प्राणियों में पोषण
ग्रंथियाँ
लार-ग्रंथियाँ
मुँह में तीन जोड़ी लार-ग्रंथियाँ होती हैं। लार ग्रंथियों से लार निकलती है जिसमें एमाइलेज नाम का एंजाइम होता है। भोजन में लार मिल जाने से भोजन को निगलने में सहूलियत होती है।
यकृत
यह आमाशय के ऊपर पेट के ऊपरी दाहिने भाग में स्थित होता है। यकृत का रंग गहरा लाल-भूरा होता है। यकृत मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यकृत में पित्त का निर्माण होता है। यकृत में बनने के बाद पित्त जाकर पित्ताशय (गॉल ब्लैडर) में जमा होता है, जहाँ से यह जरूरत के अनुसार छोटी आँत में भेज दिया जाता है।
अग्न्याशय
यह आमाशय के नीचे स्थित रहता है। अग्न्याशय से पाचक रस निकलकर छोटी आँत में पहुँचता है। अग्न्याशय से इंसुलिन नाम का हॉर्मोन भी निकलता है जो ग्लूकोज के उपापचय में अहम भूमिका निभाता है।
पाचन
मुँह में पाचन
मुँह में स्टार्च का पाचन होता है। लार ग्रंथि में उपस्थित एमाइलेज नाम का एंजाइम स्टार्च को शर्करा में बदल देता है। इसी वजह से जब आप रोटी को अधिक देर तक चबाते हैं तो वह मीठी लगने लगती है।
आमाशय में पाचन
आमाशय में प्रोटीन का आंशिक पाचन होता है।
छोटी आंत में पाचन
भोजन का पाचन छोटी आँत में सम्पन्न होता है। पित्ताशय से आने वाला पित्त वसा का इमल्शिफिकेशन करता है यानि उसे छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ देता है ताकि वसा का पाचन आसानी से हो सके। इसके अलावा, पित्त के कारण छोटी आँत का माध्यम क्षारीय हो जाता है जो एंजाइमों के काम करने के लिए जरूरी होता है। पाचन के बाद अम्ल बदलकर फैटी एसिड बन जाता है और प्रोटीन बदलकर एमीनो एसिड बन जाता है।
अवशोषण
छोटी आँत के आगे के हिस्से में आंतरिक दीवार में अंगुलियों के आकार के असंख्य प्रवर्ध होते हैं जिन्हें दीर्घरोम या रसांकुर (विल्लाई) कहते हैं। विल्लाई में रक्त वाहिकाओं का जाल होता है। विल्लाई का काम है पाचन के बाद सरल पदार्थों का अवशोषण। विल्लाई की बड़ी संख्या के कारण छोटी आँत का पृष्ठ क्षेत्रफल बढ़ जाता है जिससे अवशोषण के लिए प्रचुर मात्रा में सतह मिल जाती है। विल्लाई के कारण छोटी आँत अधिक संकरी हो जाती है, जिससे भोजन वहाँ अधिक देर तक ठहर पाता है और अवशोषण के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है।
स्वांगीकरण
अवशोषित पदार्थों को कोशिकाओं द्वारा जटिल पदार्थ बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं। कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा निकलती है जिसका इस्तेमाल विभिन्न कामों के लिए किया जाता है।
घास खाने वाले जंतुओं में पाचन
घास में सेल्यूलोज नाम का कार्बोहाइड्रेट होता है। जंतुओं में कार्बोहाइड्रेट को पचाने की क्षमता नहीं होती है। फिर सवाल यह उठता है कि घास खाने वाले जंतु कार्बोहाइड्रेट का पाचन किस तरह कर पाते हैं। इन जंतुओं में आमाशय की रचना अत्यंत जटिल होती है। इन जंतुओं के आमाशय में चार चैंबर होते हैं: रूमेन, रेटिकुलम, ओमासम और एबोमासम। रूमेन सबसे पहला चैंबर होता है जिसे प्रथम आमाशय भी कहते हैं। घास खाने वाले जानवर (गाय, भैंस, बकरी, आदि) जल्दी जल्दी घास को चरते हैं और आधी चबाई हुई घास को रूमेन में भेज देते हैं। रूमेन में रूमिनैंट बैक्टीरिया रहते हैं जो सेल्यूलोज का विघटन कर देते हैं। उसके बाद भोजन को फिर से मुँह में ले जाया जाता है और फिर उसे अच्छी तरह चबाया जाता है ताकि आगे का पाचन हो सके। आपने देखा होगा कि गाय या भैंस आराम से बैठकर जुगाली या रोमंथन करती रहती है।
अमीबा में पाचन
अमीबा एककोशिकीय जीव है जो जलाशयों में रहता है। अमीबा की कोशिका में एक केंद्रक होता है और बुलबुले जैसी कई धानियाँ होती हैं। अमीबा का आकार अनियमित होता है, क्योंकि यह अपनी कोशिका झिल्ली से पादाभ बनाता रहता है। जब कोई खाद्य पदार्थ अमीबा के पास आता है तो अमीबा पादाभ बनाकर उसे घेर लेता है। उसके बाद भोजन को भोजन धानी के भीतर ले लिया जाता है। भोजन धानी में पाचक रस द्वारा पाचन होता है। उसके बाद अपचित अपशिष्ट को कोशिका से बाहर निकाल दिया जाता है।