7 विज्ञान

रेशों से वस्त्र तक

रेशम

ऐसा माना जाता है कि रेशम की खोज सबसे पहले चीन में हुई थी। भारत में भी सैंकड़ों वर्षों से रेशम का कारोबार हो रहा है। आज भारत और चीन रेशम के मुख्य उत्पादक हैं। रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीटों को पालने के व्यवसाय को रेशम कीट पालन या सेरीकल्चर कहते हैं।

रेशम कीट का जीवन चक्र

larva and pupa of Silk Moth

रेशम कीट → अंडे → लार्वा → प्यूपा

रेशम कीट एक बार में सैंकड़ों अंडे देते हैं। इन अंडों को कागज या कपड़े पर इकट्ठा किया जाता है। रेशम कीट पालक इन अंडों को अनुकूल जगह पर रखते हैं ताकि उन्हें उचित तापमान और आर्द्रता मिल सके। समय आने पर इन अंडों से लार्वा निकलते हैं, जिन्हें कैटरपिलर भी कहते हैं।

लार्वा या इल्लियों को शहतूत के पत्तों पर रखा जाता है। इल्लियाँ शहतूत के पत्ते खाती हैं। ये इल्लियाँ बहुत पेटू होती हैं और दिन रात खाती ही रहती हैं। कुछ ही दिनों में इनका आकार बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्यूपा

पच्चीस से तीस दिनों के बाद इल्लियाँ पत्ती खाना बंद कर देती हैं। उसके बाद ये अपने शरीर में स्थित एक ग्रंथि से एक द्रव निकालती हैं जिससे ये अपने चारों और एक कोकून बना लेती हैं। ऐसा करने के लिए लार्वा अपने सिर को 8 के आकार में बार बार घुमाता रहता है। कोकून को प्यूपा भी कहते हैं।

वयस्क कीट में विकसित होने से पहले ही कोकून से रेशम निकालना होता है। इसके लिए कोकून को धूप में सुखाया जाता है या पानी में उबाला जाता है या भाप के ऊपर रखा जाता है। ऐसा करने से रेशम के रेशे अलग हो जाते हैं।

रीलिंग

रेशम के रेशों को एक विशेष मशीन से धागे में बदला जाता है। इस प्रक्रिया को रेशम की रीलिंग कहते हैं।

रेशम की विभिन्न किस्में: भारत में रेशम की कई किस्में पाई जाती हैं। इनके नाम हैं: शहतूत रेशम, टसर रेशम, एरी रेशम, मूगा रेशम, आदि। शहतूत रेशम सबसे अधिक प्रचलित है। अलग-अलग किस्मों की रेशम का गठन अलग अलग होता है। कोई रेशम अधिक मुलायम होता है, तो किसी में चमक अच्छी होती है।