6 इतिहास

व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री

आप क्या सीखेंगे

गुफा में विहार: इसी समय बौद्ध धर्म का प्रसार पश्चिमी और दक्षिण भारत में भी हो चुका था। पश्चिमी भारत की पहाड़ियों में , खासकर से पश्चिमी घाट में, कई गुफाएँ बनाई गईं। इन्हें भिक्खुओं के लिए बनाया गया। इन गुफाओं में विहार बनवाने के लिए कई राजाओं और रानियों ने दान दिये। कुछ विहारों का निर्माण अमीर व्यापारियों और किसानों के चंदे से भी हुआ। ये गुफाएँ अंदरूनी भागों और बंदरगाहों के बीच के रास्ते पर पड़ती थी। इसलिए व्यापारी भी यहाँ रुका करते थे।

इसी काल में बौद्ध धर्म का प्रसार भारत के दक्षिण-पूर्व में हुआ। अब बौद्ध धर्म श्रीलंका, म्यनमार, थाइलैंड तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के अन्य भागों तक फैल गया। इन भागों में बौद्ध धर्म का थेरवाद रूप अधिक प्रचलित हुआ।

तीर्थयात्री

जो व्यक्ति धार्मिक प्रयोजन से यात्रा करता है उसे तीर्थयात्री कहते हैं। व्यापारियों के साथ कई तीर्थयात्रियों ने भी दूर दूर की यात्रा की।

चीनी तीर्थयात्री

इस समय के चीनी तीर्थयात्रियों में तीन काफी मशहूर हुए, जिनके नाम हैं फा शिएन, श्वैन त्सांग और इत्सिंग। ये सभी बौद्ध तीर्थयात्री थे।

फा शिएन करीब 1600 वर्ष पहले भारत आया था, श्वैन त्सांग 1400 वर्ष पहले और इत्सिंग उसके 50 वर्ष बाद आया था। वे बुद्ध और उनसे जुड़े स्थानों देखने और समझने के मकसद से आये थे।

इन तीर्थयात्रियों से मिले विवरणों से उस जमाने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इनसे हमें मुश्किल रास्तों, यात्रा की तकलीफों, भारत का सामाजिक जीवन और अन्य कई बातों के बारे में पता चलता है।

उस समय नालंदा विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था जो आज के बिहार में पड़ता था। श्वैन त्सांग ने भी इस विश्वविद्यालय के बारे में लिखा है। उसने लिखा है कि इस विश्वविद्यालय में एक से एक विद्वान रहा करते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश की प्रक्रिया बहुत कठिन थी। इसमें सफलता की दर 20% से भी कम थी।

भक्ति परंपरा

भक्ति परंपरा की शुरुआत तब हुई जब से हिंदू देवी देवताओं को एक नये दृष्टिकोण से देखा जाने लगा। आज हम इन देवी देवताओं के जिन रूपों को देखते हैं उनका विकास इसी भक्ति परंपरा के कारण हुआ।

एक समय आ गया था जब धर्म पर पुरोहितों का शिकंजा कस गया था। समाज में बिना मतलब के आडंबरों और कुरीतियों का बोलबाला था। धर्म को इन बीमारियों से मुक्ति दिलाने के प्रयास में भक्ति परंपरा की शुरुआत हुई।

भक्ति का आशय है कि कोई भी व्यक्ति अपने मन मुताबिक देवी या देवता को चुन सकता है। वह पूजा करने के अपने ही तरीके इजाद करने के लिए स्वतंत्र है। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति भगवान की पूजा करने के लिए किसी भी मूर्ति, पशु, पेड़, गीत या कविता का चयन कर सकता है।

भक्ति का मतलब है आराधना का तरीका महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि शुद्ध भक्ति ही महत्वपूर्ण है। यदि कोई सच्चे मन से अपने भगवान की आराधना करता है तो उसे उसका आशीर्वाद जरूर मिलता है।

कई कलाकारों ने विभिन्न देवी देवताओं के चित्र और मूर्तियाँ बनाई। भक्ति भाव प्रकट करने के लिए कवियों ने गीत लिखे। आज हम हिंदू देवी देवताओं के जिन रूपों को आसानी से पहचानते हैं वे सब इसी परंपरा की देन हैं।

इस काल में कई महान कवियों का प्रादुर्भाव हुआ, जैसे कि मीरा, कबीर, सूरदास, आदि। अब लोगों को पूजा के लिए मंदिर जाना अनिवार्य नहीं था। लोग अपने घरों में ही छोटे-छोटे मंदिर बनाकर पूजा करने लगे। आज भी आपको कई हिंदुओं के घरों में छोटे मंदिर मिल जाएंगे।

हिंदू: यह नाम सिंधु (इंडस) नदी से आया है। अरब और ईरानी लोगों ने इस नाम का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जो सिंधु नदी के पूर्व की तरफ रहते थे। समय बीतने के साथ इस भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के विचारों, संस्कृति और धार्मिक प्रचलनों को हिंदू के नाम से जाना जाने लगा।