राष्ट्रीय आंदोलन
1922 से 1929 की घटनाएँ
चौरी चौरा
इस गाँव के पास एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने गोली चला दी थी। उसके विरोध में भीड़ ने चौरी चौरा के थाने में आग लगा दी। उस घटना में बाइस पुलिस वाले मारे गए। इस घटना से आहत होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला लिया।
उसके बाद गांधीजी के अनुयायी ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस का आधार बनाने के उद्देश्य से कुछ ठोस काम करना चाहते थे। दूसरी ओर, कुछ नेता परिषद का चुनाव लड़ना चाहते थे। वे सरकार में शामिल होना चाहते थे ताकि कुछ नीतियों पर अपना असर डाल सकें। 1920 के दशक के मध्यकालीन दौर में गांधीवादी नेताओं ने गाँवों में काम किया जिससे उनका जनाधार काफी बढ़ गया। उस मजबूत जनाधार का फायदा सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान देखने को मिला।
इसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई थी। क्रांतिकारी नेता भगत सिंह इसी दौरान सक्रिय थे।
साइमन कमीशन
भारत के राजनीतिक भविष्य को तय करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 1927 में एक कमीशन बनाने का फैसला किया। उस कमीशन के मुखिया का नाम लॉर्ड साइमन था। लेकिन उस कमीशन में एक भी हिंदुस्तानी नहीं था। कमीशन में भारतीय की अनुपस्थिति से यहाँ के राजनीतिक समूहों में काफी गुस्सा था।
दांडी मार्च
उस समय नमक बनाने और बेचने का एकाधिकार सरकार के पास था, यानि सरकार को छोड़कर यदि कोई भी नमक बनाता तो उसे नमक पर टैक्स देना पड़ता था। महात्मा गांधी का कहना था कि नमक ऐसी वस्तु है जिसे गरीब और अमीर हर कोई एक जैसा इस्तेमाल करता है। इसलिए नमक जैसी जरूरी चीज पर टैक्स लगाना गलत है। गांधीजी ने घोषणा की कि वे नमक का कानून तोड़ेंगे। अपने अनुयायियों के साथ महात्मा गांधी ने साबरमती से दांडी तक की पैदल यात्रा की। दांडी पहुँचकर समुद्र तट से एक मुट्ठी नमक उठाकर नमक पर टैक्स का विरोध जताया।
शुरु में अंग्रेजों को लगता था कि गांधी जी पर बुढ़ापे का असर हो चुका है और वे अनर्गल बात कर रहे हैं। भारत के कई नेताओं को भी ऐसा ही लगता था। उन्हें लगता था कि नमक जैसी मामूली चीज के मुद्दे पर सबको एकजुट करना असंभव है। लेकिन नमक का इस्तेमाल हर कोई करता है, इसलिए हर कोई इससे प्रभावित होता है। शायद इसलिए नमक आंदोलन को अपार जनसमर्थन मिला। उस आंदोलन में हर क्षेत्र के लोग आगे आये, जिनमें किसान, आदिवासी और महिलाएँ भी शामिल थीं। सरकार ने उस आंदोलन को कुचलने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। हजारों लोगों को जेल में ठूँस दिया गया। सभी बड़े नेताओं को हिरासत में ले लिया गया।
उसके बाद 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट ने प्रदेशों की स्वायत्तता का सुझाव दिया। 1927 में प्रदेशों के परिषदों के चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 में से 7 प्रदेशों में सरकार बनाई।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरु हुआ। कांग्रेस नेता हिटलर की आलोचना करते थे। इसलिए उन्होंने उस युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन करने का फैसला किया। उस समर्थन के एवज में वे युद्ध के बाद भारत की आजादी चाहते थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार ने उस माँग को ठुकरा दिया। उसके विरोध में कांग्रेस की सरकारों ने इस्तीफा दे दिया।
भारत छोड़ो
जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था तभी महात्मा गांधी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन को नये सिरे से शुरु करना चाह रहे थे। गांधी जी ने लोगों को करो या मरो का नारा दिया। महात्मा गांधी और कई अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बावजूद आंदोलन में कोई कमी नहीं आई। किसानों और युवाओं ने उस आंदोलन में भारी संख्या में भाग लिया। पूरे देश में सत्ता के प्रतीकों पर हमले हुए। टेलिफोन के तार काट दिये गए। कई इलाकों में लोगों ने अपनी सरकारें बना लीं।
अंग्रेजी सरकार ने बर्बरता से जवाब दिया। 1943 के अंत तक 90,000 से अधिक लोगों को कैद कर लिया गया और एक हजार लोग पुलिस की गोली से मारे गए। लेकिन अंत में अंग्रेजी राज को झुकना पड़ा।
आजादी और विभाजन
अलग राष्ट्र की माँग
1940 में मुस्लिम लीग ने देश के उत्तर पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए स्वायत्त प्रदेश की मांग रखी। 1930 के दशक के आखिरी दौर से लीग हिंदू और मुसलमानों को अलग अलग राष्ट्रों के रूप में देखने लगी थी। 1920 और 1930 के दशक में उस मानसिकता के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ता गया। 1937 में जब प्रादेशिक परिषदों के चुनाव परिणाम आए तो मुस्लिम लीग को पूरी तरह लगने लगा था कि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। लीग को लगता था कि भविष्य के किसी भी लोकतांत्रिक ढ़ाँचे में मुसलमानों को छोटी भूमिका ही मिलने वाली थी। 1937 में जब कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो इससे लीग का गुस्सा और बढ़ गया।
1930 के दशक में मुसलमानों को अपनी तरफ लाने में कांग्रेस विफल रही थी। इससे लीग को अपना जनाधार मजबूत करने का मौका मिल गया था। जब 1945 में युद्ध समाप्त हुआ तो अंग्रेजों ने भारत की स्वतंत्रता को लेकर अपने और कांग्रेस था मुस्लीम लीग के बीच बातचीत शुरु कर दी। लीग पाकिस्तान की माँग पर अड़ी हुई थी।
कैबिनेट मिशन
1946 के मार्च महीने में तीन सदस्यों वाली कैबिनेट मिशन को दिल्ली भेजा गया ताकि आजाद भारत की रूपरेखा तैयार की जा सके। उस मिशन ने एक ढ़ीले ढ़ाले संघ का सुझाव दिया, जिसमें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कुछ स्वायत्तता मिले। लेकिन उस सुझाव के कई बिंदुओं पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सहमति नहीं बनी।
कैबिनेट मिशन की विफलता के बाद मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की माँग को लेकर आंदोलन करने का फैसला किया। लीग ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट ऐक्शन डे का नाम दिया। इस तारीख को कलकत्ता में दंगे भड़क उठे। कई दिनों तक चलने वाले उस दंगे में हजारों लोग मारे गए। मार्च 1947 तक उत्तरी भारत के कई हिस्सों में हिंसा फैल गई। आखिरकार, देश का विभाजन हो गया और भारत और पाकिस्तान नाम के दो नए राष्ट्रों का जन्म हुआ।