पादपों में पोषण
पोषक: कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन,वसा एवं खनिज भोजन के घटक हैं। भोजन के ये घटक हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं। भोजन के इन घटकों को पोषक कहते हैं।
पोषण: सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने और उसके उपयोग की विधि को पोषण कहते हैं।
स्वपोषी: पोषण की जिस विधि में सजीव अपना भोजन खुद बनाता है उसे स्वपोषण कहते हैं। ऐसे सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। पादप स्वपोषी होते हैं। कुछ बैक्टीरिया भी स्वपोषी होते हैं।
विषमपोषी: जो सजीव अपना भोजन किसी दूसरे जीव से लेते हैं उन्हें विषमपोषी कहते हैं। पादपों को छोड़कर, जंतु और कई अन्य जीव विषमपोषी होते हैं।
प्रकाश संश्लेषण
पादप सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड और जल से अपना भोजन यानि कार्बोहाइड्रेट बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड और जल प्रकाश संश्लेषण के लिए कच्चा माल होते हैं, तथा सूर्य के प्रकाश से इस काम के लिए ऊर्जा मिलती है। प्रकाश संश्लेषण के अंत में कार्बोहाइड्रेट बनता है और ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है। इस प्रक्रिया को नीचे दिए गए समीकरण से दिखाया जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड + जल = कार्बोहाइड्रेट + ऑक्सीजन
Fig Ref: Wikipedia
पादप की रसोई
प्रकाश संश्लेषण हरी पत्तियों में होता है, यानि पादप अपना भोजन हरी पत्तियों में बनाते हैं। इसलिए पत्तियों को पादप की रसोई या भोजन की फैक्ट्री कहते हैं।
हरी पत्तियों में हरे रंग का एक वर्णक या रंजक या पिगमेंट होता है, जिसे क्लोरोफिल कहते हैं। क्लोरोफिल के कारण ही पत्ती का रंग हरा होता है। क्लोरोफिल का काम है सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा को जमा करना ताकि प्रकाश संश्लेषण में इसका इस्तेमाल हो सके। चूँकि बाकी अन्य जीव सीधे या परोक्ष रूप से पौधों से भोजन (या ऊर्जा) प्राप्त करते हैं, इसलिए सूर्य हमारे लिए ऊर्जा का चरम स्रोत होता है।
हरी पत्तियों की सतह पर असंख्य सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिन्हें रंध्र कहते हैं। हर रंध्र दो द्वार कोशिकाओं से घिरा होता है। द्वार कोशिकाएँ रंध्र (स्टोमेटा) के खुलने और बंद होने को नियंत्रित करती हैं। रंध्र से होकर कार्बन डाइऑक्साइड गैस पत्ती के भीतर जाती है और ऑक्सीजन गैस बाहर निकलती है। रंध्र से होकर वाष्पोत्सर्जन भी होता है यानि जलवाष्प निकलती है।
जड़ का काम है मिट्टी से जल और खनिज का अवशोषण करना। उसके बाद जल सूक्ष्म पाइपों द्वारा पत्तियों तक पहुँचता है। पत्तियों में जल का उपयोग प्रकाश संश्लेषण के लिए किया जाता है।
प्रकाश संश्लेषण के बाद जब कार्बोहाइड्रेट बनता है तो पादप उसे स्टार्च में बदल देता है। स्टार्च कार्बोहाइड्रेट का एक प्रकार है। स्टार्च के रूप में भोजन को पादप के विभिन्न भागों में जमा किया जाता है।
आपने देखा कि पादप किस तरह जल और कार्बन डाइऑक्साइड प्राप्त करते हैं। उसके बाद आपने देखा कि किस तरह सूर्य के प्रकाश में जल और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और फिर भोजन बनता है।
पादपों में अन्य पोषकों का संश्लेषण
