कार्बन और उसके यौगिक
कुछ महत्वपूर्ण कार्बनिक कंपाउंड
इथेनॉल
इथेनॉल का केमिकल फॉर्मूला C2H5OH या CH3CH2OH है। इथेनॉल का मेल्टिंग प्वाइंट 156 K और ब्वायलिंग प्वाइंट 351 K है। इथेनॉल एक रंगहीन, तेजी से उड़ने वाला और अत्यधिक ज्वलनशील द्रव है। इसकी गंध हल्की रासायनिक होती है।
इथेनॉल की प्रतिक्रिया:
सोडियम के साथ प्रतिक्रिया: इथेनॉल और सोडियम प्रतिक्रिया करके सोडियम इथॉक्साइड और हाइड्रोजन बनाते हैं।
2Na + 2CH3CH2OH ⇨ 2CH2CH2Na + H2
अनसैचुरेटेड हाइड्रोकार्बन बनाने वाली प्रतिक्रिया: जब इथेनॉल को सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड के साथ गर्म किया जाता है तो इथीन बनता है।
इथेनॉल के उपयोग:
- इथेनॉल एक अच्छा विलायक है और कई दवाइयों, पेंट और डाइ में इस्तेमाल होता है।
- क्लिनिक में और हैंड सैनिटाइजर में इथेनॉल का इस्तेमाल एंटिसेप्टिक के तौर पर होता है।
- तनु इथेनॉल का इस्तेमाल नशे के लिये होता है।
- मीथेनॉल प्वायजनिंक के उपचार के लिये इथेनॉल का इस्तेमाल एंटीडोट के रूप में होता है।
- कई देशों में इथेनॉल को गैसोलीन में मिलाकर ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
डीनेचर्ड अल्कोहल: कई लोग नशे के लिये अल्कोहल का गलत इस्तेमाल करते हैं। अल्कोहल के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिये इसमें कुछ जहरीली चीजें मिलाई जाती हैं। इसके लिये अक्सर मीथेनॉल मिलाया जाता है और आसानी से पहचान के लिये एक ब्लू डाइ को भी मिलाया जाता है। इसे डीनेचर्ड अल्कोहल कहते हैं।
शरीर पर अल्कोहल का प्रभाव: इथेनॉल का असर सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर पड़ता है और इससे मेटाबोलिक प्रक्रिया धीमी हो जाती है। सेंट्रल नर्वस सिस्टम के धीमा पड़ने से समन्वय की कमी, मानसिक दुविधा होती है और सामान्य संकोच में कमी आती है। इससे थोड़ा सुकून जैसा महसूस होता है और नींद आने लगती है। लेकिन इससे सोचने समझने की शक्ति कम हो जाती है और मांसपेशियों का समन्वय भी कम हो जाता है।
शराब पीकर ड्राइविंग से खतरा: ऐसा कहा जाता है कि शराब पीकर गाड़ी नहीं चलाना चाहिए। किसी भी वाहन को चलाना एक जटिल काम है जिसमें बहुत ही उच्च स्तर की जागरूकता और द्रुत गति के रिफ्लेक्स की जरूरत होती है। लेकिन नशे की हालत में एक आदमी ना तो होश में रह सकता है और न ही द्रुत रिफ्लेक्स दिखा सकता है। इसलिये नशे की हालत में गाड़ी चलाना काफी खतरनाक होता है। इससे न केवल गाड़ी के ड्राइवर की जान को खतरा है बल्कि सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों को भी।
मिलावटी शराब से नुकसान: कुछ लोग इथेनॉल में डीनेचर्ड अल्कोहल मिला देते हैं; जिसमें मीथेनॉल रहता है। इथेनॉल से शरीर को कोई तत्काल नुकसान नहीं होता है। लेकिन मीथेनॉल की छोटी सी मात्रा भी जानलेवा साबित हो सकती है। मीथेनॉल जब लिवर में पहुँचता है तो मीथेनल में बदल जाता है। मीथेनल से प्रोटोप्लाज्म का थक्का बन जाता है। प्रोटोप्लाज्म के थक्का बनने से सेल की मौत हो जाती है। मीथेनल से ऑप्टिक नर्व को भी नुकसान पहुँचता है जिससे आदमी आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से अंधा हो जाता है। जहरीली शराब पीने से कई लोग अंधे हो जाते हैं और कई मर जाते हैं। आपको अक्सर जहरीली शराब से होने वाली त्रासदी के समाचार पढ़ने को मिल जाते होंगे।
