धातु और अधातु
धातु और लवण के विलयन की प्रतिक्रिया
जब एक अधिक प्रतिक्रियाशील धातु किसी कम प्रतिक्रियाशील धातु के साल्ट के साथ प्रतिक्रिया करती है तो यह कम प्रतिक्रियाशील धातु को विस्थापित करके अपना साल्ट बनाती है।
Metal A + Salt of metal B ⇨ Salt of metal A + Metal B
उदाहरण: जब लोहे की कील को कॉपर सल्फेट के विलयन में रखा जाता है तो कॉपर सल्फेट के विलयन का नीला रंग गायब हो जाता है और विलयन हल्के हरे रंग का हो जाता है। ऐसा आयरन सल्फेट के बनने के कारण होता है।
Fe + CuSO4 ⇨ FeSO4 + Cu
रिएक्टिविटी सीरीज
धातुओं को उनकी प्रतिक्रियाशीलता के अनुसार एक क्रम में लगाया जा सकता है। धातुओं की ऐसी सीरीज को रिएक्टिविटी सीरीज कहते हैं। इस सीरीज के अनुसार, पोटाशियम सबसे अधिक प्रतिक्रियाशील होता है, जिसके बाद सोडियम का नम्बर आता है। गोल्ड और सिल्वर इस सीरीज में सबसे नीचे होते हैं।
K ⇨ Na ⇨ Ca ⇨ Mg ⇨ Al ⇨ Zn ⇨ Fe ⇨ Pb ⇨ H ⇨ Cu ⇨ Hg ⇨ Ag ⇨ Auधातु और अधातु के बीच प्रतिक्रिया होने का कारण
धातु और अधातु के बीच होने वाली प्रतिक्रिया को समझने के लिये एक धातु और एक अधातु का उदाहरण लेते हैं; जैसे सोडियम और क्लोरीन। सोडियम और क्लोरीन के इलेक्ट्रॉनिक कनफिगरेशन नीचे दिये गये हैं।
Na (11): 2, 8, 1
Cl (17): 2, 8, 7
आपने पढ़ा होगा कि हर तत्व अपने नजदीकी नोबल गैस जैसा इलेक्ट्रॉनिक कनफिगरेशन पाने की कोशिश करता है; ताकि उसकी बाहरी कक्षा पूरी तरह से भर जाये। सोडियम की बाहरी कक्षा में 1 इलेक्ट्रॉन है। अगर यह 1 इलेक्ट्रॉन दान कर दे तो इसकी बाहरी कक्षा पूरी तरह से भरी होगी। क्लोरीन की बाहरी कक्षा में 7 इलेक्ट्रॉन हैं। यदि इसे 1 इलेक्ट्रॉन मिल जाये तो इसकी बाहरी कक्षा पूरी तरह से भरी होगी। इसलिये सोडियम और क्लोरीन बड़ी आसानी से मिलकर सोडियम क्लोराइड का निर्माण करते हैं। इसे लेविस डॉट संरचना द्वारा दिखाया जा सकता है। एक इलेट्रॉन दान करके सोडियम अपना सोडियम (Na+) आयन बनाता है। एक इलेक्ट्रॉन पाकर क्लोरीन अपना क्लोरीन (Cl-) आयन बनाता है।
आयनिक कंपाउंड के गुण
आयनिक कंपाउंड: इलेक्ट्रॉन के खोने और पाने से जो कंपाउंड बनता है उसे आयनिक कंपाउंड कहते हैं। आयनिक कंपाउंड निम्नलिखित गुण दिखाते हैं।
- आयनिक बॉन्ड में एक मजबूत आकर्षण बल होता है। इसलिये रूम के तापमान पर आयनिक कंपाउंड ठोस अवस्था में होते हैं। ये अक्सर भंगुर होते हैं और दबाव डालने पर टुकड़ों में टूट जाते हैं।
- आयनिक बॉन्ड को तोड़ने के लिये अत्यधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। इसलिए आयनिक कंपाउंड के मेल्टिंग और ब्वायलिंग प्वाइंट उच्च होते हैं।
- आयनिक कंपाउंड पानी में घुलनशील होते हैं लेकिन कार्बनिक विलायकों में अघुलनशील होते हैं।
- जब आयनिक कंपाउंड विलयन में होता है तो आयनों में गतिशीलता आ जाती है। इसलिये आयनिक कंपाउंड का विलयन विद्युत का सुचालक होता है। जब आयनिक कंपाउंड ठोस अवस्था में होता है तो दृढ़ संरचना के कारण आयनों में गतिशीलता नहीं होती है। इसलिये ठोस अवस्था में आयनिक कंपाउंड विद्युत के कुचालक होते हैं। लेकिन गलित अवस्था में आयनिक कंपाउंड विद्युत के सुचालक होते हैं।