पवन, तूफान और चक्रवात
तड़ित झंझा और चक्रवात
भारतीय उपमहाद्वीप उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। इसलिए यहाँ की गर्म और नम जलवायु में अक्सर तड़ित झंझा (थंडरस्टॉर्म) आती है। जब गर्म पवन ऊपर उठती है तो अपने साथ पानी की बूँदों को भी ऊपर ले जाती है। अधिक ऊँचाई पर पहुँचकर पानी की बूँदें संघनन के कारण बर्फ बन जाती हैं। बर्फ बनने के कारण पानी की बूँदें तेजी से नीचे गिरती है। ऐसे में ऊपर उठती पवन और नीचे गिरती बूँदों के बीच घर्षण होता है। घर्षण की वजह से बिजली (तड़ित) चमकती है और तेज आवाज होती है। इस घटना को तड़ित झंझा (थंडरस्टॉर्म) कहते हैं।
तड़ित झंझा के समय सावधानियाँ
- ऊँचे पेड़ की तुलना में छोटे पेड़ के नीचे आश्रय लेना अधिक सुरक्षित होता है। पेड़ों का झुंड और भी अधिक सुरक्षित होता है।
- धातु की डंडी वाले छाते का उपयोग न करें।
- खुले गैरेज, टिन की छत वाले शेड आदि के नीचे आश्रय न लें।
- कार या बस के भीतर आप सुरक्षित रहेंगे।
- यदि आप स्विमिंग पूल या नदी में हों, तो वहाँ से तुरंत निकल जाएँ।
- घर से अधिक सुरक्षित जगह कोई नहीं होती है।
तड़ित झंझा से चक्रवात का बनना
आपने पढ़ा होगा कि जल जब ऊष्मा अवशोषित करता है तो वाष्प में बदल जाता है। इसलिए यह भी सच है कि वाष्प जब संघनित होकर जल में बदलता है तो वाष्प में से ऊष्मा बाहर निकलती है।
वाष्प के संघनन के फलस्वरूप निकलने वाली ऊष्मा से आसपास की हवा गर्म हो जाती है और फिर हवा ऊपर उठने लगती है। इससे आस पास निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। निम्न दाब के इस क्षेत्र को भरने के लिए आस पास से ठंडी पवन तेज गति से निम्न दाब के केंद्र की ओर बढ़ती हैं।
यह चक्र कई बार होता है जिससे बहुत ही निम्न दाब का एक सिस्टम बन जाता है जिसके चारों ओर तेज गति से पवन घूमती है। यह पवन कई परतों में कुंडली के रूप में घूमती है यानि गोल गोल घूमती है। मौसम की इस स्थिति को चक्रवात कहते हैं।
कम दाब के एक शक्तिशाली केंद्र के चारों ओर घूमने वाली पवन की एक विशाल राशि को चक्रवात कहते हैं। उत्तरी गोलार्ध में चक्रवात की दिशा घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में होती है। दक्षिणी गोलार्ध में चक्रवात की दिशा घड़ी की सुई की दिशा में होती है।
चक्रवात के केंद्र को नेत्र या आँख या EYE कहते हैं। चक्रवात का नेत्र बिलकुल शांत होता है। लेकिन इस नेत्र के चारों ओर कोई 150 किमी के व्यास में बादल का क्षेत्र होता है जिसमें पवन की गति 150 से 250 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है।
चक्रवातों से विनाश
चक्रवात बहुत विनाशकारी हो सकते हैं। चक्रवात से आने वाली तेज पवन के कारण समुद्र में 12 मीटर तक ऊँची लहरें उठती हैं और किनारों से टकराती हैं। इससे तटीय क्षेत्रों में जान माल का भारी नुकसान होता है। भारत के पूर्वी तट में चक्रवात का अधिक खतरा रहता है।
चक्रवात के लिए सुरक्षा उपाय
- चक्रवात पूर्वानुमान और चेतावनी सेवा बहुत जरूरी है। आजकल टेक्नॉलोजी में काफी तरक्की होने के कारण मौसम विभाग के पास समय रहते इतनी सूचना आ जाती है कि चक्रवात की चेतावनी बहुत पहले जारी हो जाती है। इसलिए हाल के वर्षों में चक्रवात के कारण होने वाली क्षति को काफी हद तक कम किया जा सका है।
- मछुआरों, जलपोतों और तेल के कुँए से तेल निकालने वाले पोतों को समय रहते चेतावनी दे दी जाती है। मछुआरे समुद्र में जाना बंद कर देते हैं। जलपोत तट से बहुत दूर चले जाते हैं। तेल के कुँए पर काम करने वालों को सुरक्षित जगह पर पहुँचा दिया जाता है।
- जहाँ चक्रवात आने का खतरा रहता है वहाँ चक्रवात आश्रय बनाए जाते हैं। इन आश्रयों पर लोगों हर जरूरी सुविधा दी जाती है, जैसे भोजन, दवाई, आदि।