अम्ल, क्षारक और लवण
अम्ल: जिस पदार्थ का स्वाद खट्टा होता है और जो नीले लिटमस को लाल कर देता है उसे अम्ल कहते हैं। ऐसे पदार्थों की प्रवृत्ति अम्लीय कहलाती है। नींबू, संतरा, आमला, कच्चा आम, आदि का स्वाद खट्टा होता है क्योंकि इन फलों में अम्ल होता है।
अम्ल का नाम | पदार्थ |
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ऐसिटिक अम्ल | सिरका |
फॉर्मिक अम्ल | चींटी का डंक |
साइट्रिक अम्ल | नींबू, संतरा, आमला, आदि |
लैक्टिक अम्ल | दही |
ऑक्सेलिक अम्ल | पालक, अमरूद |
ऐस्कॉर्बिक अम्ल | आँवला, नींबू, संतरा, मौसंबी, आदि |
टार्टरिक अम्ल | इमली, अंगूर, कच्चा आम, आदि |
क्षार: जिस पदार्थ का स्वाद कड़वा होता है, जो छूने में साबुन की तरह चिकना होता है और जो लाल लिटमस को नीला कर देता है उसे क्षार कहते हैं। ऐसे पदार्थों की प्रवृत्ति क्षारकीय या क्षारीय कहलाती है। खाने का सोडा, चूने का पानी, साबुन का घोल, आदि क्षार के उदाहरण हैं।
क्षारक का नाम | पदार्थ |
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कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड | चूने का पानी |
अमोनियम हाइड्रॉक्साइड | खिड़की के काँच साफ करने के लिए अपमार्जक |
सोडियम हाइड्रॉक्साइड/ पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड | साबुन |
मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड | मिल्क ऑफ मैग्नीशिया |
सूचक
कुछ पदार्थों का उपयोग यह पता करने के लिए किया जाता है कि कोई दिया हुआ पदार्थ अम्लीय है या क्षारकीय। ऐसे पदार्थों को सूचक कहते हैं। ऐसे पदार्थ अम्ल या क्षार की उपस्थिति में अपना रंग बदल लेते हैं जिससे हमें अम्ल या क्षार का पता चलता है। कई अम्ल और क्षार इतने तेज होते हैं कि उन्हें छूने या चखने से त्वचा के जलने का खतरा रहता है। इसलिए किसी भी पदार्थ की प्रवृत्ति का पता लगाने के लिए सूचक का इस्तेमाल एक सुरक्षित तरीका है। कुछ सूचक प्राकृतिक होते हैं, तो कुछ कृत्रिम होते हैं।
लिटमस
लिटमस को लाइकेन के रस से बनाया जाता है। प्राकृतिक रूप से निकलने वाले लिटमस का रंग गहरा बैंगनी (मॉव) होता है। लिटमस सामान्यतया सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला सूचक है। लिटमस अक्सर कागज की पट्टियों के रूप में मिलता है जिसे लिटमस पेपर कहते हैं। लिटमस पेपर लाल और नीले रंग में आते हैं।
जब नीले लिटमस पेपर को अम्ल में डाला जाता है तो लिटमस पेपर का रंग लाल हो जाता है। जब लाल लिटमस पेपर को क्षार में डाला जाता है तो लिटमस पेपर का रंग नीला हो जाता है। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिनका लाल या नीले लिटमस पेपर के रंग पर कोई असर नहीं होता है। ऐसे पदार्थ उदासीन होते हैं, यानि वे न तो अम्लीय होते हैं और न ही क्षारकीय। आसुत जल एक उदासीन पदार्थ है।
कुछ सूचक | ||
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सूचक | अम्लीय विलयन में | क्षारकीय विलयन में |
लाल लिटमस | लाल | नीला |
नीला लिटमस | लाल | नीला |
उड़हुल का रस | गहरा गुलाबी | हरा |
हल्दी का रस | पीला | लाल |
फेनॉल्फथेलीन | रंगहीन | हल्का गुलाबी |
उदासीनीकरण
जब किसी अम्ल को किसी क्षार के साथ मिलाया जाता है तो दोनों के बीच जो प्रतिक्रिया होती है उसे उदासीनीकरण कहते हैं। उदासीनीकरण के अंत में लवण और जल बनते हैं और ऊष्मा निकलती है। उदासीनीकरण एक ऊष्माक्षेपी प्रतिक्रिया है।
अम्ल + क्षार → लवण + जल + ऊष्मा
उदाहरण: जब हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सोडियम हाइड्रॉक्साइड के बीच प्रतिक्रिया होती है तो सोडियम क्लोराइड (नमक) और जल का निर्माण होता है।
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल + सोडियम हाइड्रॉक्साइड → सोडियम क्लोराइड + जल
HCl + NaOH → NaCl + H2O
दैनिक जीवन में उदासीनीकरण
अपाचन: कभी कभी जब हम अधिक तला भुना खा लेते हैं या किसी अन्य कारण से हमें अपच या अपाचन हो जाता है। ऐसे में हमें सीने में जलन और खट्टे डकार की शिकायत हो सकती है। ऐसा तब होता है जब हमारे आमाशय में जरूरत से ज्यादा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उत्पादन होता है। इससे आराम पाने के लिए डॉक्टर किसी प्रतिअम्ल (एंटासिड) लेने की सलाह देते हैं, जैसे कि मिल्क ऑफ मैग्नीशिया या कोई गोली या ईनो। ये सभी चीजें किसी न किसी क्षार से बनी होती हैं। जब प्रतिअम्ल पेट में पहुँचता है तो वह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ उदासीनीकरण करता है जिससे हमें अपाचन के लक्षणों से आराम मिल जाता है।
चींटी का डंक: जब चींटी डंक मारती है तो वह एक अम्ल हमारे शरीर में इंजेक्ट करती है। इसी अम्ल के कारण हमें डंक वाले स्थान पर तेज दर्द होता है। डंक वाले स्थान पर खाने वाले सोडा या कैलेमाइन (जिंक कार्बोनेट) का घोल मलने से आराम मिलता है। ऐसा उदासीनीकरण के कारण होता है।
मृदा उपचार: खेत में अत्यधिक खाद के इस्तेमाल के कारण मिट्टी अम्लीय हो जाती है। अम्लीय मिट्टी के उपचार के लिए उसमें खड़िया या बुझे चूने का छिड़काव किया जाता है। जब मिट्टी क्षारकीय हो जाती है तो उसमें कम्पोस्ट मिलाई जाती है।
कारखानों का अपशिष्ट: कारखाने से निकलने वाले अपशिष्ट में अम्लीय पदार्थ होते हैं। जब यह अपशिष्ट नदी या तालाब में प्रवाहित होता है तो इससे जलीय जीवों को नुकसान पहुँचता है। इसलिए यह जरूरी है कि कारखाने से निकलने वाले अपशिष्ट को समुचित उपचार के बाद ही नदी या तालाब में छोड़ा जाये।