जीवों में प्रजनन
वेजिटेटिव प्रोपगेशन
कई प्लांट वेजिटेटिव प्रोपागेशन द्वारा प्रजनन की क्षमता रखते हैं। जब किसी वेजिटेटिव पार्ट से एक नये प्लांट का जन्म होता है तो इस प्रक्रिया को वेजिटेटिव प्रोपागेशन कहते हैं। वेजिटेटिव प्रोपागेशन जड़, तना या पत्ती द्वारा हो सकता है।
तने द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन: आलू, अदरक, हल्दी आदि में तने द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन होता है। आलू के ट्यूबर के ऊपर कई छोटे-छोटे गड्ढ़े होते हैं। इन गड्ढ़ों को आलू की “आँखें’ कहते हैं। आलू की हर ‘आँख’ एक नये प्लांट को जन्म दे सकती है।
जड़ द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन: गाजर, डहेलिया, मूली, आदि जड़ द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन करते हैं।
पत्ती द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन: ब्रायोफाइलम अपनी पत्ती द्वारा वेजिटेटिव प्रोपागेशन करता है। इस पौधे की पत्ती के किनारे पर कई नन्हें पौधे निकलते हैं जो बाद में विकसित होकर नया प्लांट बनाते हैं।
कृत्रिम वेजिटेटिव प्रोपागेशन: मनुष्य सदियों से कृत्रिम तरीके से पौधों में वेजिटेटिव प्रोपागेशन कराता रहा है। इस विधि से हम कई पेड़-पौधे उगाते हैं; जैसे गुलाब, उड़हुल, अमरूद, आम, आदि। कृत्रिम तरीके से वेजिटेटिव प्रोपागेशन करने की विधियाँ निम्नलिखित हैं।
स्टेम कटिंग: यह वेजिटेटिव प्रोपागेशन का सबसे मशहूर तरीका है। स्टेम कटिंग से गुलाब, आम, क्रॉटन, गन्ना, इत्यादि उगाए जाते हैं। इसके लिये स्टेम का एक हिस्सा काट लिया जाता है। यह ध्यान रखा जाता है कि स्टेम कटिंग में कम से कम एक नोड हो। इस कटिंग को सीधा खड़ा करके जमीन में लगा देते हैं। लगभग सात से दस दिनों में स्टेम कटिंग से नया पौधा निकल जाता है।
लेयरिंग: इस विधि में स्टेम के किसी छोटे हिस्से की खाल छील दी जाती है। इस छिले हुए भाग पर मिट्टी की एक परत चढ़ाई जाती है जिसे प्लास्टिक या पुआल से लपेट दिया जाता है। इसके ऊपर नियमित रूप से लगभग पंद्रह दिनों तक पानी पटाया जाता है। उसके बाद इस भाग को काटकर कहीं और लगाया जा सकता है। लेयरिंग को हवा या जमीन पर किया जा सकता है। इसलिये इसे माउंड लेयरिंग या एरियल लेयरिंग कहते हैं।
ग्राफ्टिंग: इस तरीके से एक ही प्लांट पर किसी फल या फूल की दो किस्मों को उगाया जा सकता है। इस विधि में एक प्लांट के स्टेम कटिंग को दूसरे प्लांट के स्टेम से जोड़ा जाता है। जिस स्टेम के ऊपर कटिंग को जोड़ा जाता है उसे स्टॉक कहते हैं। दूसरे प्लांट से आये स्टेम को सियॉन कहते हैं। दोनों तनों को एक साथ बाँधकर मिट्टी और पुआल से ढ़क दिया जाता है। कुछ समय बीतने पर सियॉन अपने स्टॉक वाले प्लांट का अभिन्न हिस्सा बन जाता है।
वेजिटेटिव प्रोपागेशन के लाभ:
- इससे नया प्लांट उगने में कम समय लगता है।
- संतान अपने पैरेंट प्लांट की क्लोन होती है।
- इस विधि से उगने वाले प्लांट पर फल, फूल और बीज लगने में कम समय लगता है।
- इस विधि से किसान किसी प्लांट की किस्म और उपज को बहुत हद तक कंट्रोल कर सकते हैं; इसलिये यह विधि किसानों के लिये बहुत फायदेमंद साबित होती है।
स्पोर से प्रजनन
कुछ सरल लेकिन मल्टिसेल्युलर जीवों में स्पेशल रिप्रोडक्टिव स्ट्रक्चर होते हैं। इनमें स्पोर बनता है और इन्हें स्पोरैंजियम कहते हैं। स्पोर बहुत ही छोटे होते हैं और यूनिसेल्युलर होते हैं। जब स्पोरैंजियम पक जाता है तो फूटता है जिससे स्पोर इधर उधर बिखर जाते हैं। उसके बाद ये स्पोर हवा या पानी द्वारा दूर दूर तक बिखेर दिये जाते हैं। कब किसी स्पोर को सही सतह मिलती है तो यह जर्मिनेट होता है और फिर एक नये प्लांट का जन्म होता है। उदाहरण: राइजोपस (ब्रेड मोल्ड) और कई अन्य फंजाई।