बल
बल: किसी वस्तु को खींचने, धकेलने या ठोकर लगाने की क्रिया को बल कहते हैं। बल के प्रयोग से किसी भी वस्तु के वेग के परिमाण को और वेग की दिशा को बदला जा सकता है। बल के प्रयोग से वस्तु की आकृति को भी बदला जा सकता है। बल का मात्रक न्यूटन है जिसे N से दर्शाया जाता है।
संतुलित और असंतुलित बल
जब किसी वस्तु पर एक से अधिक बल लग रहे हों और उनका कुल परिमाण शून्य हो तो ऐसे बलों को संतुलित बल कहते हैं। जब किसी वस्तु पर एक से अधिक बल लग रहे हों और उनका कुल परिमाण शून्य नहीं हो तो ऐसे बलों को असंतुलित बल कहते हैं। संतुलित बल से किसी वस्तु की गति में परिवर्तन नहीं होता है। गति में परिवर्तन के लिए असंतुलित बल की जरूरत होती है।
गति के नियम
गति का पहला नियम
कोई भी वस्तु स्थिर अवस्था या गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है जब तक उसपर कोई बाहरी बल न लगाया जाये।
किसी भी वस्तु के विराम या गतिज अवस्था में रहने की प्रवृत्ति को उस वस्तु का जड़त्व कहते हैं। इसलिए न्यूटन के गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं। किसी वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान से मापा जाता है। इसलिए किसी ठेलागाड़ी को ठेलकर गति में लाना आसान होता है जबकि किसी रेलगाड़ी को ठेलकर गति में लाना असंभव होता है।
उदाहरण: मान लीजिए कि कि कोई कप एक टेबल पर रखा हुआ है। कप तब तक वहीं पड़ा रहेगा जब तक कि बाहरी बल लगाकर उसे इधर उधर न किया जाये।
उदाहरण: मान लीजिए कि आप कार में कहीं जा रहे हैं। कार का ड्राइवर अचानक ब्रेक लगाता है तो आपका शरीर आगे की ओर झुक जाता है। गति के पहले नियम से इसे समझा जा सकता है। जब कार एक नियत वेग से चल रही होती है तो उसके साथ आपका शरीर भी उसी वेग से चल रहा होता है। जब कार में ब्रेक लगाया जाता है तो कार की सीट विरामावस्था में आने लगती है लेकिन आपके शरीर का ऊपरी हिस्सा गति में ही रहता है। इसलिए अचानक ब्रेक लगाने पर आप आगे की ओर झुक जाते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए कि एक बस खड़ी है जिसके अंदर आप भी खड़े हैं। जब ड्राइवर अचानक से गाड़ी को आगे बढ़ाना शुरु करता है तो आपका शरीर पीछे की ओर झुक जाता है। ऐसी स्थिति में आपके शरीर का निचला हिस्सा बस के साथ गति में आ जाता है लेकिन ऊपरी हिस्सा विराम अवस्था में ही रहना चाहता है। इसलिए आपका शरीर पीछे की ओर झुक जाता है।
गति का दूसरा नियम
किसी वस्तु में संवेग में परिवर्तन की दर उस वस्तु पर लगने वाले असंतुलित बल के समानुपाती होती है और उसी दिशा में काम करती है जिस दिशा में बल लगाया गया हो।
संवेग: किसी वस्तु के द्रव्यमान और उसके वेग के गुणनफल को संवेग कहते हैं। यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m है और वेग v है, तो उसके संवेग p को नीचे दिये गये समीकरण से दिखाया जा सकता है।
`p=m×v`
द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम है और वेग का मात्रक मीटर प्रति सेकंड है। इसलिए संवेग का मात्रक किग्रा मी प्रति से है। (kg m s-1)
इससे पता चलता है कि यदि दो वस्तुएँ समान वेग से चल रही हैं तो भारी वस्तु का संवेग हल्की वस्तु की तुलना में अधिक होगा। इसलिए यदि कोई साइकिल 10 किमी प्रति घंटा के वेग से आपसे टकरा जाये तो आपको अधिक चोट नहीं आयेगी। लेकिन यदि कोई ट्रक आपसे 10 किमी प्रति घंटा के वेग से टकरा जाये तो आपको बहुत चोट आयेगी।