प्राकृतिक संपदा
जिस वस्तु का उपयोग हम अपने लाभ के लिए कर सकते हैं उसे संपदा कहते हैं। जो संपदा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध हो उसे प्राकृतिक संपदा कहते हैं। उदाहरण: जल, वायु, मिट्टी, पौधे, पशु, आदि।
जीवमंडल: पृथ्वी पर उपस्थित वह क्षेत्र जहाँ पर वायुमंडल, स्थलमंडल और जलमंडल एक साथ मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं, जीवमंडल कहलाता है। जीवमंडल के घटक दो प्रकार के होते हैं: जैविक घटक और अजैव घटक।
- जैविक घटक: सारे सजीव मिलकर जीवमंडल के जैविक घटक का निर्माण करते हैं। उदाहरण: पादप, जंतु, बैक्टीरिया, कवक, आदि।
- अजैव घटक: जीवमंडल में उपस्थित निर्जीव घटकों को अजैव घटक कहते हैं। उदाहरण: वायु, जल, मृदा, आदि।
वायु
वायु एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संपदा है। पृथ्वी के चारों ओर रहने वाली वायु की परत को वायुमंडल कहते हैं। आप जानते हैं कि वायु एक मिश्रण हैं जिसमें कई गैसें, जलवाष्प और धूलकण मौजूद होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में नाइट्रोजन सबसे अधिक बहुतायत में है (78%) और उसके बाद ऑक्सीजन (21%) का नम्बर आता है। बाकी 1% हिस्से में अन्य गैसें आती हैं। अलग-अलग ग्रहों के वायुमंडल का संगठन अलग-अलग होता है।
सजीवों के लिये वायु का महत्व
सजीवों के लिए वायु अत्यंत महत्वपूर्ण है। हर जीव को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है और वह ऑक्सीजन वायु से मिलती है। पादप अपना भोजन बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड वायु से ही लेते हैं।
जलवायु नियंत्रण में वायु की भूमिका
वायु ऊष्मा का कुचालक होती है। इसलिए हमारा वायुमंडल पृथ्वी को बहुत अधिक गर्म होने से बचाता है। वायुमंडल में उपस्थित कुछ गैसें पृथ्वी पर की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं ताकि पृथ्वी रात में बहुत ठंडी न हो जाए। इससे पृथ्वी पर का तापमान चौबीसों घंटे एक सीमित प्रसार या रेंज में रहता है। पृथ्वी न तो बहुत अधिक गर्म होती है और न ही बहुत अधिक ठंडी। इससे पृथ्वी पर जीवन के अनुकूल या परिवेश तापमान बना रहता है। अन्य ग्रहों पर तापमान या तो बहुत अधिक होता है या बहुत कम। कई पिंडों पर तापमान का प्रसार भी बहुत अधिक रहता है। इसलिए अन्य ग्रहों या पिंडों पर जीवन संभव नहीं है।
पवन
बहती हुई वायु को पवन कहते हैं। हम जानते हैं कि हवा जब गर्म होती है तो वह ऊपर उठती है। इससे नीचे कम दाब का क्षेत्र बनता है। कम दाब के क्षेत्र को भरने के लिए आस पास की ठंडी हवा वहाँ पहुँच जाती है। यह चक्र लगातार चलता है जिसके कारण पवन बनती है। पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में हवा के गर्म होने की दर अलग-अलग होती है जिसके कारण कई तरह की पवनें बहती हैं। मंद गति के पवन को समीर तो तेज गति के पवन को आंधी कहते हैं। पवन की विभिन्न गतियों और दिशाओं के कारण धरती पर मौसम में बदलाव होते रहते हैं।
जलीय समीर और स्थलीय समीर
तटीय इलाकों में समुद्र की सतह की तुलना में जमीन तेजी से गर्म होती है। इससे जमीन के ऊपर की हवा ऊपर उठती है और नीचे हुए खाली स्थान को भरने के लिए समुद्र की सतह से ठंडी हवा जमीन की ओर आती है। इसे जलीय समीर कहते हैं। रात में इसका उल्टा होता है। रात में समुद्र की तुलना में जमीन तेजी से ठंडी हो जाती है। ऐसे में समुद्र के सतह की गर्म हवा ऊपर उठती है और नीचे का खाली स्थान भरने के लिए जमीन से समुद्र की ओर हवा चलती है। इसे स्थलीय समीर कहते हैं।
