किताबें और कब्रें
महापाषाण: खामोष प्रहरी
महापाषाण पत्थर से बनी रचना होती है। इनका इस्तेमाल किसी कब्रगाह पर निशान लगाने के लिए किया जाता था। महापाषाण को या तो एक ही विशाल पत्थर से बनाया जाता था या फिर अनेक पत्थरों से। कुछ महापाषाण जमीन के ऊपर दिखाई देते थे, जबकि कुछ अन्य जमीन के नीचे। महापाषाण को शायद साइनपोस्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। इससे कब्रगाह को खोजने में आसानी होती थी। महापाषाण बनाने की परंपरा लगभग 3000 वर्ष पहले शुरु हुई थी। यह परंपरा दक्कन, दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और कश्मीर में प्रचलित थी।
मृत व्यक्ति को कुछ विशेष बरतनों के साथ दफनाया जाता था। इन बर्तनों को रेड-वेयर और ब्लैक-वेयर कहते थे। कुछ कब्रगाहों से लोहे के औजार और घोड़े के कंकाल भी मिले हैं। इससे पता चलता है कि उस जमाने में लोहे का इस्तेमाल होता था। इससे लोगों के लिए घोड़े के महत्व का पता भी चलता है। कुछ कब्रगाहों से सोने और पत्थरों के जेवर भी मिले हैं।
सामाजिक असमानताएँ: दक्षिण भारत में ब्रह्मगिरि नामक एक बड़ा ही महत्वपूर्ण महापाषाण पुरास्थल है। इस पुरास्थल की एक कब्र से एक कंकाल मिला है जिसके साथ 33 सोने के मनके, 2 पत्थर के मनके, 4 तांबे की चूड़ियाँ और एक शंख मिला है। वहीं दूसरे कंकालों के साथ कुछेक बरतन ही मिले हैं। इनसे बड़े ही रोचक तथ्य सामने आते हैं।
- लोगों में सामाजिक असमानताएँ थीं।
- मृत के साथ उसके कुछ सामानों को दफना दिया जाता था।
पारिवारिक कब्रगाह: कुछ कब्रगाहों से कई कंकाल मिले हैं। इतिहासकारों का अनुमान है कि ये पारिवारिक कब्रगाहें रही होंगी। ऐसी कब्रगाहों के ऊपर पत्थर से एक वृत्ताकार रचना बनाई जाती थी ताकि उस जगह को आसानी से ढ़ूँढ़ा जा सके।
इनामगांव: एक विशेष कब्रगाह
इनामगांव आज के महाराष्ट्र में पड़ता है। यह पुणे से 89 किमी पूरब में स्थित है। यह भीमा नदी की सहायक नदी घोड़ के निकट है। इनामगांव में लोग लगभग 3600 से 2700 वर्ष पहले रहते थे।
इस कब्रगाह में वयस्कों को ही दफन किया जाता था। मृत शरीर को सीधा लिटा दिया जाता था और उसका सिर उत्तर की ओर रखा जाता था।
कुछ लोगों को घरों में ही दफनाया जाता था। मृत के साथ बरतनों को भी दफनाया जाता था। इन बरतनों में शायद खाने पीने की चीजें रखी जाती थीं।
ऐसे ही एक पुरास्थल से एक चार पाये वाला जार मिला है। उस जार के भीतर एक कंकाल था। इस जार को एक पांच कमरे वाले मकान के आंगन में रखा गया था। यह उस पुरास्थल के कुछ सबसे बड़े मकानों में से एक था। उस घर में एक भंडार घर भी मिला है। मृतक के पैर मोड़कर लिटाया गया था। इतिहासकारों का अनुमान है कि वह अवश्य ही कोई महत्वपूर्ण और धनी व्यक्ति रहा होगा। हो सकता है कि वह एक समृद्ध किसान हो या गांव का मुखिया हो।
Fig ref: NCERT Book
इनामगांव के लोगों के व्यवसाय:
इनामगांव के पुरास्थल से गेहूँ, जौ, दलहन, बाजरा और तिल के अवशेष मिले हैं। यहाँ से कई जानवरों के अवशेष भी मिले हैं, जैसे कि गाय, भैंस, बकरी, भेड़, कुत्ता, घोड़ा, गदहा, सूअर, सांभर, चित्तीदार हिरण, काला हिरण, बारहसिंघा, खरगोश, नेवला, आदि। यहाँ से चिड़िया, मगरमच्छ, कछुआ, केकड़ा और मछली के अवशेष भी मिले हैं। कुछ जानवरों की हड्डियों पर काटने के निशान भी हैं। इससे पता चलता है कि इन जानवरों का इस्तेमाल भोजन के रूप में होता था। इतिहासकारों को कई फलों के अवशेष भी मिले हैं, जैसे कि बेर, आंवला, जामुन, खजूर और कई तरह की रसभरी।
ऊपर दी गई जानकारी से पता चलता है कि इनामगांव के लोगों का मुख्य पेशा था कृषि। जानवरों को मांस और दूध के लिए पाला जाता था। मांस के लिए जंगली जानवरों का शिकार भी किया जाता था।
इतिहासकर कंकाल का अध्ययन कैसे करते हैं?
किसी वयस्क और बच्चे के कंकाल में अंतर आसानी से देखा जा सकता है। लेकिन पुरुष और महिला के कंकाल में अंतर करना कठिन होता है। महिलाओं की कूल्हे की हड्डी अधिक चौड़ी होती है, ताकि शिशु के जन्म में आसानी हो। कूल्हे की हड्डी के आकार के आधार पर यह पता किया जाता है कि वह किसी महिला का कंकाल है या पुरुष का।