नये साम्राज्य और राज्य
आप क्या सीखेंगे
- राज्यों का प्रशासन
- सेना में बदलाव
- राज्यों में सभाएँ
- अछूत
इन राज्यों का प्रशासन:
अभी भी जमीन ही टैक्स का सबसे बड़ा स्रोत था। प्रशासन की सबसे निचली इकाई गांव थे। लेकिन कई ऐसे बदलाव हुए जिनके कारण सत्ता का समीकरण बदल चुका था।
इस समय कोई भी एक ऐसा राजा नहीं था जो पूरे उपमहाद्वीप पर शासन करने लायक शक्तिशाली हो। राजा अक्सर शक्तिशाली और प्रभावशाली लोगों को अपनी तरफ करने के प्रयास करते थे। वे अक्सर सत्ता की साझेदारी के उपाय निकाला करते थे। कई ऐसे लोग थे जो आर्थिक, सामाजिक या सैन्य शक्ति के मामले में शक्तिशाली थे। राजाओं के इन कदमों के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं।
- कुछ पदों को आनुवंशिक बना दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि पिता की मृत्यु के बाद उस पद को उसका बेटा संभालता था। अब हरिषेण का उदाहरण लेते हैं। अपने पिता की तरह वह भी महादंडनायक था।
- कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमें एक व्यक्ति कई पदों की जिम्मेदारियाँ संभालता था। फिर से हरिषेण का उदाहरण लेते हैं। वह एक कुमार आमात्य तथा संधि-विग्रहिका का पद भी संभालता था।
- कई महत्वपूर्ण लोग स्थानीय प्रशासन में अपना प्रभाव दिखाते थे। उदाहरण: नगर-श्रेष्ठि (बैंक या व्यापारियों का प्रमुख), सार्थवाह (व्यापारियों के काफिले का प्रमुख), कायस्थों (लिपिकों) का प्रधान, आदि।
इन नीतियों से राज्य पर नियंत्रण करने में कुछ हद तक सफलता मिलती थी। लेकिन जैसे ही स्थानीय क्षत्रप की ताकत बढ़ जाती थी वह अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लेता था।
सेना में बदलाव
कुछ राजा अभी भी एक सुसंगठित सेना रखते थे। लेकिन इस समय एक नई परिपाटी भी शुरु हो रही थी। कुछ सेनानायक अपनी सेना रखते थे जिसे जरूरत पड़ने पर राजा की सेवा में लगा दिया जाता था। उन्हें कोई नियमित वेतन नहीं मिलता था। लेकिन उन्हें इसके बदले में भूमिदान मिल जाता था। इसके साथ उन्हें कर वसूलने का अधिकार भी मिल जाता था। उस धन का उपयोग सैनिकों, घोड़ों और युद्ध के साजो-सामान के रखरखाव में किया जाता था। ऐसे सेनानायकों को सामंत कहा जाता था। जब कोई शासक कमजोर हो जाता था तो सामंत स्वतंत्र होने की कोशिश करता था।
दक्षिण के राज्यों में सभाएँ
ब्राह्मण भूमिपतियों के संगठन को सभा कहते थे। ऐसी सभाओं में कई उप-समितियाँ भी होती थी। अलग-अलग उपसमिति अलग-अलग मुद्दों पर काम करती थी, जैसे सिंचाई, सड़क निर्माण, कृषि प्रक्रिया, मंदिर निर्माण, आदि।
गैर-ब्राह्मण भूमिपतियों के संगठन को उर कहते थे। व्यापारियों के संगठन को नगरम कहते थे। सामान्य तौर पर ऐसे संगठनों का नियंत्रण धनी व्यापारियों या भूमिपतियों के हाथ में होता था। दक्षिण भारत में ऐसे संगठन कई सदियों तक बने रहे।
आम लोगों का जीवन
ज्यादातर लेखकों ने राजाओं की बड़ाई में कशीदे पढ़े हैं। लेकिन कुछ ने आम लोगों के बारे में भी लिखा है। कई कहानियों, कविताओं और नाटकों से हमें आम लोगों के जीवन के बारे में पता चलता है। अब राजाओं और ब्राह्मणों की भाषा संस्कृत हो गई थी। आम लोगों की भाषा प्राकृत थी।
अछूतों की स्थिति: फा शिएन ने उस समय के अछूतों की स्थिति के बारे में लिखा है। ऐसे लोगों को समाज की मुख्य धारा से अलग थलग रखा जाता था। जब भी कोई अछूत किसी गांव में प्रवेश करता था तो उसे औरों को अपनी उपस्थिति के बारे में चेताना होता था। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह जमीन पर एक छड़ी को पीटता रहता था। अछूत को गांव या शहर की सीमा के बाहर रहना पड़ता था।