किताबें और कब्रें
आप क्या सीखेंगे:
- वैदिक युग के लोग
- इनामगांव के महापाषाण
मवेशी, घोड़े और रथ
ऋग्वेद में मवेशी, घोड़े और बच्चों (खासकर पुत्रों) के लिए कई प्रार्थानाएँ हैं। इससे पता चलता है कि उस जमाने के लोगों के लिए मवेशी और घोड़े कितने महत्वपूर्ण थे। इससे यह भी पता चलता है कि लोग बेटियों की तुलना में बेटों को अधिक महत्व देते थे। मवेशी का इस्तेमाल कृषि कार्यों और यातायात के लिए होता था। घोड़ों का इस्तेमाल रथ खींचने के लिए होता था। लोग लंबे सफर के लिए घुड़सवारी भी करते थे। घोड़ों और रथों का इस्तेमाल युद्ध में भी होता था। युद्ध अक्सर जमीन, मवेशी और पानी के लिए होते थे। जौ खराब परिस्थिति में आसानी से उगता है और इसकी फसल जल्दी पकती है। इसलिए जौ की खेती बहुतायत से होती थी।
युद्ध में जीते गये धन को समाज के हर वर्ग में बराबर बाँटा जाता था। उसमें से कुछ धन का इस्तेमाल यज्ञ करने के लिए होता था।
यज्ञ एक जटिल अनुष्ठान होता था। यज्ञ में आहुति दी जाती थी। घी और अनाज की आहुति दी जाती थी। जानवरों की बलि भी दी जाती थी।
लगभग हर पुरुष को युद्ध में भाग लेना पड़ता था। एक नियमित सेना रखने की परंपरा शुरु नहीं हुई थी। सेना में अलग-अलग पेशों से लोग आते थे। उन्हीं में से एक व्यक्ति को सेनापति के तौर पर चुना जाता था।
लोगों की विशेषता बताने वाले शब्द
ऋग्वेद में काम के आधार पर तीन तरह के लोगों का वर्णन है, जो नीचे दिया गया है:
पुरोहित: जो लोग अनुष्ठान कराते थे उन्हें पुरोहित या ब्राह्मण कहा जाता था। ब्राह्मणों का समाज में महत्वपूर्ण स्थान था।
राजा: शासक को राजा कहते थे। उस जमाने के राजा बाद के जमाने के राजाओं की तरह नहीं होते थे। उनकी न तो कोई राजधानी होती थी, ना ही कोई महल होता था और वे किसी प्रकार का टैक्स नहीं वसूलते थे। यह जरूरी नहीं था कि किसी राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा ही राजा बने।
जन: आम लोगों को जन या विश कहते थे। आज भी हिंदी भाषा में लोगों के लिए ‘जन’ शब्द का प्रयोग होता है। ‘विश’ शब्द से ही ‘वैश्य’ बना है। ऋग्वेद में कई जनों या ‘विश’ का उल्लेख है, जैसे कि पुरु जन, भरत जन और यदु जन।
आर्य: जिन लोगों ने प्रार्थनाओं की रचना की थी वे अपने आपको आर्य कहते थे। वे अपने विरोधियों को दास या दस्यु कहते थे। दास लोग अलग भाषा बोलते थे और यज्ञ नहीं करते थे। समय बीतने के साथ ‘दास’ या ‘दासी’ शब्द का इस्तेमाल गुलामों के लिए होने लगा। युद्ध में बंदी बनाए लोगों को अपनी बाकी जिंदगी दास के रूप में बितानी पड़ती थी।
आर्य लोग खानाबदोश थे जो मध्य एशिया में रहते थे। वे 1500 ई पू भारत आये थे। शुरु में वे पंजाब के आस पास बस गये। उस समय भारत में रहने वाले मूल निवासियों को द्रविड़ कहा जाता था। समय बीतने के साथ आर्य भारत के अन्य भागों में फैल गये, जैसे कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और फिर आगे पूरब की ओर। द्रविड़ लोगों को विंध्याचल के दक्षिण की ओर जाने को बाध्य होना पड़ा।