व्यापार से साम्राज्य तक
सर्वोच्चता का दावा
गवर्नर जेनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स (1813-1823) ने सर्वोच्चता की एक नई नीति की शुरुआत की। इस नीति के तहत कम्पनी ने दावा किया कि उसकी सत्ता ही सर्वोच्च थी। कम्पनी अपने हितों की रक्षा करने के लिए किसी भी भारतीय राज्य को अपने कब्जे में ले सकती थी या फिर उसकी धमकी दे सकती थी।
रानी चेन्नम्मा
आजकल के कर्णाटक में स्थित किट्टूर पर रानी चेन्नम्मा का शासन था। रानी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठा लिए। उन्हें 1824 में बंदी बना लिया गया और फिर जेल में ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई। किट्टूर के संगोली में रायन्ना नाम का एक चौकीदार रहता था। उसने उस लड़ाई को आगे जारी रखा। उसे बंदी बना लिया गया और 1830 में फांसी दे दी गई।
पंजाब पर कब्जा
1830 के दशक के आखिरी दौर में कम्पनी को रूस से खतरा दिखने लगा। रूस को भारत में घुसने से रोकने के लिए कम्पनी का उत्तर-पश्चिमी इलाकों पर कब्जा करना जरूरी हो गया था। 1838 से 1842 के बीच चले एक लंबे युद्ध के बाद कम्पनी ने अफगानिस्तान पर परोक्ष रूप से कब्जा कर लिया। सिंध पर 1843 में कब्जा हुआ। महाराजा रणजीत सिंह की 1839 में मृत्यु के बाद कम्पनी ने सिख राज्य के साथ दो लंबी लड़ाईयाँ लड़ी। अंत में 1849 में पंजाब भी कम्पनी के कब्जे में आ चुका था।
विलय नीति
गवर्नर जेनरल लॉर्ड डलहौजी (1848-1856) ने विलय नीति या डॉक्ट्राइन ऑफ लैप्स की शुरुआत की। इस नीति के अनुसार, यदि कोई राजा किसी पुरुष वारिस के बिना मर जाता था तो उसका राज्य समाप्त हो जाता था और वह अपने आप कम्पनी के अधीन हो जाता था। इस तरीके से कई राज्यों पर कब्जा जमा लिया गया, जैसे कि सतारा (1848), सम्बलपुर (1850), उदयपुर (1852), नागपुर (1853) और झांसी (1854)।
अवध पर कब्जा: अंग्रेजों ने कहा कि अवध पर नवाब का कुशासन था। इसलिए अवध के लोगों को उस कुशासन से मुक्त करना कम्पनी की जिम्मेदारी बनती थी। अवध पर 1856 में कब्जा कर लिया गया।
नये शासन की स्थापना
गवर्नर जेनरल वारेन हेस्टिंग्स (1773-1785) ने प्रशासन के क्षेत्र में, खासकर से न्याय के क्षेत्र में कई सुधार किए। 1772 में न्यायपालिका की नई व्यवस्था की शुरुआत हुई। हर जिले में दो कोर्ट बनने थे, एक फौजदारी अदालत और एक दीवानी अदालत। आपराधिक मामलों के लिए फौजदारी अदालत और सिविल मामलों के लिए दीवानी अदालत। जिला कलेक्टर को दीवानी अदालत की कमान सौंपी गई। फौजदारी अदालत अभी भी काजी या मुफ्ती के अधीन थे लेकिन उनका काम भी कलेक्टर की देखरेख में होता था। मौलवियों और हिंदू पंडितों को यहाँ के कानूनों की व्याख्या करने का काम सौंपा गया।
अलग अलग पंडितों द्वारा स्थानीय कानूनों की अलग-अलग व्याख्या से भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। एक जैसा कानून बनाने के लिए ग्यारह पंडितों को हिंदू कानूनों का संग्रह तैयार करने का काम सौंपा गया। एन बी हाल्हेड को 1775 में इस संकलन का अंग्रेजी अनुवाद का काम दिया गया। इसी तरह 1778 में मुस्लिम कानूनों का संग्रह तैयार हुआ।
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत एक नये सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई। इसके अलावा, कलकत्ता में सदर निजामत अदालत बनी जो कि एक अपीलिय अदालत थी।
कलेक्टर अब जिले का एक मुख्य पद हो गया। उसका मुख्य काम था लगान की वसूली और कानून व्यवस्था कायम करना। उसका दफ्तर कलेक्टरेट कहलाता था। अब कलेक्टरेट सत्ता और संरक्षण का नया केंद्र बन चुका था, जिसने धीरे धीरे सत्ता के पुराने केंद्रों की जगह ले ली।
कम्पनी की सेना
1820 के दशक से युद्ध की टेक्नॉलोजी बदलने लगी थी। मुगल शासन में सेना में सवार का महत्व होता था। बंदूकों के आ जाने से सवार का महत्व कम हो गया और पैदल सैनिकों का महत्व बढ़ गया। अंग्रेजों ने एक ऐसी सेना का निर्माण शुरु किया जिसमें ड्रिल और अनुशासन पर अधिक जोर था। अब सिपाहियों की नियमित ट्रेनिंग होती थी।
1857 आते आते कम्पनी का प्रत्यक्ष शासन देश के 63 प्रतिशत हिस्सों पर हो चुका था। कुल मिलाकर देश की 78 प्रतिशत आबादी पर कम्पनी का शासन हो चुका था।