6 इतिहास

नये साम्राज्य और राज्य

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गुप्त साम्राज्य

सन 320 से 550 तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर गुप्त साम्राज्य का शासन था। गुप्त साम्राज्य के शासन काल में चारों ओर खुशहाली थी। इस दौरान विज्ञान और तकनीक, कला, साहित्य, आदि के क्षेत्र में भी तरक्की हुई। इसलिए गुप्त साम्राज्य को भारत के इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है।

गुप्त साम्राज्य के महान राजाओं में चंद्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चंद्र्गुप्त द्वितीय का नाम आता है। गुप्त साम्राज्य का शासन उत्तर पश्चिम से बंगाल तक फैला हुआ था। यह साम्राज्य दक्कन पठार के उत्तर तक ही सीमित था। लेकिन अपने चरम पर यह साम्राज्य भारत के पूर्वी तटों तक फैला हुआ था।

समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त को गुप्त साम्राज्य का सबसे महान राजा माना जाता है। कुछ इतिहासकार उसे सम्राट अशोक के बराबर मानते हैं। इतिहासकारों को उसके बारे में सिक्कों और अभिलेखों से पता चला है। इलाहाबाद में स्थित एक अशोक स्तंभ से समुद्रगुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। यह एक प्रशस्ति है जिसे हरिषेण ने एक लंबी कविता के रूप में लिखा है। हरिषेण समुद्रगुप्त के दरबार में रहने वाला कवि था।

प्रशस्ति: यह एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है किसी की प्रशंसा। उस जमाने में राजाओं की प्रशंसा में प्रशस्तियाँ लिखी जाती थीं।

अशोक स्तंभ से मिली हुई प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के बारे में निम्नलिखित जानकारी मिलती है:

गुप्त साम्राज्य में प्रशासन

उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा समुद्रगुप्त के सीधे नियंत्रण में था। इस भाग को आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। इस भूभाग में समुद्रगुप्त ने नौ राजाओं को हराकर उनके क्षेत्र को गुप्त साम्राज्य में मिला लिया था।

दक्षिणापथ में उस समय 12 राजा हुआ करते थे। उन्होने समुद्रगुप्त के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। बाद में समुद्रगुप्त ने उन्हें अपने अपने राज्य पर शासन करने की अनुमति दे दी।

पूर्वोत्तर में असम, तटीय बंगाल, नेपाल और कई गण संघों ने समुद्रगुप्त के आदेश का पालन शुरु कर दिया। इन राज्यों के राजा समुद्रगुप्त के दरबार में उपस्थित होते थे और उपहार भी लाते थे।

बाहरी क्षेत्रों के राजाओं ने भी समुद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। उन्होंने समुद्रगुप्त से अपनी बेटियों की शादी करा दी। ऐसे क्षेत्रों में शायद शक, कुषाण और श्रीलंका आते थे। इस तरह से लगभग पूरा उपमहाद्वीप समुद्रगुप्त के अधीन आ चुका था। कुछ भाग पर उसका प्रत्यक्ष रूप से शासन था जबकि कुछ पर परोक्ष रूप से।

राजाओं की बड़ी-बड़ी उपाधियाँ: इस काल में एक नई परिपाटी देखने को मिलती है। राजा ने बड़ी-बड़ी उपाधियों का उपयोग करना शुरु कर दिया, जैसे कि समुद्रगुप्त को महाराज-अधिराज कहा जाता था।