जीवों में प्रजनन
मनुष्य में रिप्रोडक्शन
एडोलेसेंस: मनुष्यों में रिप्रोडक्टिव मैच्योरिटी एक खास उम्र से शुरु होती है। जीवन के जिस काल में सेक्सुअल मैच्योरिटी शुरु और संपन्न होती है उसे काल को एडोलेसेंस या किशोरावस्था कहते हैं। इस उमर में फिजियोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल स्तर पर कई बदलाव आते हैं।
एडोलेसेंस के दौरान लड़कों में होने वाले बदलाव: लड़कों में टेस्टिस बड़ा हो जाता है और उसमें स्पर्म का बनना शुरु हो जाता है। पेनिस में इरेक्शन की क्षमता आ जाती है। लड़कों का शरीर अधिक मस्कुलर हो जाता है, कंधे चौड़े हो जाते हैं, आवाज भारी हो जाती है और चेहरे पर दाढ़ी मूँछ निकल आती है।
एडोलेसेंस के दौरान लड़कियों में होने वाले बदलाव: लड़कियों में ओवरी मैच्योर हो जाती हैं और हर मेंस्टरुअल साइकल में एक एग निकलना शुरु हो जाता है। पहले मेंस्टरुएशन के शुरुआत का मतलब है प्युबर्टी का शुरु होना। लड़कियों में ब्रेस्ट बड़े हो जाते हैं और कमर के नीचे का भाग चौड़ा हो जाता है।
एडोलेसेंस के दौरान लड़कों और लड़कियों में होने वाले कुछ एक जैसे बदलाव: बाँहों के नीचे और प्युबिक एरिया में बाल निकल आते हैं। दोनों में मानसिक तौर पर परिपक्वता और स्वतंत्रता आती है।
सेक्सुअल डाइमॉर्फिज्म: कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिनसे किसी स्पेशीज के मेल और फीमेल के बीच अंतर करना आसान हो जाता है। नर और मादा के इस अंतर को सेक्सुअल डाइमॉर्फिज्म कहते हैं।
एडोलेसेंस के दौरान होने वाले बदलावों का महत्व: इस दौरान होने वाले बदलाव किसी व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक तौर पर रिप्रोडक्शन के लिये तैयार करते हैं। रिप्रोडक्शन की क्रिया में शरीर के रिसोर्सेज की मांग बहुत बढ़ जाती है। इसलिये रिप्रोडक्शन के दौरान होने वाली परेशानियाँ उठाने के लिये शरीर को फिजिकली तैयार होना पड़ता है।
मेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम
नर प्रजनन तंत्र के मुख्य अंग हैं: एक जोड़ा टेस्टिस, वास डिफरेंस, सेमिनल वेसिकल और एक पेनिस।
टेस्टिस: यह एक गोलाकार रचना है जो एबडॉमिनल कैविटी के नीचे स्किन से बने एक पाउच में रहता है। स्किन के इस पाउच को स्क्रोटम कहते हैं। टेस्टिस एबडॉमिनल कैविटी के बाहर इसलिये रहता है ताकि इसका तापमान शरीर के तापमान से हमेशा कम रहे। इससे स्पर्म का बनना अधिक दक्ष तरीके से होता है। टेस्टिस जर्म सेल या स्पर्म का निर्माण करता है। इसके अलावा टेस्टिस में टेस्टोस्टेरोन नाम का हॉर्मोन भी बनता है। वास डिफरेंस स्पर्म को टेस्टिस से बाहर ले जाता है। यूरीन और सीमेन दोनों के लिये यूरेथ्रा एक कॉमन पैसेज का काम करता है।
सेमिनल वेसिकल और प्रोस्टेट ग्लैंड: ये मेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम के एक्सेसरी ग्लैंड हैं। इन ग्लैंड से निकलने वाले सेक्रेशन सीमेन का हिस्सा बन जाते हैं।
फीमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम
मादा प्रजनन तंत्र में एक जोड़ी ओवरी, एक जोड़ी फैलोपियन ट्यूब, एक यूटेरस और एक वेजाइना होती है।
ओवरी: यूटेरस के दोनों तरफ एक-एक ओवरी रहती है। ओव्युलेशन के समय ओवरी से एक मैच्योर एग निकलता है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि एक मेंस्टरुअल साइकल के दौरान अक्सर एक ही एग निकलता है। ओवरी से एस्ट्रोजन नाम का हॉर्मोन भी निकलता है।
फैलोपियन ट्यूब: इन्हें ओविडक्ट भी कहा जाता है। यह नली जैसी रचना होती है जो यूटेरस के ऊपरी भाग के अगल बगल से निकलती है। हर फैलोपियन ट्यूब के छोर पर अंगुली जैसी रचना होती हैं जिन्हें फिम्ब्रिए कहते हैं। इनका काम है एग को फैलोपियन ट्यूब तक पहुँचाना।
यूटेरस: यह एक मस्क्युलर ऑर्गन है जो नाशपाती के आकार का होता है। एम्ब्रायो का इम्प्लांटेशन और आगे का डेवलपमेंट यूटेरस में ही होता है। यूटेरस के मुँह को सर्विक्स कहते हैं।
वेजाइना: यह एक मस्क्युलर ट्यूब है तो सीमेन के लिये पैसेज प्रदान करती है। वेजाइना को बर्थ कैनाल भी कहते हैं क्योंकि बच्चे का जन्म वेजाइना से होकर होता है।
फर्टिलाइजेशन: कॉपुलेशन के बाद वेजाइना से होकर स्पर्म यूटेरस तक पहुँचते हैं। वे फैलोपियन ट्यूब तक पहुँच जाते हैं। कोई एक स्पर्म एग को फर्टिलाइज करने में सफल हो सकता है। फर्टिलाइजेशन के बाद जाइगोट का कई बार सेल डिविजन होता है जिससे एम्ब्रायो का निर्माण होता है। उसके बाद यूटेरस की भीतरी दीवार में एम्ब्रायो चिपक जाता है। इस प्रक्रिया को इम्प्लांटेशन कहते हैं। इम्प्लांटेशन के बाद ही प्रेग्नेंसी शुरु होती है।
यूटेरस में बदलाव: हर मेंस्टरुअल साइकल में यूटेरस में कई बदलाव आते हैं ताकि यूटेरस संभावित प्रेग्नेंसी के लिये तैयार हो सके। यूटेरस की दीवार मोटी हो जाती है ताकि विकसित होने वाले एम्ब्रायो को उचित सपोर्ट मिल सके। कॉन्सेप्शन के बाद यूटेरस में एक विशेष टिशू बनता है जिसे प्लैसेंटा कहते हैं। प्लैसेंटा एक डिस्क जैसी रचना है जो यूटेरस की दीवार से लगी होती है। इसमें फीटस की तरफ विल्लाई होते हैं। फीट्स को न्युट्रिशन और ऑक्सीजन सप्लाई के लिये चैनल का काम प्लैसेंटा ही करता है। यह फीटस से वेस्ट प्रोडक्ट को बाहर भी ले जाता है।
फीटस: जेस्टेशन के लगभग 9 सप्ताह के बाद, एम्ब्रायो एक मनुष्य की तरह दिखने लगता है। इस अवस्था में इसे फीटस कहते हैं। इसलिये फीटस को एम्ब्रायो और नवजात शिशु के बीच का स्टेज माना जाता है।
यदि एग का फर्टिलाइजेशन नहीं होता है तो क्या होता है?
अधिकतर मेन्स्टरुअल साइकल के दौरान फर्टिलाइजेशन नहीं होता है। जब एग का फर्टिलाइजेशन नहीं होता है तो इसे वेजाइना के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। इसके अलावा, यूटेरस की दीवार में बनने वाले एक्स्ट्रा लाइनिंग को भी टुकड़ों में बाहर निकाला जाता है। मेंस्टरुअल फ्लो में यही पदार्थ शामिल होते हैं। मेंस्टरुएशन दो से आठ दिनों तक चल सकता है।