9 विज्ञान

बिमारी और स्वास्थ्य

रोग फैलने के साधन

वायु

जो रोग वायु या हवा के माध्यम से फैलते हैं उन्हें वायु-जनित रोग या वातोढ़ रोग कहते हैं। जब हम बातें करते हैं या छींकते या खाँसते हैं तो हमारे मुँह और नाक से हजारों छोटी-छोटी बूँदें हवा में निकलती रहती हैं। यही बूँदें फिर साँस के माध्यम से किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुँच जाती हैं। इस तरह से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण का संचार होता है। उदाहरण: जुकाम, फ्लू, कोविड-19, टीबी, चेचक, आदि।

कोविड-19: सन 2020 अपने साथ एक भयंकर त्रासदी लेकर आया है। कोविड-19 से पूरी दुनिया त्रस्त है। यह बीमारी ठीक वैसे ही फैलती है जैसे कि सर्दी जुकाम। कोविड से बचने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है बाहर निकलते समय मास्क पहनना ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। इसके अलावा आपको दिन में हाथ धोते रहना चाहिए। बाहर से लौटने के बाद साबुन से या सैनिटाइजर से हाथ साफ करना बहुत जरूरी है।

जल

जो रोग जल के माध्यम से फैलते हैं उन्हें जल-जनित या जलोढ़ रोग कहते हैं। दूषित जल या भोजन के माध्यम से संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। उदाहरण: हैजा, अतिसार, आंव के साथ दस्त (अमीबिक डीसेंटेरी), पीलिया (जॉन्डिस), आदि।

शरीर के द्रव्य और रक्त के द्वारा

कुछ रोगों का संचरण शरीर के किसी द्रव्य या रक्त के आदान प्रदान के माध्यम से होता है। लैंगिक सम्पर्क के द्वारा शरीर के द्रव्यों का आदान प्रदान हो सकता है। रक्त का आदान प्रदान एक गर्भवती स्त्री से उसके शिशु में हो सकता है और दूषित रक्त के ट्रांसफ्यूजन से भी हो सकता है। उदाहरण: ऐडस, हिपेटाइटिस बी।

रोगवाहक

जब कोई जंतु किसी रोग के रोगाणु को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संचरित करता है तो ऐसे जंतु को रोगवाहक कहते हैं। मलेरिया के परजीवी का नाम प्लाज्मोडियम है। इस परजीवी के वाहक का काम मच्छर करते हैं। इसके अलावा, मच्छर कई अन्य रोगों के वाह होते हैं; जैसे डेंगू, फाइलेरिया, आदि। कुत्ते, बिल्ली, नेवले, बंदर और खरगोश रेबीज नाम की खतरनाक बीमारी के रोगवाहक हैं। मक्खियाँ कई रोगों की वाहक होती हैं। जब कोई मक्खी मानव मल पर बैठती है तो उसके पैर से रोगाणु चिपक जाते हैं। फिर वही मक्खी जब भोजन पर बैठती है तो रोगाणु भोजन से चिपक जाते हैं। जब कोई आदमी उस भोजन को खाता है तो वह बीमार पड़ सकता है।

अंग विशिष्ट तथा ऊतक विशिष्ट अभिव्यक्ति

संक्रमण के कुछ प्रभाव अंग विशिष्ट होते हैं तो कुछ ऊतक विशिष्ट। खाँसी होना या कलेजे में दर्द अंग विशिष्ट प्रभाव के उदाहरण हैं। ऊतक विशिष्ट प्रभाव अक्सर पूरे शरीर पर सामान्य लक्षण उत्पन्न करते हैं। बुखार आना, शोथ होना, आदि ऊतक विशिष्ट अभिव्यक्ति के उदाहरण हैं। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली रोगों से लड़ना शुरु कर देती है। रोगाणु को मारने के उद्देश्य से शरीर का तापमान बढ़ जाता है और हमें बुखार हो जाता है। किसी विशेष अंग में श्वेत और लाल रक्त कणिकाओं का प्रवाह बढ़ जाने से वहाँ पर शोथ (फूलना) हो जाता है। ऐसे में शोथ वाले स्थान पर दर्द भी होता है।