इथेनोइक एसिड
इथेनोइक एसिड एक कार्बोक्सिलिक एसिड है। इसका केमिकल फॉर्मूला CH3COOH है। इसे एसिटिक एसिड भी कहा जाता है। सांद्र एसिटिक एसिड अक्सर जाड़े में जम जाता है इसलिये इसे ग्लेशियल एसिटिक एसिड भी कहते हैं।
एसिटिक एसिड का मेल्टिंग प्वाइंट 290 K है और ब्वायलिंग प्वाइंट 391 K है। यह एक रंगहीन द्रव है जो पानी में हर अनुपात में घुलनशील है। पानी में इथेनोइक एसिड के 5-8% विलयन को विनेगार कहते हैं।
इथेनोइक एसिड की प्रतिक्रिया:
ईस्टरिफिकेशन: जब इथेनोइक एसिड को इथेनॉल के साथ (सांद्र सल्फ्यूरिक एसिड की उपस्थिति में) गर्म किया जाता है तो इससे एक मीठी गंध वाला पदार्थ बनता है; जिसे ईस्टर कहते हैं।
जब ईस्टर को सोडियम हाइड्रॉक्साइड से प्रतिक्रिया कराया जाता है तो इथेनॉल बनता है, और साथ में कार्बोक्सिलिक एसिड का सोडियम साल्ट बनता है। इस प्रतिक्रिया का इस्तेमाल साबुन बनाने में होता है, इसलिये इसे सैपोनोफिकेशन रिएक्शन कहते हैं।
CH3COOC2H5 + NaOH ⇨ C2H5OH + CH3COONa
क्षारक के साथ प्रतिक्रिया: कार्बोक्सिलिक एसिड किसी क्षारक के साथ वैसी ही प्रतिक्रिया करता है जैसे कोई अकार्बनिक एसिड करता है। यह सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ प्रतिक्रिया करके साल्ट और पानी बनाता है।
CH3COOH + NaOH ⇨ CH3COONa + H2O
कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ प्रतिक्रिया: इथेनोइक एसिड और कार्बोनेट या हाइड्रोजन कार्बोनेट प्रतिक्रिया करते हैं तो साल्ट, कार्बन डाइऑक्साइड और पानी का निर्माण करते हैं।
2CH3COOH + NaCO3 ⇨ 2CH3COONa + H2O + CO2
CH3COOH + NaHCO3 ⇨ CH3COONa + H2O + CO2
इथेनोइक एसिड के उपयोग:
- विनेगार की इस्तेमाल कई घ्ररेलू कामों में; जैसे अचार बनाने और कई अन्य डिश बनाने में होता है।
- ईस्टर बनाने में।
- साबुन और डिटर्जेंट
फैटी एसिड के साल्ट को साबुन कहते हैं। वेजिटेबल ऑयल या जानवर की चर्बी को किसी प्रबल क्षार से प्रतिक्रिया कराने से साबुन बनता है। हम जानते हैं कि फैट या तेल ट्राइग्लिसराइड से बनते हैं। जब ट्राइग्लिसराइड किसी क्षारीय विलयन से प्रतिक्रिया करता है तो फैटी एसिड साल्ट और ग्लिसरॉल का निर्माण होता है। ऐसा ट्राइग्लिसराइड के ईस्टर बॉन्ड के टूटने के कारण होता है। इस प्रतिक्रिया को सैपोनिफिकेशन रिएक्शन कहते हैं।
लाइ: साबुन बनाने में इस्तेमाल होने वाले क्षारीय विलयन को लाइ कहते हैं। इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर सोडियम हाइड्रॉक्साइड के कारण होता है क्योंकि यह साबुन बनाने के लिये सबसे अधिक इस्तेमाल होता है।
कच्चे साबुन में कई साल्ट, अधिक फैट, पानी और ग्लिसरॉल होता है। इसे परिष्कृत करके साबुन को उपयोग लायक बनाया जाता है। साबुन का इस्तेमाल नहाने, कपड़े धोने और साफ सफाई के लिये होता है।