वन: हमारी जीवन रेखा
वन: पेड़-पौधों की घनी आबादी से ढ़के क्षेत्र को वन कहते हैं। एक वन या जंगल एक तंत्र की तरह होता है जिसके मुख्य भाग होते हैं पादप, जंतु और सूक्ष्म जीव।
वन अनेक जीव जंतुओं को आश्रय या घर प्रदान करता है। किसी भी जंगल में अनेक पादप, जंतु और सूक्ष्मजीव निवास करते हैं।
पेड़ों से भरे जंगल में दो अलग-अलग स्तर होते हैं: वितान (कैनोपी) और अधोतल (अंडरस्टोरी)। किसी भी वृक्ष के दो भाग होते हैं: मुख्य तना और शाखाएँ। वृक्ष की शाखाओं से वृक्ष का शिखर बनता है। वन में कई वृक्षों के शिखर मिलकर वितान का निर्माण करते हैं। घने जंगल में वितान का प्रसार इस तरह होता है कि यह जंगल की छत जैसा दिखता है। वितान में कई जीव जंतु रहते हैं, जैसे बंदर, पक्षी, मेंढ़क, कीट, आदि।
पेड़ों के शिखर विभिन्न आकार के होते हैं। शिखर के आकारों के कुछ आम उदाहरण इस चित्र में दिखाए गए हैं।
जंगल का निचला स्तर अधोतल कहलाता है। अधोतल में शाक और झाड़ियाँ होती हैं। अधोतल की दुनिया अपने आप में अलग होती है। घने जंगल के अधोतल में सूर्य की रोशनी न के बराबर पहुँचती है। अधोतल में भी नाना प्रकार के जीव जंतु निवास करते हैं।
महत्वपूर्ण वन उत्पाद
वनों के उत्पाद हमारे लिए बहुत उपयोगी होते हैं। वन उत्पादों के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
- सूखी पत्तियाँ और लकड़ियाँ जलावन के तौर पर जंगल के आस पास के गाँवों में इस्तेमाल होती हैं।
- लकड़ी या काठ या काष्ठ से इमारतें बनती हैं और फर्नीचर भी बनते हैं।
- लकड़ी की लुगदी से कागज बनता है।
- वन से मिलने वाले कुछ अन्य महत्वपूर्ण उत्पाद हैं शहद, केंदु पत्ता, कत्था, लाख, गोंद, आदि। केंदु पत्ते से बीड़ी बनती है। पान और पान मसाले में कत्थे का इस्तेमाल होता है।
- वनों से कई जड़ी बूटियाँ मिलती हैं जिनसे दवाएँ बनती हैं।
वन एक तंत्र है
वन का हर हिस्सा मिलकर इसे एक ऐसा तंत्र बनाता है तो अपने आप में आत्मनिर्भर होता है। हरे पादप प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते हैं। शाकाहारी जंतु इन पादपों से सीधे सीधे भोजन ग्रहण करते हैं। मांसाहारी जंतु शाकाहारी जंतुओं को भोजन बनाते हैं और परोक्ष रूप से पौधों से भोजन प्राप्त करते हैं। इससे शिकार और शिकारी की एक चेन बन जाती है जिसे फूड चेन या आहार श्रृंखला कहते हैं। आहार श्रृंखला का एक सरल उदाहरण नीचे दिया गया है।
घास → हिरण → शेर
लेकिन वास्तविक जीवन इतना सरल नहीं होता है। हो सकता है कि घास को हिरण के अलावा कई अन्य जंतु भी खाते हों। इसी तरह हिरण को शेर के अलावा बाघ भी खाता है। जंगल में आहार श्रृंखला का एक बहुत ही जटिल जाल बनता है जिसे फूड वेब या आहार जाल कहते हैं।
जब कोई जंतु या पादप मृत हो जाता है तो उसके अवशेष समय के साथ सड़ जाते हैं और मिट्टी जैसे पदार्थ में बदल जाते हैं। इस प्रक्रिया को अपघटन कहते हैं। सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटन का काम किया जाता है। अपघटण की प्रक्रिया से सजीवों के शरीर के बनने में लगे कच्चे माल की रीसाइकलिंग (पुनर्चक्रीकरण) हो जाता है। अपघटन के बाद जो मिट्टी जैसा पदार्थ बनता है उसे ह्यूमस कहते हैं। ह्यूमस से मिट्टी अधिक उपजाऊ बन जाती है। वन में ह्यूमस की प्रचुरता के कारण मिट्टी की ऊपरी परत अत्यधिक उपजाऊ होती है।
पर्यावरण संरक्षण: वन की पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका होती है। हरित पादप जब प्रकाश संश्लेषण करते हैं तो सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। इस तरह से सौर ऊर्जा सभी सजीवों के पास पहुँचती है। हरित पादप प्रकाश संश्लेषण के लिए वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का इस्तेमाल करते हैं और फिर ऑक्सीजन को मुक्त करते हैं। इस तरह से हरित पादप वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
वन और जल चक्र: वृक्षों की जड़ों से मिट्टी में सुराख हो जाते हैं। इन सुराखों से होकर वर्षा का पानी रिसता है और भौमजल का पुनर्भरण (रीचार्ज) करता है। पेड़ों के कारण वर्षा के पानी की बरबादी भी रुकती है क्योंकि पानी बहकर कहीं दूर नहीं जा पाता है। पेड़ों के कारण पानी के बहाव में बाधा उत्पन्न होती है जिससे खतरनाक बाढ़ की रोकथाम होती है।
वन और मृदा संरक्षण: पेड़ अपनी जड़ों से मृदा की ऊपरी परत को बाँध कर रखते हैं। इससे पवन या बहते जल से होने वाली मृदा अपरदन की रोकथाम होती है।
वनोन्मूलन के प्रभाव
बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई को वनोन्मूलन कहते हैं। बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगल का बड़ा हिस्सा साफ हो चुका है। इससे कई समस्याएँ खड़ी हो गई हैं। कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
- घटते वनों के कारण मृदा अपरदन तेजी से बढ़ा है और कई स्थानों पर मिट्टी की उर्वरता कम हुई है।
- घटते वनों ने भौमजल के पुनर्भरण पर बुरा असर डाला है। इससे कई स्थानों पर पेयजल की कमी की समस्या होने लगी है।
- घटते वनों के कारण कई जीव जंतुओं के प्राकृतिक आवास में कमी आई है। इससे कई जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गयाहै।
- वनों के घटने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ गई है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ने लगी है। जब पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ जाता है तो इस घटना को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम में भयानक बदलाव आते हैं। चक्रवात और विनाशकारी बाढ़ की बढ़ती घटनाएँ इसी कारण से हो रही हैं।