आरंभिक मानव की खोज में
आप क्या सीखेंगे:
- पर्यावरण में बदलाव
- आग की खोज
पर्यावरण में बदलाव
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पाषाण युग का अधिकांश हिस्सा हिम युग (आइस एज) के दौरान बीता था। उस जमाने में चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी और धरती पर घास पात न के बराबर होती थी। ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगभग 12,000 वर्ष पहले हिम युग का अंत हो गया। इसके साथ ही जमीन का एक बड़ा हिस्सा साफ हो गया। इसके साथ सही तापमान मिलने से हरित पादप तेजी से पनपने लगे। हरे-हरे पौधों के पनपने से जानवरों और मनुष्यों के लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ने लगी। यही वह समय था जब आज के जमाने के कई स्तनधारियों का विकास हुआ। इससे मांस की उपलब्धता भी बढ़ गई।
हिम युग के बाद घास के परिवार के पौधे पूरी दुनिया में तेजी से पनपने लगे। आपको पता होगा कि धान, गेहूँ और मक्का जैसे पौधे घास के परिवार के सदस्य हैं। यानि हमारे भोजन का अधिकांश हिस्सा घास के परिवार से मिलता है। यही वह समय रहा होगा जब लोगों ने अनाज का इस्तेमाल करना शुरु किया होगा।
लोग कहाँ रहते थे?
पुरापाषण युग में लोगों के रहने के कुछ मुख्य स्थान नीचे दिये गये हैं:
- भीमबेटका (मध्य प्रदेश)
- हुंस्गी (कर्णाटक)
- कुरनूल की गुफाएँ (आंध्र प्रदेश)
इन स्थानों की दो विशेषताएँ इस तरह हैं:
- ये स्थान नदी के निकट हैं: इसका मतलब है कि पानी की कोई कमी नहीं रही होगी।
- ये स्थान दक्कन के पठार पर हैं: दक्कान के पठार में प्रचुर मात्रा में पत्थर हैं। यानि औजार बनाने के लिए कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था।
उद्योग स्थल: कुछ स्थानों पर औजार बनाने के लिए प्रचुर मात्रा में पत्थर मिलते थे। ऐसे स्थानों का इस्तेमाल औजार बनाने के लिये किया जाता था। ऐसे स्थानों को उद्योग स्थल कहते हैं। कुछ उद्योग स्थलों पर लोग घर बनाकर रहते भी थे। ऐसे स्थानों को आवास उद्योग स्थल कहते हैं।
उद्योग स्थल के प्रमाण: इतिहासकारों को उद्योग स्थलों के कई प्रमाण मिले हैं। कुछ स्थानों पर बड़े-बड़े पत्थर और कुछ आधे बने हुए औजार मिले हैं। इनसे पता चलता है कि वहाँ पर उद्योग स्थल रहे होंगे।
पत्थर के औजारों का निर्माण:
पत्थर के औजारों को कैसे बनाया जाता होगा, इस बारे में इतिहासकारों ने कुछ अनुमान लगाए हैं। पाषाण औजारों को बनाने की दो विधियाँ हो सकती हैं, जो नीचे दी गई हैं:
पत्थर से पत्थर को टकराना: इस तरीके से औजार बनाने के लिए एक हाथ में एक पत्थर को लेकर उसपर किसी दूसरे पत्थर से वार किया जाता था। ऐसा तब तक किया जाता था जब तक सही आकार न मिल जाये।
दबाव शल्क तकनीक: इस विधि में क्रोड (जिस पत्थर से औजार बनाना हो) को किसी सख्त सतह पर रख दिया जाता था। फिर इसे किसी बड़े पत्थर से पीट पीटकर सही आकार दिया जाता था।
आग की खोज:
आग की खोज मानव जाति के लिये एक बहुत बड़ी क्रांति थी। इससे मानव जीवन अभूतपूर्व ढ़ंग से बदल गया। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जंगल में लगी आग के नतीजे देखकर लोगों ने आग का इस्तेमाल करना सीखा होगा। किसी ने गलती से मांस का टुकड़ा आग में गिरा दिया होगा। फिर उसे पकने के बाद जब चखा होगा तो उसे पके हुए भोजन का स्वाद पता चला होगा। फिर लोगों ने दो पत्थरों को आपस में रगड़ कर आग जलाने का तरीका सीखा होगा।
कुरनूल की गुफाओं में राख के अवशेष मिले हैं। इससे पता चलता है कि इन गुफाओं में रहने वाले लोग आग का इस्तेमाल करते थे। आग का इस्तेमाल कई कामों के लिये हो सकता है। आग से पेड़ों को जलाकर जंगल साफ किया जा सकता था। आग से खाना पकाया जा सकता है। आग के इस्तेमाल से जंगली जानवरों को दूर रखा जा सकता था।
शैल चित्रकला (रॉक पेंटिंग)
पाषाण युग के लोग अच्छे कलाकार भी थे। पाषाण युग की गुफाओं में कई रॉक पेंटिंग मिली हैं। भीमबेटका की गुफाओं में कई सुंदर तस्वीरे हैं। अधिकतर पेंटिंग में जानवरों और शिकार को दिखाया गया है।
इतिहासकारों का मानना है कि ऐसी तस्वीरों को किसी खास उत्सव के मौके पर बनाया जाता होगा। हो सकता है कि शिकार पर जाने से पहले लोग ऐसी पेंटिंग बनाते होंगे। यह भी हो सकता है कि लोगों को इतना खाली समय मिलने लगा होगा कि अपने आस पास की सुंदर प्रकृति को निहार सकें और उसके बारे में सोच सकें।
इन पेंटिंग से यह भी पता चलता है कि लोग समूहों में रहने लगे थे। समूह में रहने के कई फायदे होते हैं। एक बड़े समूह में रहने से शिकारियों से सुरक्षा मिलती है। एक समूह आसानी से किसी बड़े जानवर को मार सकता है, जिससे प्रचुर मात्रा में भोजन मिल सकता है। ऐसा माना जाता है कि अक्सर पुरुष ही शिकार पर जाते थे, जबकि महिलाएँ गुफा में रहकर बच्चों की देखभाल करती थीं। महिलाएँ कंद मूल और फल इकट्ठा करती होंगी।