वायु प्रदूषण
वायु में हानिकारक पदार्थों की मात्रा जब इतनी बढ़ जाए कि वह जीवन के लिए खतरनाक होने लगे तो ऐसी स्थिति को वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है जीवाष्म ईँधन का प्रयोग। जीवाष्म ईंधन के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड निकलते हैं। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से हवा का तापमान बढ़ जाता है। नाइट्रोजन और सल्फर के ऑक्साइड के कारण अम्लीय वर्षा होती है जो जंतुओं और पादपों के लिए हानिकारक होती है। कारखानों और पत्थर के चिप्स बनाने वाले उपक्रमों से हवा में निलंबित कणों की मात्रा बढ़ जाती है। जब धुँआ और निलंबित कण कोहरे के साथ मिल जाते हैं तो स्मॉग (या धूम कोहरा) का निर्माण होता है। स्मॉग के कारण सब कुछ धुंधला नजर आता है और सांस लेने में भी कठिनाई होती है। वायु प्रदूषण से सांस की तकलीफ बढ़ जाती है।
वर्षा
नदियों, तालाबों और समुद्र का पानी सूर्य की गर्मी से वाष्प में बदलता रहता है। इसके अलावा, पादपों द्वारा वाष्पोत्सर्जन द्वारा भी भारी मात्रा में जलवाष्प वायुमंडल में पहुँचता है। जब जलवाष्प हवा में अधिक ऊँचाई पर पहुँचता है तो संघनित होकर जल की बूँदों में बदल जाता है। ये बूँदें किसी धूलकण या किसी अन्य निलंबित कण के चारों ओर इकट्ठा हो जाती हैं और फिर बादल का निर्माण करती हैं। बादल के बनने में धूलकण की भूमिका एक नाभिक की होती है जिसके चारों ओर जलवाष्प इकट्ठा हो सके। जब बादल में जल की बूँदों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है तो गुरुत्व के प्रभाव में वे वर्षा के रूप में पृथ्वी पर गिर जाती हैं। कई बार जब तापमान अचानक से बहुत नीचे आता है तो ओले गिरते हैं या फिर बर्फ गिरती है।
जल
जल एक महत्वपूर्ण संपदा है। हर जैव-रासायनिक प्रक्रिया के लिए जल की जरूरत पड़ती है। हमारे शरीर के कुल वजन का लगभग 70% हिस्सा जल से बना है, इससे आप जल के महत्व का अनुमान लगा सकते हैं। पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन की शुरुआत जल में ही हुई थी। आज भी जिस स्थान पर जल बिलकुल भी नहीं है, वहाँ पर जीवन के मिलने की संभावना नगण्य है। धरती के जिन हिस्सों में भरपूर वर्षा होती है, वहाँ की जैव-विविधता अधिक होती है। इसलिए सहारा मरुस्थल की तुलना में अमेजन के वर्षावन में जैव विविधता अधिक होती है।
जल प्रदूषण
जब जल में उपस्थित पदार्थ जीवों के लिए हानिकारक हो जायें तो ऐसी स्थिति को जल प्रदूषण कहते हैं। जल प्रदूषण तीन तरह से हो सकता है।
- जल में अवांछित पदार्थों के मिलने से यह जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे अवांछित पदार्थों के उदाहरण हैं फर्टिलाइजर, डिटर्जेंट, कीटनाशक, तेल, मलमूत्र, आदि।
- जल से उपयोगी पदार्थों के हटने से भी जल जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है। आप जानते हैं कि जलीय जीव सांस लेने के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं। कई बार प्रदूषण के कारण या फिर शैवाल की बहुतायत के कारण जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इससे जलीय जीवों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
- जल का तापमान बढ़ने या घटने से भी यह जीवों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट से जल का तापमान बढ़ सकता है। कई जलीय जीवों के अंडे और लार्वा एक खास तापमान में ही जिंदा रह पाते हैं। यदि जल का तापमान इस रेंज से अलग होगा तो इससे उन जीवों के जीवन चक्र पर बुरा असर पड़ेगा।