आरंभिक मानव की खोज में
आप क्या सीखेंगे:
- आखेटक-खाद्य संग्राहक का जीवन
- पाषाण युग
- पर्यावरण में बदलाव
- आग की खोज
आखेटक खाद्य संग्राहक का जीवन
आरंभिक मानव आखेटक-खाद्य संग्राहक था। इसका मतलब है कि वह भोजन के लिए शिकार करता था और कंद-मूल-फल इकट्ठा करता था। आरंभिक मानव किसी खानाबदोश की तरह रहता था, यानि एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमता रहता था।
खानाबदोश जीवन के कारण:
- कुछ समय बीतने के बाद एक जगह पर भोजन के स्रोत समाप्त हो जाते होंगे। इसलिए लोगों को नई जगह खोजने के लिए आगे बढ़ना पड़ता होगा।
- हम जानते हैं कि जानवर एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। इसलिए शिकार के नजरिये से लोगों के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाना महत्वपूर्ण रहा होगा।
- अधिकतर पौधे मौसम के हिसाब से फलते फूलते हैं। इसलिए कंद-मूल-फल और बीज समुचित मात्रा में पाने के लिए लोगों को मौसम के हिसाब से एक जगह से दूसरी जगह जाने की जरूरत होती थी।
- कुछ नदियाँ और तालाब गर्मियों में सूख जाते हैं। इसलिए लोगों को पानी की तलाश में नई जगह जाना पड़ता होगा।
पाषाण युग
आरंभिक मानव अपने औजार बनाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करते थे। इसलिए इस युग को पाषाण युग कहते हैं। पाषाण युग को तीन कालों में बाँटा गया है:
- पुरापाषाण युग
- मध्य पाषाण युग
- नव पाषाण युग
पुरापाषाण युग
पुरापाषाण युग का समय 20 लाख से 12 हजार वर्ष पहले तक माना गया है। इस युग के औजार बेढ़ंगे हुआ करते थे। नवपाषाण युग के औजार छोटे और सुगढ़ हुआ करते थे।
इस चित्र में पुरापाषाण युग के औजार दिखाये गये हैं। आप देख सकते हैं कि ये बड़े आकार के और भोथरे हैं। | |
इस चित्र में मध्यपाषाण युग के औजार दिखाये गये हैं। आप देख सकते हैं कि इनका आकार पहले की तुलना में छोटा है। ये औजार अधिक तेज दिख रहे हैं। | |
सबसे आखिर में दिखाये गये औजार बहुत छोटे आकार के है। ये अधिक सुगढ और तेज लग रहे हैं। |
पत्थरों के अलावा, औजार बनाने के लिए हड्डियों और लकड़ी का इस्तेमाल भी होता था। पत्थरों से बने औजारों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें से कुछ तो हम आज भी इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि कई घरों में आपने मसाला पीसने के लिए सिलबट्टे का इस्तेमाल होते देखा होगा।
पत्थरों के औजारों के उपयोग:
- मांस और हड्डियाँ काटने के लिए
- पेड़ की खाल और जानवर की चमड़ी उतारने के लिए
- फल और जड़ काटने के लिए
- कुछ औजारों को हड्डी या लकड़ी से बने हैंडल से जोड़कर कुल्हाड़ी या हथौड़ी बनाई जाती थी।