उपचार के नियम

उपचार के दो नियम होते हैं: रोग के लक्षण को कम करना और रोग के कारण को समाप्त करना। लक्षणों को कम करने से मरीज को बहुत आराम मिलता है। इसलिए बुखार, दर्द और शोथ को कम करने के लिए कुछ दवाइयाँ दी जाती हैं। रोग के कारण को समाप्त करने के लिए रोगाणु को निष्क्रिय करने या मारने की दवा दी जाती है।

बैक्टीरिया को निष्क्रिय करने या मारने के लिए जो दवा दी जाती है उसे एंटीबायोटिक कहते हैं। लेकिन एंटिबायोटिक केवल बैक्टीरिया पर काम करते हैं और कवक या वायरस या कृमि पर काम नहीं करते है। इससे साफ होता है कि एक खास प्रकार के सूक्ष्मजीव को मारने में एक खास प्रकार की दवा ही कारगर होती है। ऐसा इसलिए होता है कि एक विशेष समूह के सूक्ष्मजीवों की जैविक रासायनिक क्रियाएँ अपने आप में अनूठी होती हैं।

इसे समझने के लिए एंटिबायोटिक का उदाहरण लेते हैं। एंटिबायोटिक का काम होता है बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति के बनने को रोक देना। जब कोशिका भित्ति नहीं बनेगी तो नया बैक्टीरिया भी नहीं बनेगा और संक्रमण के कारक को समाप्त किया जा सकेगा। लेकिन वायरस के पास कोशिका भित्ति नहीं होती है और इसलिए उनपर एंटीबायोटिक बेअसर साबित होते हैं। हमारे शरीर की कोशिकाओं में कोशिका भित्ति नहीं होती इसलिए एंटीबायोटिक से हमारे शरीर की कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुँचता है।

निवारण के उपाय

एक मान्यता है कि उपचार से निवारण बेहतर है। एक बार कोई आदमी तीन चार दिनों के लिए भी बीमार पड़ जाता है तो इससे बड़ी परेशानी होती है। बिमारी के इलाज में पैसे खर्च होते हैं। बीमार आदमी कई दिनों के लिए काम नहीं कर पाता है या उसकी पढ़ाई लिखाई हर्ज होती है। रोगी की तीमारदारी में घर के अन्य सदस्यों का भी समय बरबाद होता है। इसलिए अगर किसी न किसी उपाय से रोग की रोकथाम की जाए तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। रोगों के निवारण की दो विधियाँ हैं: सामान्य उपाय और रोग विशिष्ट विधियाँ।

सामान्य उपाय

आप रोज सुबह शौच के लिए जाते हैं, दाँतों को ब्रुश करते हैं और नहाते हैं ताकि आप साफ सुथरे रह सकें। साफ सुथरा रहने से रोगों से बचा जा सकता है। इसके अलावा हम अपने घर में और आसपास साफ सफाई रखते हैं। सर्दी जुकाम के मौसम में हम भीड़-भाड़ वाली जगह पर जाने से बचते हैं। दस्त और जॉन्डिस से बचने के लिए हम भोजन करने से पहले हाथ धोते हैं। ये सभी उपाय किसी एक रोग के लिए नहीं बल्कि कई रोगों की रोकथाम के लिए किये जाते हैं। इसलिए इन्हें सामान्य उपाय कहते हैं।

रोग विशिष्ट उपाय

जब हम किसी रोग विशेष की रोकथाम करना चाहते हैं हम उस रोग का टीका लगवाते हैं। चेचक का टीका केवल चेचक की रोकथाम करता है। इसलिए यह एक रोग विशिष्ट उपाय हुआ। आज टीकों के कारण कई खतरनाक बीमारियों की रोकथाम संभव हो गई है। उदाहरण: टेटनस, टीबी, कुकुरखाँसी, रेबीज, हिपेटाइटिस, आदि।

टीका या वैक्सीन

यह ऐसी दवाई है जिसको शरीर में डालने से शरीर किसी रोग विशेष से लड़ने का तरीका सीख जाता है। सबसे पहले टीके का आविष्कार (चेचक का टिका) एडवर्ड जेनर ने किया था। टीका पड़ने के बाद हमारा शरीर उस रोग विशेष से लड़ने के लिए एंटीबॉडी (प्रतिजीवी) बना लेता है। इससे फायदा ये होता है कि भविष्य में यदि संक्रमण लगता है तो हमारा शरीर आराम से उस रोगाणु से लड़ लेता है।