10 विज्ञान

हमारा पर्यावरण

ऊर्जा का फ्लो

जब कोई जीव भोजन खाता है तो इसे ऊर्जा का एक स्रोत मिलता है। भोजन से मिली हुई ऊर्जा का इस्तेमाल विभिन्न लाइफ प्रक्रियाओं को चलाने के लिये किया जाता है। इसलिये हम कह सकते हैं कि फूड चेन से होकर ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसलिये फूड चेन को एनर्जी चेन भी कहते हैं। किसी भी फूड चेन से ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है। इसका मतलब है कि ऊर्जा का प्रवाह हमेशा एक निचले ट्रॉफिक लेवल से ऊपर के ट्रॉफिक लेवल की तरफ होता है; और इसका उलटा कतई नहीं होता है।

बायोएक्युमुलेशन: कुछ हानिकारक पदार्थ जब फूड चेन के विभिन्न लेवल से पास करते हैं तो जमा होते जाते हैं। इस घटना को बायोएक्युमुलेशन कहते हैं। बायोएक्युमुलेशन से होने वाली समस्या का सबसे अधिक खतरा सबसे चोटी के ट्रॉफिक लेवल के जीव को सबसे अधिक रहता है।

ओजोन लेयर

ओजोन: ओजोन (O3) का एक मॉलिक्यूल ऑक्सीजन के तीन एटम से बना होता है। आप जानते हैं कि ऑक्सीजन (O2) का इस्तेमाल अधिकर जीवों द्वारा श्वसन के लिये होता है। लेकिन ओजोन एक जहरीली गैस होती है। वायुमंडल का स्ट्रैटोस्फेयर ओजोन से बना होता है इसलिये इसे ओजोन लेयर भी कहते हैं।

ओजोन लेयर सूर्य से आने वाली खतरनाक अल्ट्रावायलेट रेडियेशन को ट्रोपोस्फेयर तक आने से रोकती है। इस तरह से ओजोन लेयर एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। अल्ट्रावायलेट रेडियेशन ऑक्सीजन के कुछ मॉलिक्यूल को तोड़कर फ्री ऑक्सीजन उपलब्ध कराती है। ऑक्सीजन के ये एटम ऑक्सीजन के मॉलिक्यूल के साथ मिलकर ओजोन का मॉलिक्यूल बनाते हैं।

O2 + अल्ट्रावायलेट रेडियेशन ⇨ O+O

O2 + O ⇨ O3

ओजोन लेयर को नुकसान: 1980 के दशक में ओजोन की मात्रा में तेजी से गिरावट आई थी। क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण ऐसा हुआ था। सीएफसी को रेफ्रिजरेटर और एयरोसोल कैन में इस्तेमाल किया जाता है। ओजोन लेयर के नुकसान के कारण ओजोन लेयर में छेद हो गये थे। युनाइटेड नेशन एंवायरनमेंट प्रोग्राम ने 1987 एक समझौता बनाया जिसमें सीएफसी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर फ्रीज करने की बात की गई थी। 1990 के दशक की शुरुआत में सीएफसी को फेज आउट करने के लिये कई देशों ने एक समझौते पर साइन किये। आज अधिकतर देशों में सीएफसी का उत्पादन बंद कर दिया गया है। इससे ओजोन लेयर को बचाने में काफी मदद मिली है।

गारबेज मैनेजमेंट

हर घर से हर दिन भारी मात्रा में कचरा निकलता है। शहरों की सघन आबादी के कारण हर शहर से निकलने वाले कचरे की मात्रा पहाड़ जैसी होती है। एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण बनाये रखने के लिये कचरे का उचित प्रबंधन बहुत जरूरी हो जाता है।

ज्यादातर शहरों में कचरे के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी नगरपालिका पर होती है। हर मुहल्ले में घर के कचरे को कचरे के डब्बे या छोटे डंपिंग साइट पर डाला जाता है। वहाँ से ट्रक में भर कर इस कचरे को लैंडफिल साइट पर ले जाया जाता है। कुछ समय बीतने के बाद लैंडफिल साइट को मिट्टी से ढ़क दिया जाता है ताकि कचरे का डिकम्पोजीशन हो सके।

सारांश