मौसम जलवायु अनुकूलन
मौसम
किसी स्थान पर वायुमंडल की प्रतिदिन की परिस्थिति को उस स्थान का मौसम कहते हैं। वायुमंडल की परिस्थिति को तापमान, आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग, आदि के संदर्भ में देखा जाता है। तापमान, आर्द्रता, वर्षा, आदि को मौसम का घटक कहते हैं।
किसी जगह का मौसम रोज रोज बदल सकता है, बल्कि यह एक ही दिन में कई बार बदल सकता है। कभी कभी ऐसा होता है कि सुबह का मौसम सुहाना होता है, यानि ना अधिक गर्मी होती है और ना ही अधिक ठंड। उसके बाद दोपहर आते आते मौसम बहुत गर्म हो जाता है। फिर शाम में तेज बारिश हो जाती है।
जलवायु
किसी स्थान पर एक लंबे समय के मौसम के पैटर्न को उस स्थान की जलवायु कहते हैं। मौसम के पैटर्न के लिए अक्सर 25 वर्षों का आँकड़ा लिया जाता है।
जब हम कहते हैं कि भारत की जलवायु गर्म और नम (आर्द्र) है तो इसका मतलब है कि भारत में साल के अधिकतर महीनों में गर्मी होती है और हवा में नमी होती है। चूँकि भारत एक विशाल देश है इसलिए इस देश के अलग-अलग हिस्सों की जलवायु अलग-अलग होती है।
अगर आप कश्मीर का उदाहरण लेते हैं तो पाते हैं कि वहाँ की जलवायु ठंडी होती है, यानि साल के अधिकतर महीनों में सर्दी पड़ती है। दूसरी ओर, राजस्थान में जलवायु गर्म और शुष्क होती है। इसलिए राजस्थान में भीषण गर्मी पड़ती है और वर्षा न के बराबर होती है। केरल और चेन्नई की जलवायु गर्म और नम होती है। इन शहरों में गर्मी राजस्थान से कम होती है लेकिन हवा में अत्यधिक नमी होती है। इसलिए इन शहरों में वर्षा भी भरपूर होती है।
जलवायु और अनुकूलन
अनुकूलन: किसी जीव में उपस्थित वो सारे गुण जिनके कारण वह जीव किसी खास किस्म की जलवायु में आराम से रह सकता है, अनुकूलन कहलाते हैं। ऊँट रेगिस्तान में रहते हैं, क्योंकि उनके शरीर में रेगिस्तान में जिंदा रहने के लिए जरूरी अनुकूलन होते हैं।
ध्रुवीय क्षेत्र
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के आस पास के इलाकों को ध्रुवीय क्षेत्र कहते हैं। ध्रुवीय क्षेत्र में साल के छ: महीने दिन रहता है और फिर बाकी के छ: महीने रात रहती है। ध्रुवीय क्षेत्र में तापमान बहुत कम होता है और यह -37° सेल्सियस तक नीचे जा सकता है। ध्रुवीय क्षेत्र में वही जीव जिंदा रह सकता है जिसके शरीर में इतनी ठंड बर्दाश्त करने के लिए अनुकूलन हो। इस अध्याय में आप दो जंतुओं (ध्रुवीय भालू और पेंगुइन) के बारे में पढ़ेंगे।
ध्रुवीय भालू में अनुकूलन
- ध्रुवीय भालू का शरीर सफेद फर से ढ़का रहता है। सफेद रंग के कारण ध्रुवीय भालू आसानी से बर्फ की सफेद पृष्ठभूमि में छिप सकता है और अपने शिकार को नजर नहीं आता।
- ध्रुवीय भालू के शरीर पर फर की दो परतें होती हैं। दो परतें मिलकर ऊष्मारोधी का काम करती हैं। इसलिए ध्रुवीय भालू को ठंड कम लगती है।
- ध्रुवीय भालू की त्वचा के नीचे वसा (फैट) की एक मोटी परत होती है। वसा की परत भी ऊष्मारोधी का काम करती है।
- ध्रुवीय भालू की सूँघने की शक्ति बहुत अच्छी होती है। अपनी गजब की सूँघने की शक्ति के कारण यह बर्फ के नीचे मौजूद मछली का भी पता लगा लेता है।
- ध्रुवीय भालू के पंजे चौड़े होते हैं और नाखून लंबे होते हैं। चौड़े पंजों की वजह से यह एक कुशल तैराक बन जाता है। लंबे नाखूनों की मदद से यह शिकार को आसानी से चीड़-फाड़ सकता है।
