ग्रामीण क्षेत्रों पर शासन
NCERT अभ्यास
प्रश्न 1: निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ
Column A | Column B |
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(a) रैयत | (1) ग्राम समूह |
(b) महाल | (2) किसान |
(c) निज | (3) रैयतों की जमीन पर खेती |
(d) रैयती | (4) बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती |
उत्तर: (a) 2, (b) 1, (c) 4, (d) 3
प्रश्न 2: रिक्त स्थान भरें
- यूरोप में वोड उत्पादकों को .................. से अपनी आमदनी में गिरावट का खतरा दिखाई देता था।
- अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग ........... के कारण बढ़ने लगी।
- ............. की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय माँग पर बुरा असर पड़ा।
- चम्पारण आंदोलन ................ के खिलाफ था।
उत्तर: (a) नील, (b) औद्योगीकरण, (c) कृत्रिम डाई, (d) नील बागान मालिकों
प्रश्न 3: स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: 1793 में परमानेंट सेटलमेंट की व्यवस्था शुरु की गई। इस व्यवस्था के तहत राजा और तालुकदारों को जमींदार बना दिया गया और उन्हें किसानों से लगान वसूलने की जिम्मेदारी दे दी गई। लगान की एक निश्चित राशि को हमेशा के लिए तय किया गया।
कम्पनी के अफसरों को लगता था कि इससे लगान नियमित रूप से मिलता रहेगा। उन्हें यह भी लगता था कि इससे जमींदारों को भूमि में निवेश करने की प्रेरणा मिलेगी। लगान की राशि नहीं बढ़ने वाली थी इसलिए ऐसा माना गया कि उत्पादन बढ़ने से जमींदारों को फायदा होगा।
प्रश्न 4: महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
उत्तर:
महालवारी व्यवस्था | स्थायी बंदोबस्त |
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लगान वसूलने का काम गाँव के मुखिया को दिया गया। | लगान वसूलने का काम जमींदारों और राजाओं को दिया गया। |
लगान की राशि को समय समय पर बढ़ाना था। | लगान की राशि हमेशा के लिए एक ही रहने वाली थी। |
प्रश्न 5: राजस्व निर्माण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर: लगान की राशि बहुत अधिक थी। किसानों को लगान देने में मुश्किल हो रही थी। इसलिए रैयत गाँवों से पलायन करने लगे और गाँव के गाँव खाली होने लगे।
प्रश्न 6: रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?
उत्तर: सट्टे पर दस्तखत करने के बाद रैयत को बागान मालिक से कैश में एडवांस मिल जाता था। कर्ज लेने के बाद रैयत को कम से कम 25 प्रतिशत जमीन पर नील की खेती करनी पड़ती थी। लेकिन बागान मालिकों द्वारा सस्ते में नील खरीदे जाने के कारण रैयत हमेशा कर्ज के चक्र में फँसा रहता था। इसलिए रैयत नील की खेती करने से कतरा रहे थे।
प्रश्न 7: किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?
उत्तर: मार्च 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील उगाने से मना कर दिया। रैयतों ने बागान मालिकों को किराया देने से मना कर दिया और नील की फैक्ट्री पर आक्रमण करने लगे। उस विद्रोह में उन्हें मुखिया और जमींदार का समर्थन भी मिला।
नील की खेती के सिस्टम की जाँच करने के लिए एक नील आयोग का गठन हुआ। कमीशन ने बागान मालिकों को दोषी करार दिया। कमीशन ने रैयत से कहा कि पुराने सट्टे का सम्मान करें और उसके बाद वे नील की खेती करने या न करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र थे।
उस विद्रोह के बाद बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया।