नये साम्राज्य और राज्य
आप क्या सीखेंगे
- हर्षवर्धन
- दक्षिण भारत के राजा
- पल्लव
- चालुक्य
हर्षवर्धन
हर्षवर्धन ने उत्तरी भारत के एक बड़े हिस्से पर 606 से 647 ई तक शासन किया। उसकी राजधानी कन्नौज में थी। उसके दरबार के कवि वाणभट्ट ने उसकी जीवनी लिखी थी जिसका नाम है हर्षचरित। इस जीवनी से हर्षवर्धन के बारे में ढ़ेर सारी जानकारी मिलती है। श्वेन त्सांग भी हर्षवर्धन के दरबार में रहा था। श्वेन त्सांग के विवरणों से भी हमें कई जानकारियाँ मिलती हैं।
हर्षवर्धन का साम्राज्य
हर्षवर्धन के पिता का नाम था प्रभाकर वर्धन जो थानेसर (आज का हरयाणा) के राजा थे। हर्ष अपने पिता का सबसे बड़ा बेटा नही था, लेकिन अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु के बाद वह थानेसर का राजा बना। हर्ष के बहनोई कन्नौज के राजा थे। बंगाल के राजा ने उनकी हत्या कर दी। परिणामस्वरूप हर्षवर्धन ने कन्नौज को भी अपने अधीन कर लिया। उसके बाद उसने बंगाल पर आक्रमण कर दिया। उसने बंगाल और मगध पर जीत हासिल कर ली। लेकिन जब उसने दक्कन की तरफ बढ़ना चाहा तो पुलकेशिन द्वितीय ने उसका रास्ता रोक दिया। पुलकेशिन द्वितीय एक चालुक्य राजा था।
पल्लव
दूसरी और नवीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर पल्लव राजवंश का शासन था। पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम में थी। पल्लवों का क्षेत्र कावेरी डेल्टा तक फैला हुआ था।
चालुक्य
छठी से बारहवीं सदी के बीह मध्य और दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर चालुक्य राजवंश का शासन था। चालुक्यों का क्षेत्र कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित रायचुर दोआब में था। चालुक्य की राजधानी ऐहोल में थी।
पल्लव और चालुक्य राजा अक्सर आपस में लड़ते रहते थे। वे उस क्षेत्र में अपनी प्रभुता साबित करना चाहते थे। राजधानियों पर खासकर से आक्रमण होता था क्योंकि वे समृद्ध शहर थे।
पुलकेशिन द्वितीय को चालुक्य राजवंश का सबसे प्रसिद्ध राजा माना जाता है। पुलकेशिन ने हर्षवर्धण के बढ़ते कदम को भी रोक दिया था। उसकी प्रशस्ति उसके दरबारी कवि रविकीर्ति ने लिखी थी। इसमें हर्षवर्धन की पराजय का विस्तृत वर्णन है।
समय बीतने के साथ पल्लव और चालुक्य राजाओं की जगह राष्ट्रकूट और चोल राजाओं ने ले लिया।