कोशिका
केंद्रक
सूक्ष्मदर्शी से देखने पर कोशिका में एक बिंदु दिखाई देती है जिसे केंद्रक कहते हैं। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से देखने पर केंद्रक की संरचना स्पष्ट दिखाई देती है।
केंद्रक के बाहर एक दोहरी झिल्ली होती है जिसे केंद्रक झिल्ली कहते हैं। केंद्रक के भीतर स्थित द्रव को केंद्रकद्रव्य कहते हैं।
केंद्रक के भीतर क्रोमोसोम होते हैं जो कोशिका विभाजन के समय छ्ड़ों के समान दिखते हैं। जब कोशिका विभाजन नहीं हो रहा होता है तो क्रोमोसोम धागे के समान रचनाओं के जाल के रूप में व्यवस्थित होते हैं। क्रोमोसोम डीएनए और प्रोटीन से बना होता है। डीएनए अणु के रूप में आनुवंशिक सूचनाएँ रहती हैं जिन्हें जीन कहते हैं। ये सूचनाएँ जीन (डीएनए) के माध्यम से माता पिता से संतानों में स्थानांतरित होती हैं। कोशिका विभाजन में केंद्रक की अहम भूमिका होती है।
प्रोकैरियोट
जिन कोशिकाओं में केंद्रक स्पष्ट नहीं होता है और केंद्रक झिल्ली का अभाव होता है उन्हें प्रोकैरियोट कहते हैं। बैक्टीरिया जो कि एककोशिकीय जीव होते हैं प्रोकैरियोट होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिका में झिल्ली युक्त अंगक अनुपस्थित होते हैं।
यूकैरियोट
जिन कोशिकाओं में केंद्रक स्पष्ट होता है यानि केंद्रक झिली से घिरा होता है उन्हें यूकैरियोट कहते हैं। पादप और जंतु की कोशिकाएँ यूकैरियोटिक कोशिकाएँ होती हैं। यूकैरियोटिक कोशिका में झिल्ली युक्त अंगक होते हैं।
कोशिकांग या कोशिका के अंगक
यूकैरियोटिक कोशिका में कई अंगक होते हैं जिनके अलग-अलग कार्य होते हैं। इनके बारे में नीचे दिया गया है।
अंत:द्रव्यी जालिका
यह नलिकाओं के जाल जैसा दिखता है जो कोशिका झिल्ली से लेकर केंद्रक झिल्ली तक फैला होता है। अंत:द्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती है: खुरदरी और चिकनी। खुरदरी अंत:द्रव्यी जालिका की सतह पर राइबोसोम उपस्थित रहते हैं, जबकि चिकनी अंत:द्रव्यी जालिका की सतह पर राइबोसोम नहीं रहते हैं। राइबोसोम का काम है प्रोटीन संश्लेषण। इसलिए खुरदरी अंत:द्रव्यी जालिका में प्रोटीन का निर्माण होता है। चिकनी अंत:द्रव्यी जालिका में वसा (लिपिड) का निर्माण होता है। कुछ प्रोटीन तथा वसा का उपयोग झिल्ली निर्माण में होता है। इस प्रक्रिया को झिल्ली जीवात-जनन कहते हैं। अंत:द्रव्यी जालिका का एक और काम है पदार्थों का परिवहन।
गॉल्जी काय
यह एक तंत्र है जिसमें झिल्ली युक्त चपटी पुटिकाएँ या थैलियाँ एक दूसरे के ऊपर समानांतर रूप से सजी रहती हैं। इन थैलियों को कुंडिका कहते हैं। अंत:द्रव्यी जालिका और गॉल्जी उपकरण मिलकर एक जटिल कोशिकीय झिल्ली तंत्र का निर्माण करते हैं। अंत:द्रव्यी जालिका में जिन पदार्थों का निर्माण होता है उनकी पैकेजिंग का काम गॉल्जी उपकरण में होता है। गॉल्जी उपकरण में पदार्थों का संचयन, रूपांतरण और पैकिंग होती है। लाइसोसोम का निर्माण भी गॉल्जी उपकरण में होता है।
लाइसोसोम
यह एक थैली जैसी संरचना होती है जिसके भीतर पाचक एंजाइम होते हैं। इन एंजाइम का निर्माण खुरदरी अंत:द्रव्यी जालिका में होता है। लाइसोसोम का काम है उत्सर्जन यानि अपशिष्ट पदार्थों का निपटारा करना। कोशिका में उपापचय के बाद कई अपशिष्ट बनते हैं जिनका निपटान लाइसोसोम द्वारा होता है। इससे कोशिका के भीतर साफ सफाई होती रहती है। जब कोई कोशिका क्षतिग्रस्त हो जाती है या मृत हो जाती है तो लाइसोसोम फट जाता है और एंजाइम अपनी ही कोशिका को पचा लेते हैं। इसलिए लाइसोसोम को कोशिका की आत्मघाती थैली कहते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया
