कपड़ा और स्टील
NCERT अभ्यास
प्रश्न 1: यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?
उत्तर: यूरोप में भारत के कपड़ों की भारी माँग थी। भारत के सूत के महीन कपड़े जैसे मलमल की अच्छी माँग की थी। इसके अलावा, भारत से पहुँचने वाले छींटदार प्रिंट और महीन कशीदाकारी वाले कपड़ों की भी अच्छी माँग थी।
प्रश्न 2: जामदानी क्या है?
उत्तर: जामदानी एक तरह का महीन मललम होता है जिसपर सूती धागे या सोने के धागे से बारीक डिजाइन बने होते हैं। जामदानी का कपड़ा अक्सर सलेटी और सफेद होता है। आज के ढ़ाका और उत्तर प्रदेश में जामदानी की बुनाई के महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करते थे।
प्रश्न 3: बंडाना क्या है?
उत्तर: चटख रंगों की छपाई वाले स्कार्फ को बंडाना कहते हैं। यह शब्द बांधना से आया है। बंधनी एक कला है जिसमें कपड़े पर कई जगह गाँठें बांधने के बाद उसे विभिन्न रंगों से रंगा जाता है। कपड़े को सुखाने पर जब गाँठें खोल दी जाती हैं तो कपड़े पर अनोखा डिजाइन मिलता है।
प्रश्न 4: अगारिया कौन होते हैं?
उत्तर: यह एक समुदाय का नाम है। अगारिया समुदाय के लोगों को लोहा गलाने और उससे स्टील बनाने में महारत हासिल थी।
प्रश्न 5: रिक्त स्थान भरें:
- अंग्रेजी का शिंट्ज शब्द हिंदी के ............. शब्द से निकला है।
- टीपू की तलवार ............ स्टील से बनी थी।
- भारत का कपड़ा निर्यात ............... सदी में गिरने लगा।
उत्तर: (a) छींट, (b) वूट्ज, (c) उन्नीसवीं
प्रश्न 6: विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर: विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहास के बारे में बहुत कुछ पता चलता है। सबसे बड़ी बात जो सामने आती है वह उन कपड़ों के उद्गम के बारे में होती है, यानि वे कहाँ से आते थे। कई बार किसी कपड़े के नाम से यह पता चलता है कि वह किस रास्ते से होते हुए किसी बाजार में पहुँचा था। यदि हम शिंट्ज का उदाहरण लें तो पता चलता है कि यह भारत के शब्द छींट से विकसित हुआ है, यानि इस तरह के कपड़े भारत से ब्रिटेन पहुँचे थे। यदि हम मसलिन की बात करें तो इससे पता चलता है कि यह ईरान के मोसुल के रास्ते से यूरोप पहुँचा।
प्रश्न 7: इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था?
उत्तर: भारत के कपड़े इंग्लैंड में बहुत लोकप्रिय थे और उनकी बहुत माँग थी। उनसे मिलने वाली प्रतिस्पर्द्धा के कारण इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादक संतोषजनक व्यवसाय नहीं कर पाते थे। इसलिए इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध किया था।
प्रश्न 8: ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?
उत्तर: ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर बुरे प्रभाव पड़े। ब्रिटेन की मिलों में बनने वाले कपड़े इतने सस्ते होते थे कि भारत के अधिकत लोगों की जेबों की पहुँच में थे। इससे भारत में उत्पादित होने वाले कपड़े की माँग घटने लगी थी।
प्रश्न 9: उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?
उत्तर: उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग के पतन के दो मुख्य कारण थे, जो नीचे दिए गये हैं।
- ब्रिटेन से स्टील आयात होने लगा।
- नये वन कानूनों ने छोटे पैमाने पर लोहा बनाने वालों को वनों और खानों से दूर कर दिया।
प्रश्न 10: भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा?
उत्तर: भारतीय कपड़ा उद्योग को अपने शुरुआती सालों में कई समस्याओं से जूझना पड़ा। सबसे बड़ी समस्या थी ब्रिटेन से होने वाला आयात। एक समय था जब भारत में खपत होने वाले कपड़ों का दो तिहाई ब्रिटेन में बने कपड़ों से पूरा होता था। उपनिवेशी सरकार यहाँ के व्यापारियों को किसी भी तरह का संरक्षण नहीं देती थी। जबकि ब्रिटेन में स्थानीय उद्योग को संरक्षण देने के लिए भारी आयात शुल्क लगाया जाता था।
प्रश्न 11: पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली?
उत्तर: जब प्रथम विश्व युद्ध शुरु हुआ तो ब्रिटेन के स्टील उत्पादकों को युद्ध की जरूरतों को पूरा करने में व्यस्त रखा गया। ऐसे समय में रेलवे लाइन विछाने के लिए जरूरी लोहे की सप्लाई का काम टिस्को को मिल गया। टिस्को ने रेल के पहिये और तोप के गोलों के खोल भी बनाने शुरु किए। 1919 तक टिस्को में बनने वाले स्टील का नब्बे प्रतिशत उपनिवेशी सरकार खरीद लेती थी। इस तरह से धीरे धीरे ब्रिटिश साम्राज्य में टिस्को सबसे बड़ा स्टील उत्पादक बन गया।