- ध्रुवीय भालू के शरीर पर फर की दोहरी परत और त्वचा के नीचे मौजूद वसा की परत के कारण इसका शरीर गर्म रहता है। इसलिए ध्रुवीय भालू धीरे-धीरे चलता है। अगर यह तेजी से दौड़ता है तो बहुत जल्द इसका शरीर बहुत गर्म हो जाता है। गर्मी से बचने के लिए यह बीच बीच में आराम करता है और गर्मियों में समुद्र में तैरता रहता है।
पेंगुइन में अनुकूलन
- पेंगुइन का शरीर आगे से सफेद और पीठ की तरफ काला होता है। आगे से सफेद होने के कारण इसे बर्फ की सफेद पृष्ठभूमि में छिपने में सहूलियत होती है।
- पेंगुइन की त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है। वसा की परत ऊष्मारोधी का काम करती है और इसे ठंड से बचाती है।
- पेंगुइन अक्सर झुंड में एक दूसरे से चिपक कर खड़े होते हैं, ताकि इनके शरीर को गर्माहट मिलती रहे।
- पेंगुइन के अगले पैर डैने की शक्ल में रूपांतरित होते हैं। ये डैने तैरते समय एक शक्तिशाली पतवार का काम करते हैं।
- पेंगुइन के पिछले पैरों की अंगुलियों के बीच जाल होता है जो इन्हें तैरने में मदद करता है।
वर्षावन उस क्षेत्र में पाये जाते हैं जहाँ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है। भारत में पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में और पश्चिमी घाट में वर्षावन मौजूद हैं। दक्षिणी अमेरिका का उत्तरी भाग और मध्य अफ्रिका भी वर्षावनों से भरा हुआ है। वर्षावन में भोजन की प्रचुरता होती है, इसलिए यहाँ अनेक प्रकार के जंतु रहते हैं और उनकी सघन आबादी होती है। वर्षा वन में भोजन की कोई समस्या नहीं होती है। लेकिन भोजन के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है। देखते हैं कि कुछ जंतु इस प्रतिस्पर्धा के लिए किस प्रकार का अनुकूलन विकसित कर चुके हैं।
- लाल आँख वाले मेढ़क के पैर चिपचिपे होते हैं, जिनकी मदद से ये आसानी से पेड़ों पर चढ़ जाते हैं। ये मेढ़क पेड़ों पर ही रहते हैं।
- बंदरों की पूँछ डालियों को पकड़ने के काम आती है। बंदरों के पंजे गद्देदार होते हैं, जिनकी मदद से डालियों पर अच्छी पकड़ बन पाती है।
- टूकन की चोंच बहुत लम्बी होती है। इसकी मदद से यह उन डालियों पर लगे फल भी खा लेता है जो इसके वजन से टूट जाएँगी।
- बिल्ली परिवार के जंतुओं (शेर, चीता, बाघ) की त्वचा का रंग उन्हें छद्मावरण में मदद करता है। इन जंतुओं की सुनने, सूँघने और देखने की शक्ति बहुत अच्छी होती है, जिनकी मदद से ये अपना शिकार पकड़ते हैं।
हाथी में अनुकूलन
हाथी के विशाल आकार के कारण इसे अन्य जंतुओं से बहुत प्रतिस्पर्धा नहीं मिलती है। फिर भी हाथियों में कुछ अनुकूलन ऐसे होते हैं जिनके कारण इसे भोजन आसानी से मिल जाता है। हाथी की लंबी सूँड बहुत उपयोगी होती है। हाथी की सूँघने की शक्ति जबरदस्त होती है। अपने सूँड़ से यह घास उखाड़ सकता है, पत्तियाँ तोड़ सकता है और डालियाँ भी तोड़ लेता है। अपने बाहरी दाँतों की मदद से यह पेड़ की खाल छील लेता है। हाथी के बड़े-बड़े कानों की सुनने की शक्ति बहुत अच्छी होती है। जब हाथी अपने कानों को पंखे की तरह हिलाता है तो उससे यह अपने खून का तापमान कम कर पाता है। इस तरह से हाथी अपने शरीर का तापमान कम कर पाता है और उसे गर्मी से राहत मिलती है।