यह एक कैप्सूल जैसी रचना है जिसके बाहर दो झिल्लियाँ रहती हैं। बाहरी झिल्ली छिद्रित होती है और भीतरी झिल्ली वलयित होती है। वलयित होने के कारण भीतरी झिल्ली में अंगुलीनुमा प्रवर्ध निकले रहते हैं जिन्हें क्रिस्टी कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर श्वसन होता है जिससे ऊर्जा निकलती है। इस ऊर्जा का संचयन क्रिस्टी द्वारा एटीपी (ATP) अणु के रूप में होता है। एटीपी का इस्तेमाल कोशिका द्वारा जरूरत के अनुसार ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। चूँकि माइटोकॉन्ड्रिया में ऊर्जा का उत्पादन होता है इसलिए इसे कोशिका का बिजली घर या पावरहाउस भी कहते हैं।
प्लैस्टिड
यह झिल्लीदार रचना होती है जो बहुत कुछ माइटोकॉन्ड्रिया जैसी दिखती है। प्लैस्टिड केवल पादप कोशिका में पाये जाते हैं। रंगहीन प्लैस्टिड को ल्यूकोप्लास्ट और रंगीन प्लैस्टिड को क्रोमोप्लास्ट कहते हैं। ल्यूकोप्लास्ट का काम है भोजन का संचयन करना। क्रोमोप्लास्ट का काम है पादप के अंगों को खास रंग प्रदान करना। जिस प्लैस्टिड में क्लोरोफिल नामक पिगमेंट होता है उसे क्लोरोप्लास्ट कहते हैं। क्लोरोफिल के कारण पत्तियों का रंग हरा होता है।
क्लोरोप्लास्ट
क्लोरोप्लास्ट दो झिल्लियों से घिरा होता है। इसके भीतर कई झिल्लीदार परते होती हैं जो स्ट्रोमा में स्थित होती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया और क्लोरोप्लास्ट के पास अपना डीएनए और राइबोसोम भी होता है। इसलिए इन अंगकों में कुछ प्रोटीन का निर्माण संभव हो पाता है।
रसधानियाँ
ठोस या तरल पदार्थों से युक्त संग्राहक थैलियों को रसधानी कहते हैं। जंतु कोशिका में छोटी रसधानियाँ होती हैं जबकि पादप कोशिका में बड़ी रसधानियाँ होती हैं। कुछ पादप कोशिका में केंद्रीय रसधानी का माप कोशिका के आयतन का 50 से 90% तक हो सकता है। पादप कोशिका की रसधानी कोशिका को स्फीती तथा कठोरता प्रदान करती है।
कोशिका विभाजन
जिस प्रक्रिया द्वारा एक कोशिका से दो या उससे अधिक कोशिकाओं का निर्माण होता है उसे कोशिका विभाजन कहते हैं। कोशिका विभाजन के दो प्रकार हैं: सूत्री विभाजन या समसूत्री विभाजन तथा अर्धसूत्री विभाजन।
समसूत्री विभाजन
जिस कोशिका विभाजन से उत्पन्न पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका में गुणसूत्रों (क्रोमोसोम) की संख्या के बराबर होती है उसे सूत्री विभाजन कहते हैं। सूत्री विभाजन के परिणामस्वरूप एक मातृ कोशिका से दो पुत्री कोशिकाएँ बनती हैं। समसूत्री विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है और यह वृद्धि और मरम्मत के लिए आवश्यक होता है।
अर्धसूत्री विभाजन
जिस कोशिका विभाजन से उत्पन्न पुत्री कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या मातृ कोशिका में क्रोमोसोम की संख्या के समान होती है उसे अर्धसूत्री विभाजन कहते हैं। अर्धसूत्री विभाजन के बाद एक मातृ कोशिका से चार पुत्री कोशिकाएँ बनती हैं। अर्धसूत्री विभाजन उन कोशिकाओं में होता है जिनमें युग्मकों का निर्माण होता है। जंतु और पादप में प्रजनन अंगों की विशेष कोशिकाओं में अर्धसूत्री विभाजन होता है। लैंगिक जनन में अर्धसूत्री विभाजन की अहम भूमिका होती है।