ऊर्जा के स्रोत
परंपरागत ऊर्जा के इस्तेमाल की तकनीक में सुधार
तकनीक में सुधार लाने से ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों को बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिये जलावन की लकड़ी का उदाहरण लेते हैं। पुराने तरीके से लकड़ी जलाने से बहुत धुँआ निकलता है जिससे परेशानी होती है। लकड़ी को ऑक्सीजन की सीमित मात्रा में जलाने से चारकोल बनता है। चारकोल एक बेहतर ईंधन होता है क्योंकि यह बगैर धुँए के जलता है।
परंपरागत ईंधन का एक अन्य उदाहरण है गोबर। गाँवों में गोबर के उपले ईंधन के तौर पर रसोई में इस्तेमाल होते हैं। गोबर और दूसरे फार्म वेस्ट को बायोगैस (गोबर गैस) बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
गोबर गैस प्लांट: एक गोबर गैस प्लांट में एक डाइजेस्टर होता है जिसका ऊपरी हिस्सा गुम्बद के आकार का होता है। गोबर और फार्म वेस्ट को पानी के साथ मिलाकर स्लरी बनाई जाती है। स्लरी को डाइजेस्टर में डाला जाता है। डाइजेस्टर एक एयर टाइट चैम्बर होता है जिसमें एनेयरोबिक माइक्रोब द्वारा डिकम्पोजीशन किया जाता है। इससे बायोगैस बनती है। बायोगैस का लगभग 75% भाग मीथेन से बना होता है। बायोगैस बिना धुँए के जलती है। बायोगैस को किसी टैंक में स्टोर किया जाता है और फिर इसे किचेन फ्यूल की तरह और रोशनी के लिये इस्तेमाल किया जाता है। डाइजेस्टर में जो स्लरी बच जाती है वह एक अच्छी खाद का काम करती है।
पवन ऊर्जा: पवन ऊर्जा का इस्तेमाल सदियों से होता आया है। मध्यकालीन युग में पवन ऊर्जा का इस्तेमाल पाल वाले जहाजों को चलाने में किया जाता था। बीसवीं सदी की शुरुआत तक पवन ऊर्जा का इस्तेमाल आरा मिल, आटा चक्की और पानी खींचने के लिये किया जाता था। आजकल पवन ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिये किया जाता है। पवन ऊर्जा से बिजली बनाने के मामले में आज जर्मनी सबसे आगे है। भारत में तमिल नाडु इस मामले में अग्रणी है।
ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत
ऊर्जा के जिन स्रोतों का इस्तेमाल हाल में ही शुरु हुआ है उन्हें ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत कहते हैं। इनमें से कुछ से अच्छे रिजल्ट मिल रहे हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर अभी एक्सपेरिमेंटल स्टेज में ही हैं और अभी उनको इस्तेमाल करना काफी महंगा साबित हो रहा है।
सौर ऊर्जा
सूर्य हमारे लिये ऊर्जा का सबसे अहम स्रोत है। सूर्य से तब तक ऊर्जा मिलती रहेगी जब तक सोलर सिस्टम रहेगा। यह ऊर्जा का ऐसा स्रोत है जो कभी खत्म नहीं होगा और जिससे कोई प्रदूषण नहीं होता है। सोलर एनर्जी को हारनेस करने के कई तरीके हैं। उनमें से कुछ नीचे दिये गये हैं।
सोलर कुकर: सोलर कुकर दो तरह के डिजाइन में आता है। एक डिजाइन में एक कॉन्केव मिरर लगा होता है जिसके फोकस पर बरतन को रखना होता है। कॉन्केव मिरर एक कंवर्जिंग मिरर होता है; इसलिये यह सारी हीट एनर्जी को फोकस पर केंद्रित करता है। इससे बरतन गर्म हो जाता है और खाना पकता है। दूसरे डिजाइन में एक चौकोर डब्बा होता है जिसकी भीतरी दीवारों पर मिरर लगे होते हैं। बॉक्स का ढ़क्कन ट्रांसपैरेंट ग्लास का होता है। जब बॉक्स को बंद किया जाता है तो उसमें से सोलर रेडियेशन बाहर नहीं निकल पाती है।
फोटोवोल्टाइक सेल: यह एक डेवाइस है जो सोलर एनर्जी को इलेक्ट्रिकल एनर्जी में बदल देता है। इस इलेक्ट्रिकल एनर्जी को बैटरी में स्टोर किया जाता है ताकि बाद में इस्तेमाल किया जा सके। आप छतों पर या सोलर फार्म में बड़े बड़े सोलर पैनल देख सकते हैं; जिनमें हजारों फोटोवोल्टाइक सेल लगे होते हैं।
इलेक्ट्रिसिटी जेनरेशन: कुछ सोलर पावर प्लांट में सूर्य से मिलने वाली हीट के इस्तेमाल से पानी को गर्म करके स्टीम बनाई जाती है। फिर इस स्टीम से टरबाइन चलाया जाता है जिससे बिजली बनती है।
सोलर एनर्जी के लाभ: सोलर एनर्जी नॉन-एक्झॉस्टिबल और नॉन-पॉल्युटिंग होता है।
सोलर एनर्जी की खामियाँ: सोलर एनर्जी को हारनेस करने की जो टेक्नॉलोजी अभी है वह बहुत महँगी है। इसलिये अभी इसका बढ़ चढ़ कर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सोलर एनर्जी को दिन के वक्त ही हारनेस किया जा सकता है। यह उन्हीं स्थानों पर कारगर हो सकता है जहाँ साल के अधिकतर दिनों में प्रचुर मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती है। इसे जाड़े या बारिश के दिनों में या ठंडी जलवायु में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।