पवन
गतिशील वायु को पवन कहते हैं। हवा या वायु के कुछ गुण नीचे दिये गये हैं।
- वायु दाब डालती है। जब हम गुब्बारे में हवा भरते हैं तो वायु द्वारा डाले गये दाब के कारण गुब्बारा फूल जाता है।
- पवन का वेग बढ़ने पर वायु का दाब घट जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो तेज हवा चलने से हवा का दाब घट जाता है। जब आँधी चलती है तो फूस या टिन की छत उड़ जाती है। ऐसा इसलिए होता है कि टिन की छत के ऊपर से गुजरने वाली तेज गति की पवन के कारण दाब कम हो जाता है। कम दाब के कारण छत उड़ जाती है।
- गर्म होने पर हवा फैलती है। आपने देखा होगा कि कभी कभी जब साइकिल को तेज धूप में बहुत देर के लिए छोड़ दिया जाता है तो साइकिल की ट्यूब धमाके के साथ फट जाती है। दरअसल, ट्यूब के अंदर की हवा गर्म होने कारण फैलती है। हवा जब बहुत अधिक फैलने की कोशिश करती है तो ट्यूब के भीतर दाब बहुत बढ़ जाता है। आखिर में बहुत अधिक दाब के कारण ट्यूब फट जाती है।
- ठंडी हवा की तुलना में गर्म हवा हल्की होती है। आपने गौर किया होगा कि धुँआ हमेशा ऊपर की ओर ही उठता है। धुँए का तापमान आस पास की हवा के तापमान से अधिक होता है। इसलिए यह हमेशा ऊपर ही उठता है।
पवन धाराएँ क्यों बनती हैं?
पृथ्वी के विभिन्न भागों पर सूर्य की गर्मी अलग-अलग मात्रा में पहुँचती है। विषुवत रेखा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ने के कारण वहाँ अधिक गर्मी मिलती है। ध्रुवों पर सूर्य की किरणें तिरछी पड़ने के कारण वहाँ कम गर्मी मिलती है। इसलिए पृथ्वी के विभिन्न भाग असमान रूप से गर्म होते हैं यानि एक जैसे गर्म नहीं होते हैं। विषुवत रेखा के आसपास के क्षेत्र अधिक गर्म होते हैं। जैसे जैसे हम ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं पृथ्वी कम गर्म होती है। पृथ्वी के असमान रूप से गर्म होने के कारण पवन धाराएँ बनती हैं।
- विषुवत रेखा के पास की हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर उठ जाती है। इससे सतह के नजदीक कम दाब का क्षेत्र बनता है। इस कम दाब के क्षेत्र को भरने के लिए 30° अक्षांशों से विषुवत रेखा की तरफ पवन चलती है।
- 60° अक्षांश की तुलना में ध्रुव अधिक ठंडा रहता है। इसलिए ध्रुवों से 60° अक्षांश की ओर पवन चलती है।
- 30° और 60° अक्षांश के बीच के तापमान में अंतर के कारण 30° से 60° अक्षांश की ओर पवन चलती है।
आप सोच रहे होंगे कि पवन या तो उत्तर की ओर चलती है या दक्षिण की ओर। लेकिन असल में पवन थोड़ा सा पूर्व या पश्चिम की ओर झुकाव बनाकर चलती है। यानि पवन की दिशा पूर्वोत्तर या पश्चिमोत्तर या पूर्व-दक्षिण या पश्चिम दक्षिण होती है। ऐसा इसलिए होता है कि पृथ्वी जब अपने अक्ष पर घूमती है तो उस गति के कारण भी पवन पर एक बल लगता है। इस बल को कोरिऑलिस फोर्स कहते हैं।
थल और जल का असमान रूप से गर्म होना
आपने पिछले एक चैप्टर में थल समीर और जल समीर के बारे में पढ़ा होगा। दिन के समय समुद्र की सतह की तुलना में थल अधिक गर्म होता है। इस वजह से तटीय क्षेत्रों में दिन के समय समुद्र से थल की ओर पवन चलती है। रात में इसका उल्टा हो जाता है। समुद्र तल की तुलना में थल अधिक तेजी से ठंडा हो जाता है और पवन थल से समुद्र की ओर बहने लगती है।
गर्मियों में थलीय क्षेत्र अत्यधिक गर्म हो जाता है लेकिन समुद्र कि सतह अपेक्षाकृत कम गर्म होती है। इसलिए समुद्र से थल की ओर पवन चलती है। इस पवन को मानसून कहते हैं। मानसून पवन अपने साथ नमी लाती है जिससे वर्षा होती है।
इस चित्र में भारतीय उपमहाद्वीप के नक्शे पर जुलाई के महीने में चलने वाली पवन धाराओं को दिखाया गया है। जुलाई के महीने में भारतीय उपमहाद्वीप गर्म हो जाता है। गर्म हवाएँ ऊपर उठती हैं जिससे जमीन के निकट निम्न दाब का क्षेत्र बनता है। निम्न दाब के उस क्षेत्र को भरने के लिए दक्षिण-पश्चिम से समुद्र से नम पवन आती है। इसलिए जुलाई में भारतीय उपमहद्वीप में वर्षा होती है।
इस चित्र में भारतीय उपमहाद्वीप के नक्शे पर जनवरी के महीने में चलने वाली पवन धाराओं को दिखाया गया है। जनवरी के महीने में उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्र में तापमान कम रहता है और जैसे जैसे हम दक्षिण की ओर बढ़ते हैं तापमान बढ़ता जाता है। इसलिए जनवरी के महीने में पूर्वोत्तर से पवन समुद्र की ओर चलती है। इस पवन में कम नमी होती है। इसलिए सर्दियों में यहाँ बहुत कम वर्षा होती है।