आपने पहले पढ़ा कि कार्बोहाइड्रेट के अलावा पादप को अन्य पोषकों की भी जरूरत पड़ती है। कार्बोहाइड्रेट के घटक हैं कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन। प्रोटीन बनाने के लिए नाइट्रोजन की भी जरूरत पड़ती है। अब देखते हैं कि पादप को नाइट्रोजन कैसे मिलता है।
हमारे चारों ओर जो हवा है उसमें सबसे प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन गैस रहती है। लेकिन पादप गैसीय नाइट्रोजन का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। इसलिए नाइट्रोजन को ऐसे पदार्थ में बदलने की जरूरत होती है ताकि पादप उसका अवशोषण और इस्तेमाल कर सकें। नाइट्रोजन को पादप के इस्तेमाल के लायक बनाने की प्रक्रिया को नाइट्रोजन फिक्सेशन या नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। दाल के पादप या फलीवाले पादप की जड़ में गाँठें होती हैं। इन गाँठों में राइजोबियम नाम के बैक्टीरिया रहते हैं। बैक्टीरिया को घर और भोजन मिलता है। इसके बदले में ये बैक्टीरिया मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करते हैं। उसके बाद पादप मिट्टी से नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का अवशोषण करते हैं ताकि प्रोटीन का निर्माण कर सकें।
पादप में विषमपोषण
परजीवी: कुछ पादपों में क्लोरोफिल नहीं होता है। ऐसे पादप अपना भोजन नहीं बना सकते हैं। ऐसे पादप किसी अन्य पादप पर रहते हैं ताकि उससे भोजन ले सकें। ऐसे पादपों को परजीवी कहते हैं। अमरबेल इसका अच्छा उदाहरण है।
कीटभक्षी पादप
कुछ पादप कार्बोहाइड्रेट तो बना लेते हैं क्योंकि उनमें क्लोरोफिल होता है। लेकिन ऐसे पादप जिस वातावरण में रहते हैं वहाँ की मिट्टी में नाइट्रोजन नहीं होता है। इसलिए नाइट्रोजन की जरूरत पूरा करने के लिए ऐसे पादप कीटों को खाते हैं।
Fig Ref: Wikipedia
इसे समझने के लिए घटपर्णी(पिचर प्लांट) का उदाहरण लेते हैं। घटपर्णी के पत्ते फ्लास्क की शक्ल में रूपांतरित होते हैं। फ्लास्कनुमा संरचना के ऊपर एक ढ़क्कन भी लगा होता है। फ्लास्क की भीतरी दीवार पर नीचे की ओर मुड़े हुए रोएँ होते हैं। जब कोई कीट फ्लास्क के अंदर जाता है तो नीचे की ओर मुड़े हुए रोएँ के कारण कीट ऊपर भाग नहीं पाता है। कीट पर एंजाइम छोड़े जाते हैं जिससे कीट का पाचन हो जाता है। इस तरह से घटपर्णी को प्रोटीन मिल जाता है। कीटभक्षी पादप के कुछ अन्य उदाहरण हैं: ब्लैडरवर्ट, वीनस फ्लाई ट्रैप, आदि।
मृतजीवी
कुछ जीव मृत और विघटनकारी (सड़ने वाली) वस्तुओं से भोजन लेते हैं। इन जीवों को मृतजीवी कहते हैं। कवक या फंजाई इसका उदाहरण है। कुकुरमुत्ता (मशरूम) एक कवक है। कवक मृत और विघटनकारी वस्तु पर एंजाइम छोड़ते हैं जिससे सड़ने वाली चीज एक विलयन (घोल) में बदल जाती है। फिर उस विलयन को कवक चूस लेता है।
कवक के बीजाणु हवा में घूमते रहते हैं। ये फल, सब्जियों और बासी भोजन पर जमा हो जाते हैं और फिर उनसे नये कवक पैदा लेते हैं। जब आप बासी ब्रेड या फल को कई दिन खुले में छोड़ देंगे तो उनपर रूई जैसी परत बन जाती है। यह परत कवक के पनपने के कारण बनती है।
सहजीवी: सहजीविता दो जीवों का ऐसा संबंध होता है जिसमें दोनों एक दूसरे को फायदा पहुँचाते हैं। लाइकेन इसका अच्छा उदाहरण है। लाइकेन दो जीवों (शैवाल और कवक) से मिलकर बना होता है। लाइकेन पेड़ों के तनों पर पनपते हैं। लाइकेन की निचली परत कवक से बनी होती है और ऊपरी परत शैवाल से। कवक जल और खनिज मुहैया कराता है। शैवाल प्रकाश संश्लेषण करके भोजन प्रदान करता है।