कोशिका
जीवन की मौलिक इकाई
कोशिका: कोशिका जीवन की मौलिक इकाई है। हर जीव का शरीर कोशिकाओं से बना होता है। इसलिए कोशिका को जीवन की संरचनात्मक इकाई कहते हैं। एक सजीव कोशिका में यह क्षमता होती है कि वह स्वतंत्र रूप से रह सके; जैसा कि एककोशिकीय जीवों में होता है। हर सजीव कोशिका उपापचय की क्रियाएँ संपन्न करती है। इसलिए कोशिका को जीवन की क्रियात्मक इकाई भी कहते हैं।
कोशिका की खोज का इतिहास
- सबसे पहले रॉबर्ट हुक ने कोशिका का पता 1665 में लगाया था।
- ल्यूवेनहाक ने 1674 में तालाब के जल में स्वतंत्र रूप से जीवित कोशिकाओं का पता लगाया था।
- रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 में कोशिका केन्द्रक की खोज की।
- जे ई पुरकिंये ने 1839 में कोशिका में उपस्थित तरल जैविक पदार्थ को जैव द्रव का नाम दिया।
- एम स्लीडेन (1838) और टी स्वान (1839) ने कोशिका सिद्धांत प्रतिपादित किया था। उनके सिद्धांत के अनुसार सभी जंतु और पौधे कोशिका से बने होते हैं और कोशिका जीवन की मूलभूत इकाई है।
- विरचो (1855) ने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया और कहा कि किसी भी कोशिका का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिका से होता है।
- 1940 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज हुई। उसके बाद कोशिका की जटिल संरचनाओं को समझना संभव हो पाया।
कोशिका की आकृति और आकार
कोशिका की आकृति और आकार इस बात पर निर्भर रहता है कि कोई कोशिका किस प्रयोजन के लिए बनी है। कुछ कोशिकाएँ अति सूक्ष्म होती हैं और उन्हें नंगी आँखों से नहीं देख सकते। कुछ कोशिका इतनी बड़ी होती है कि नंगी आँखों से दिखाई देती है। शुतुरमुर्ग का अंडा सबसे बड़ी कोशिका का उदाहरण है।
कुछ कोशिका अनियमित आकार की होती है, जैसे अमीबा और श्वेत रक्त कण। कुछ कोशिका गोल तो कुछ चपटी होती है। तंत्रिका कोशिका एक तारे के समान होती है जिसके पीछे लंबी दुम होती है। पेशी की कोशिकाएँ लंबी और रेशे के समान होती हैं।
कोशिका की संरचना
साधारण सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोशिका के तीन मुख्य भाग दिखाई देते हैं: कोशिका झिल्ली, कोशिका द्रव्य और केंद्रक।
कोशिका झिल्ली
कोशिका के बाहरी आवरण को कोशिका झिल्ली कहते हैं। यह कोशिका को एक सीमा के भीतर रखने का काम करती है ताकि कोशिका के भीतर के पदार्थ कोशिका के बाहर के वातावरण से अलग रहें। कोशिका झिल्ली वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली (सेमी परमिएबल मेम्ब्रेन) होती है। इसका मतलब है कि कोशिका झिल्ली से होकर कुछ चुनिंदा पदार्थों का ही आवागमन होता है। कुछ जीवों में कोशिका झिल्ली भोजन ग्रहन करने में सहायक होती है, जैसे की अमीबा में। कोशिका झिल्ली मुख्य रूप से लिपिड और प्रोटीन से बनी होती है।
कोशिका में पदार्थों की गति
कोशिका झिल्ली से होकर कुछ पदार्थों का आवागमन विसरण के द्वारा होता है। जिस प्रक्रिया से पदार्थों के कण अधिक सांद्रता से कम सांद्रता की ओर अपने आप गमन करते हैं उसे विसरण कहते हैं। जब आपके घर के किसी कमरे में अगरबत्ती जलती है तो उसकी सुगंध पूरे कमरे में विसरण के कारण फैलती है। विसरण के कारण ही कोई सुगंध या दुर्गंध हमारी नाक तक पहुँचती है।
परासरण
जब आप चने या किशमिश को पानी में भिगोने के लिए छोड़ते हैं तो चने या किशमिश की कोशिकाएँ विसरण के कारण पानी सोखती हैं। इसलिए चने या किशमिश फूल जाते हैं। कोशिका के भीतर यदि कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता अधिक हो और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता उससे कम हो तो कार्बन डाइऑक्साइड कोशिका से निकलकर वातावरण में चला जाता है। इसी तरह से विसरण द्वारा कई पदार्थों का आवागमन कोशिका झिल्ली से होकर होता है।
जब जल का विसरण किसी वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा हो तो उस प्रक्रिया को परासरण कहते हैं। ऐसे में जल का गमन जल की अधिक सांद्रता वाले क्षेत्र से जल की कम सांद्रता वाले क्षेत्र की ओर होता है।
जब किसी जंतु कोशिका या पादप कोशिका को नमक या चीनी के विलयन में रखा जाता है तीन संभावनाएँ होती हैं।
- अल्पपरासरणदाबी विलयन: जब विलयन तनु होता है तो विलयन की सांद्रता कोशिका के अंदर के द्रव की सांद्रता से कम होती है। ऐसी स्थिति में जल का परासरण बाहर से कोशिका के भीतर की ओर होता है। इस विलयन को अल्पपरासरणदाबी विलयन कहते हैं। इस प्रकार के विलयन में रखने के बाद जल सोखने के कारण कोशिका फूल जाती है।
- समपरासारी विलयन: जब विलयन की सांद्रता और कोशिकाद्रव्य की सांद्रता एक समान होती है तो जल का आवगमन नहीं होता है। इस विलयन को समपरासारी विलयन कहते हैं। इस प्रकार के विलयन में रखने के बाद कोशिका के आकार में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- अतिपरासरणदाबी विलयन: जब विलयन की सांद्रता कोशिकाद्रव्य की सांद्रता से अधिक होती है तो जल का परासरण कोशिका से बाहर की ओर होता है। इस विलयन को अतिपरासरणदाबी विलयन कहते हैं। इस प्रकार के विलयन में रखने के बाद जल का ह्रास होने के कारण कोशिका सिकुड़ जाती है।
कोशिका भित्ति
पादप कोशिकाओं तथा कुछ अन्य कोशिकाओं में कोशिका झिल्ली के बाहर एक कम लचीला और सख्त आवरण होता है जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं। पादप कोशिका की कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बनी होती है। कोशिका भित्ति का काम होता है कोशिका को दृढ़ता प्रदान करना। जब कोई पादप कोशिका अत्यधिक जल अवशोषित करती है या उससे अत्यधिक जल का ह्रास हो जाता है तो कोशिका या तो बहुत अधिक फूल कर फट सकती है या बहुत अधिक सिकुड़ कर नष्ट हो सकती है। ऐसे में कोशिका भित्ति का काम होता है कि कोशिका के दबाव को नियंत्रित करना और उसे नष्ट होने से बचाना।