व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री
आप क्या सीखेंगे
- प्राचीन काल के व्यापारी
- तटीय क्षेत्रों के राज्य
- तीर्थयात्री
- बौद्ध धर्म
- भक्ति परंपरा
प्राचीन काल के व्यापारी
एक व्यापारी चीजों को खरीदने और बेचने का काम करता है। प्राचीन काल से ही मनुष्य व्यापार करता आ रहा है। चीजों को बेचने और खरीदने के लिए व्यापारी लंबी यात्राएँ किया करते थे। साथ में वे संस्कृति और विचारों के आदान प्रदान में भी मददगार होते थे।
रोम के साथ व्यापार संबंध: दक्षिण भारत का सोना और यहाँ के मसाले दूर दूर तक विख्यात थे। काली मिर्च इतनी कीमती होती थी कि इसे ‘काला सोना’ कहा जाता था। रोम के व्यापारी जहाजों और काफिलों में आते थे और यहाँ से काली मिर्च ले जाते थे। दक्षिण भारत से रोम के अनेक सिक्के मिले हैं, जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि भारत और रोम के बीच अच्छा खासा व्यापार होता था।
भारत से होकर प्राचीन समुद्री मार्ग
व्यापारियों ने भारत से होकर कई समुद्री मार्गों की खोज की। इनमे से कुछ मार्ग तट के साथ साथ चलते थे। कुछ मार्ग अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से होकर जाते थे। इन सागरों को पार करते वक्त व्यापारी दक्षिण-पश्चिमी मानसून की मदद लेते थे। कठिन समुद्री यात्रा को झेलने के लिए जहाजों को मजबूत बनाया जाता था।
तटीय क्षेत्रों के नये राज्य
भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में एक लंबी तटीय रेखा है। इस तटरेखा में कई पहाड़ियाँ, पठार और नदी घाटियाँ हैं। इस तटरेखा के आस पास व्यापार काफी फला फूला। इसलिए जो राजा या मुखिया इस तटरेखा पर नियंत्रण पा लेता था वह बहुत शक्तिशाली और धनी हो जाता था। आज से करीब 2300 वर्ष पहले दक्षिण भारत में तीन राजपरिवारों का बोलबाला था। इनके नाम थे, चोल, चेर और पाण्ड्य। संगम साहित्य में कई बार ‘मुवेन्दार’ का जिक्र आया है। मुवेन्दार का मतलब होता है तीन मुखिया। इस शब्द का प्रयोग इन्हीं तीन राजवंशों के लिए किया गया है।
दक्षिण के महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र: इनमे से हर मुखिया की सत्ता के दो केंद्र थे। इनमे से एक तटीय हिस्से में तथा दूसरा अंदरूनी हिस्से में होता था। इस तरह से दक्षिण भारत में छ: शक्तिशाली नगर थे। इनमें से सबसे अहम थे पुहार (या कावेरीपट्टनम) और मदुरै। कावेरीपट्टनम का बंदरगाह चोल के अधीन था, जबकि मदुरै में पाण्ड्य की राजधानी थी।
टैक्स: ये शक्तिशाली राजा व्यापारियों को सुरक्षा प्रदान करते थे। लेकिन बदले में वे कर नहीं वसूलते थे, बल्कि वे व्यापारियों से उपहार मांगते थे। वे अक्सर सैनिक अभियान पर निकल जाते थे और आस पास के इलाकों से उपहार वसूलते थे।
वसूले गये धन का कुछ हिस्सा राजा अपने पास रख लेता था। लेकिन इसका अधिकांश भाग अन्य लोगों में बाँट दिया जाता था, जैसे कि रिश्तेदारों, सैनिकों और कवियों में। संगम साहित्य के कई कवियों ने इन राजाओं की प्रशस्ति में कविताएँ लिखी हैं। उपहार के तौर पर कवियों को कीमती पत्थर,सोना, घोड़े, हाथी, रथ, उत्कृष्ट कपड़े, आदि मिलते थे।
सातवाहन: सातवाहन एक शक्तिशाली राजवंश था। लगभग 200 वर्ष बाद यह पश्चिम भारत में उभरा। सातवाहन राजवंश के सबसे शक्तिशाली राजा का नाम था गौतमीपुत्र श्री सातकर्णी। उसकी माता गौतमी बलश्री ने उसके बारे में अभिलेख लिखा था। इसी अभिलेख से हमें सातकर्णी के बारे में पता चलता है। सातवाहन शासकों को ‘दक्षिणापथ के स्वामी’ कहा जाता था। ‘दक्षिणापथ’ का अर्थ है दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता। सातकर्णी ने अपनी सेनाओं को पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी इलाकों में भी भेजा।