जीवों में परिवहन
जब हम भोजन करते हैं तो पाचन के बाद पोषकों को कोशिकाओं तक पहुँचाने की जरूरत होती है। भोजन का श्वसन करने के लिए कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुँचाने की जरूरत होती है। श्वसन के बाद मुक्त होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर के बाहर निकालने की जरूरत होती है। इसी तरह शरीर में कई अन्य पदार्थों (दवा आदि) को पहुँचाने की जरूरत पड़ती है। इसके लिए हमारे शरीर में एक परिसंचरण तंत्र होता है।
परिसंचरण तंत्र
मानव परिसंचरण तंत्र के मुख्य घटक हैं: हृदय, रक्त वाहिनियाँ और रक्त।
हृदय
हृदय हमारी मुट्ठी के आकार का होता है और यह वक्ष गुहा में बीच से थोड़ा बाईं ओर स्थित रहता है। हृदय विशेष पेशियों से बना होता है जिन्हें हृद पेशी कहते हैं। ये पेशियाँ लगातार सिकुड़ती और फैलती रहती हैं। इन पेशियों के सिकुड़ने और फैलने के कारण हमारा हृदय बार बार धड़कता है। जब हृदय धड़कता है तो यह रक्त को पंप करता है।
हृदय में चार कक्ष होते हैं: दायाँ अलिंद, बायाँ अलिंद, दायाँ निलय और बायाँ निलय। ऊपर वाले कक्षों को अलिंद और नीचे वाले कक्षों को निलय कहते हैं। अलिंद और निलय के बीच वाल्व होते हैं जो रक्त को एक ही दिशा में जाने देते हैं। मानव हृदय के दायें और बायें भाग एक दूसरे से बिलकुल अलग होते हैं ताकि गंदा रक्त और साफ रक्त एक दूसरे से मिल न पाएँ। ऑक्सीजन से भरपूर रक्त को साफ रक्त और कार्बन डाइऑक्साइड से भरपूर रक्त को गंदा रक्त कहते हैं।
हृदय से होकर रक्त का प्रवाह:
शरीर विभिन्न अंगों से → दायाँ अलिंद → दायाँ निलय → फेफड़ा → बायाँ अलिंद → बायाँ निलय → शरीर के विभिन्न अंगों की ओर
नोट: नीले रंग का मतलब है कार्बन डाइऑक्साइड से भरपूर रक्त, जबकि लाल रंग का मतलब है ऑक्सीजन से भरपूर रक्त
यह याद रखना होगा कि रक्त जब फेफड़े में जाता है तो रक्त में से कार्बन डाइऑक्साइड निकल जाती है और फिर रक्त में ऑक्सीजन मिल जाती है।
रक्त वाहिनियाँ
रक्त वाहिनियाँ तीन प्रकार की होती हैं: धमनी, शिरा और केशिका।
धमनी: धमनी की भित्ति मोटी होती है। धमनी से होकर हृदय से विभिन्न अंगों की तरफ रक्त का संचार होता है। अधिकतर धमनियों में ऑक्सीजन से भरपूर रक्त बहता है।
शिरा: शिरा की भित्ती पतली होती है। शिरा से होकर विभिन्न अंगों से हृदय की ओर रक्त का संचार होता है। अधिकतर शिराओं से कार्बन डाइऑक्साइड से भरपूर रक्त बहता है। शिराओं में वाल्व होते हैं ताकि रक्त का प्रवाह एक ही दिशा में हो।
केशिकाएँ: केशिकाएँ बहुत पतली होती हैं और रक्त को कोशिकाओं तक ले जाने का काम करती हैं। केशिकाएँ धमनियों और शिराओं से जुड़ी रहती हैं।
रक्त
रक्त एक द्रव ऊतक है जिसके तीन मुख्य अवयव होते हैं: प्लाज्मा, रक्त कोशिकाएँ और प्लैटलेट (पट्टिकाणु)।
प्लाज्मा: यह रक्त का तरल भाग है तो एक आधात्री (मैट्रिक्स) प्रदान करता है।
