व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री
आप क्या सीखेंगे
- रेशम मार्ग
- कुषाण
- बौद्ध धर्म का प्रसार
रेशम मार्ग
रेशम बड़ा ही महीन और चमकदार होता है। इसलिए रेशम को हमेशा से उत्कृष्ट माना जाता है। रेशम की खोज सबसे पहले चीन में आज से 7000 वर्ष पहले हुई। लेकिन रेशम बनाने की जानकारी को चीन के लोगों ने गुप्त रखा। लेकिन रेशम के कपड़ों को अमीर व्यापारियों और राजाओं के लिए उपहार के रूप में दूर दूर भेजा जाता था। व्यापारी भी दूर देशों में रेशम बेचने जाया करते थे, क्योंकि रेशम की ऊँची कीमत मिल जाती थी।
रेशम के व्यापारियों को पहाड़ों और दर्रों से होकर बहुत ही दुर्गम मार्ग को पार करना होता था। इसमें हमेशा लुटेरों द्वारा लुट जाने का खतरा रहता था। रेशम के व्यापार के प्राचीन मार्ग को रेशम मार्ग या सिल्क रूट कहते हैं।
इस नक्शे में प्राचीन रेशम मार्ग को दिखाया गया है। जमीन से जाने वाला मार्ग हिमालय और हिंदुकुश पर्वतमालाओं से होकर गुजरता था। समुद्री मार्ग अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरता था।
कुछ राजा रेशम मार्ग पर नियंत्रण करने की कोशिश करते थे, ताकि व्यापारियों की सुरक्षा हो सके। उससे व्यापार के फलने फूलने में मदद मिलती थी। अच्छे व्यापार से राजा को व्यापारियों से बेहतर कर और उपहार मिलने की उम्मीद बढ़ जाती थी।
कुषाण
केंद्रीय एशिया और उत्तर-पश्चिमी भारत पर कुषाण राजवंश का शासन करीब 2000 वर्ष पहले था। उस जमाने के अन्य राजाओं की तुलना में कुषाण राजाओं का रेशम मार्ग पर सबसे अच्छा नियंत्रण था। पेशावर और मथुरा उनकी सत्ता के दो अहम केंद्र थे। तक्षशिला भी इन्हीं के अधीन था। कुषाण शासन काल में रेशम मार्ग की एक शाखा केंद्रीय एशिया से लेकर सिंधु नदी के मुहाने तक जाता था। इन बंदरगाहों से रेशम को पश्चिम में रोम तक ले जाया जाता था। सोने सिक्के जारी करने वालों में कुषाणों का नाम अग्रणी राजाओं में आता है। रेशम मार्ग के व्यापारी इन्हीं सोने के सिक्कों को ले जाते थे।
बौद्ध धर्म का प्रसार
इस काल में व्यापार के साथ साथ बौद्ध धर्म का भी प्रसार हुआ। कुषाण राजाओं में सबसे प्रसिद्ध राजा का नाम था कनिष्क। उसने दुनिया के विभिन्न भागों में बौद्ध धर्म के प्रसार में काफी योगदान दिया।
कनिष्क के दरबार में एक विख्यात कवि था जिसका नाम था अश्वघोष। अश्वघोष ने बुद्धचरित की रचना की है जो बुद्ध की जीवनी है। उस जमाने में अश्वघोष के साथ साथ कई लेखकों ने संस्कृत में लिखना शुरु किया।
महायान
इस समय बौद्ध धर्म की एक नई धारा का विकास हुआ जिसका नाम है महायान। महायान के दो विशेष लक्षण नीचे दिये गये हैं।
- पहले बुद्ध को कुछ चिह्नों या प्रतीकों द्वारा दिखाया जाता था। लेकिन महायान में बुद्ध की मूर्तियाँ भी बनने लगीं थीं। इनमें से अधिकांश मूर्तियाँ मथुरा में बनी हैं, और कुछ तक्षशिला में।
- अब बोधिसत्व के प्रति आस्था में भी बदलाव आया। जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता था उसे बोधिसत्व कहा जाता था। पहले एक बोधिसत्व को संसार से अलग थलग रहकर अपना पूरा समय ध्यान में बिताना होता था। अब बोधिसत्व लोगों के बीच रहकर उपदेश दे सकता था। बोधिसत्व की पूजा लोकप्रिय हो गई। यह परिपाटी केंद्रीय एशिया, चीन और बाद में कोरिया और जापान में भी फैल गई।