गैमेट के फ्यूजन को फर्टिलाइजेशन कहते हैं। फर्टिलाइजेशन के बाद जाइगोट बनता है।
- फर्टिलाइजेशन के बाद ओवरी फल में बदल जाती है। सेपल, पेटल, स्टामेन और स्टिग्मा मुरझाकर झड़ जाते हैं।
- मनुष्य में जिस उम्र में रिप्रोडक्टिव मैच्योरिटी आती है उसे एडोलेसेंस कहते हैं। इस उम्र में कई महत्वपूर्ण फिजियोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल बदलाव आते हैं।
- मेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम में एक जोड़ी टेस्टिस, वास डिफरेंस, सेमिनल वेसिकल और पेनिस होता है।
- फीमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम में एक जोड़ी ओवरी, फैलोपियन ट्यूब, एक यूटेरस और एक वेजाइना होती है।
- एम्ब्रायो यूटेरस की दीवार से चिपक जाता है। इस क्रिया को इम्प्लांटेशन कहते हैं। इम्प्लांटेशन के साथ ही प्रेग्नेंसी शुरु हो जाती है।
- रिप्रोडक्टिव हेल्थ में फिजिकल, मेंटल और सोशल वेल बीइंग को शामिल किया जाता है।
- प्रेग्नेन्सी को रोकने के तरीकों को कॉन्ट्रासेप्शन या बर्थ कंट्रोल कहते हैं। ये तरीके चार प्रकार के होते हैं: बैरियर मेथड, इंट्रायूटेराइन डिवाइस, हॉर्मोनल मेथड और सर्जिकल मेथड।