रक्त कोशिकाएँ: रक्त में दो प्रकार की रक्त कोशिकाएँ होती हैं: लाल रक्त कोशिकाएँ और श्वेत रक्त कोशिकाएँ। लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नाम का पदार्थ होता है जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन का काम है ऑक्सीजन का परिवहन। श्वेत रक्त कोशिकाएँ अनियमित आकार की होती हैं। श्वेत रक्त कोशिकाएँ रोगाणुओं को मार देती हैं और इस तरह रोगों से लड़ने का काम करती हैं।
प्लैटलेट: इनका काम है रक्त के थक्के जमाना। जब आप खेल रहे होते हैं तो हो सकता है गिरने से आपके घुटने में जख्म हो जाए और वहाँ से खून बहने लगे। आपने देखा होगा कि थोड़ी देर में खून का थक्का जम जाता है और खून बहना बंद हो जाता है। इससे फायदा यह होता है कि बहुत अधिक खून नहीं बहता है। यदि किसी का खून बहुत अधिक बह जाए तो यह जान के लिए खतरनाक हो सकता है। इससे यह स्पष्ट है कि प्लैटलेट का काम है रक्त के अत्यधिक बहने को रोककर व्यक्ति की जान बचाना।
उत्सर्जन तंत्र
हमारे शरीर में कई तरह की उपापचयी क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के फलस्वरूप कई अपशिष्ट पदार्थ बनते हैं। ये पदार्थ विषैले होते हैं इसलिए इनको समय समय पर शरीर से बाहर निकालना जरूरी होता है। कार्बन डाइऑक्साइड ऐसा ही एक पदार्थ है जिसे उच्छश्वसन द्वारा बाहर निकाला जाता है। कुछ अपशिष्ट पदार्थों को पसीने के साथ तो कुछ को मल के साथ निकाला जाता है। लेकिन मुख्य अपशिष्ट पदार्थ यूरिया है जिसे शरीर से बाहर निकालने के लिए विशेष रूप से उत्सर्जन तंत्र होता है। मानव उत्सर्जन तंत्र के मुख्य अंग हैं: वृक्क, मूत्रवाहिनी, मूत्राशय और मूत्रमार्ग।
वृक्क: मानव शरीर में एक जोड़ा वृक्क होता है। वृक्क का काम है रक्त में से अपशिष्ट पदार्थों को छानकर बाहर निकालना। अपशिष्ट पदार्थ जल के साथ मिलकर मूत्र का निर्माण करते हैं। वृक्क से मूत्रवाहिनी से होकर मूत्र मूत्राशय में जमा होता है। मूत्राशय से इसे समय समय पर मूत्रमार्ग द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
पादपों में परिवहन
पादपों में परिवहन के लिए दो विशेष ऊतक मौजूद होते हैं: जाइलम और फ्लोएम। इन्हें संवहन ऊतक कहते हैं।
जाइलम: जाइलम का काम पानी और खनिज पदार्थों को जड़ से पत्तियों तक पहुँचाना। जड़ों में रोएँ जैसी रचना होती है जिन्हें मूल रोम कहते हैं। असंख्य मूल रोम के कारण जड़ का पृष्ठ क्षेत्र बढ़ जाता है जिससे वह अधिक से अधिक पानी सोख पाता है। मिट्टी में मौजूद पानी विसरण की प्रक्रिया द्वारा जड़ों में प्रवेश करता है। उसके बाद पानी जाइलम से बनी पाइपलाइन द्वारा पत्तियों तक पहुँचता है।
वाष्पोत्सर्जन: पत्तियों के रंध्रों तथा तने में स्थित लेंटिसेल से होकर जलवाष्प निकलती रहती है। इस क्रिया कोप वाष्पोत्सर्जन कहते हैं। वाष्पोत्सर्जन के कारण रंध्रों में एक चूषक बल पैदा होता है। यह ठीक वैसे ही होता है जैसा तब होता है जब आप कोई ड्रिंक पीने के लिए ड्रिंकिंग स्ट्रॉ का इस्तेमाल करते हैं। इस चूषक बल के कारण पानी जाइलम से होते हुए ऊँची ऊँची डालियों तक पहुँच जाता है।
फ्लोएम: जब पत्तियों में भोजन बनता है तो उसे पौधे के विभिन्न भागों तक पहुँचाने की जरूरत होती है। यह काम फ्लोएम द्वारा होता है।