जैव प्रक्रम
श्वसन या रेस्पिरेशन
जिस प्रक्रिया में भोजन को इस्तेमाल करके ऊर्जा पैदा की जाती है उसे श्वसन कहते हैं। ज्यादातर जीवों में इस्तेमाल होने वाला रेस्पिरेटरी सस्बट्रेट है कार्बोहाइड्रेट। कार्बोहाइड्रेट का ऑक्सीकरण होता है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा निकलती है। रेस्पिरेशन एक जटिल प्रक्रिया है लेकिन इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा दिखाया जा सकता है:
C6H12O6 + 6O2 ⇨ 6CO2 + 6H2O + Energy
रेस्पिरेशन का पहला चरण साइटोप्लाज्म में होता है। इस चरण में ग्लूकोज (6 कार्बन वाला मॉलिक्यूल) से पाइरुवेट (3 कार्बन वाला मॉलिक्यूल) बनता है।
अगला चरण ऑक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में रेस्पिरेशन दो प्रकार के होते हैं; एयरोबिक रेस्पिरेशन और एनेयरोबिक रेस्पिरेशन।
एयरोबिक रेस्पिरेशन: जब रेस्पिरेशन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तो इसे एयरोबिक रेस्पिरेशन कहते हैं। इस स्थिति में पाइरुवेट का इस्तेमाल माइटोकॉन्ड्रिया में होता है। इस प्रक्रिया के अंत में कार्बन डाइऑक्साइ और पानी का निर्माण होता है।
एनेयरोबिक रेस्पिरेशन: जब रेस्पिरेशन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तो इसे एनेयरोबिक रेस्पिरेशन कहते हैं। इस स्थिति में पाइरुवेट का इस्तेमाल साइटोप्लाज्म में होता है। यीस्ट में एनेयरोबिक रेस्पिरेशन के बाद इथेनॉल और कार्बन डाइऑक्साइड बनते हैं। मांसपेशियों में एनेयरोबिक रेस्पिरेशन के बाद लैक्टिक एसिड बनता है।
एनेयरोबिक रेस्पिरेशन में ऑक्सीकरण पूरी तरह से नहीं होता है। इसलिये एयरोबिक रेस्पिरेशन की तुलना में एनेयरोबिक रेस्पिरेशन कम कार्यकुशल होता है।
रेस्पिरेशन से निकलने वाली ऊर्जा को ATP (एडिनोसीन ट्राइफॉस्फेट) के रूप में जमा किया जाता है। इसे जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है।
जब मांसपेशियों को अत्यधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है तो उनमें एनेयरोबिक रेस्पिरेशन होता है। इसके परिणामस्वरूप मांसपेशियों में लैक्टिक एसिड जमा होने लगता है। लैक्टिक एसिड के जमा होने से पेशियों में तेज दर्द होता है। यही कारण है कि तेजी से कसरत करने या दौड़ने से पेशियों में ऐंठन होने लगती है।
गैसों का विनिमय
एयरोबिक जीवों में ऑक्सीजन को सही मात्रा में उपलब्ध कराने के लिये समुचित व्यवस्था होती है। सरल जीवों में डिफ्यूजन के द्वारा ऑक्सीजन शरीर के अंदर जाता है और कार्बन डाइऑक्साइड शरीर से बाहर आता है। जटिल जीवों में हर कोशिका तक ऑक्सीजन पहुँचाने के लिये डिफ्यूजन काफी नहीं होता है। इसलिये इन जीवों में रेस्पिरेटरी सिस्टम की जरूरत पड़ती है। मछलियों में गिल के द्वारा गैसों का आदान प्रदान होता है। कीटों में इस काम के लिये स्पाइरैकल और ट्रैकिया का एक सिस्टम होता है। एंफिबियन, रेप्टाइल, एव्स और मैमल में इस काम के लिये लंग्स (फेफड़) होते हैं।
मानव श्वसन तंत्र
मानव रेस्पिरेटरी सिस्टम में एक जोड़ा लंग्स होते हैं और विंड पाइप होती है। रेस्पिरेटरी सिस्टम के मुख्य अंग हैं; नेजल चेंबर, फैरिंक्स, लैरिंक्स, ट्रैकिया, ब्रॉन्काई, ब्रॉन्किओल्स, एल्वोलाई और लंग्स।
नेजल चेम्बर: नेजल चेंबर की भीतरी सतह पर महीन बाल होते हैं और यह म्यूकस के कारण गीली होती है। बाल और म्यूकस मिलकर किसी एयर फिल्टर की तरह काम करते हैं और धूल के कणों को अंदर नहीं जाने देते हैं।
ट्रैकिया: यह कार्टिलेज के छल्लों से बनी होती है। कार्टिलेज के कारण हवा के जाने का रास्ता कभी सिकुड़ता नहीं है।
ब्रॉन्काई और ब्रॉन्किओल: ट्रैकिया आगे जाकर दो ब्रॉन्काई में बँट जाती है। इनमें से एक ब्रॉन्कस एक लंग में जाता है और दूसरा दूसरे लंग में। लंग के अंदर जाने के बाद ब्रॉन्कस कई शाखाओं और उप-शाखाओं में बँट जाता है जिन्हें ब्रॉन्किओल कहते हैं।
एल्विओलाई: ब्रॉन्किओल्स के अंतिम सिरों पर एल्विओलाई रहते हैं। एल्विओलस एक बहुत ही पतली झिल्ली से बनी बैलून जैसी रचना है। एल्विओलस की मेम्ब्रेन में बहुत सारी ब्लड कैपिलरी होती हैं। गैसों का आदान प्रदान एल्विओलाई में होता है। यहीं पर खून में से कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है और खून में ऑक्सीजन जाकर मिलता है।