जल एक बहुमूल्य संसाधन
जल की कमी के कारण
वाटर टेबल का नीचे जाना: बढ़ती आबादी के कारण पीने के पानी की माँग बहुत बढ़ गई है। इसके अलावा हमारे अन्य कामों के लिए भी पानी की जरूरत पड़ती है, जैसे सिंचाई, मनोरंजन, और उत्पादन के लिए। पानी की सप्लाई या तो पहले जैसी है या कई स्थानों पर कम हो चुकी है। लेकिन माँग बहुत बढ़ जाने के कारण माँग और आपूर्ति के बीच का संतुलन बिगड़ गया है। इसी बिगड़े हुए संतुलन के कारण कई स्थानों पर वाटर टेबल नीचे चला गया है, जिससे पानी की किल्लत होने लगी है।
बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए अधिक अनाज उगाने की जरूरत पड़ती है। इसलिए खेती और भी सघन होने लगी है। इसका मतलब है सिंचाई के लिए और भी अधिक पानी इस्तेमाल होने लगा है।
बढ़ती आबादी के लिए नए नए पक्के मकान बन रहे हैं। साथ में सड़कों का जाल भी बढ़ रहा है। इन नये निर्माणों के कारण कई स्थानों पर जमीन की सतह पर कंक्रीट की ऐसी परत बन रही है जिससे होकर पानी नहीं रिस सकता है। इससे जलभर के प्राकृतिक रिचार्ज में बाधा आ रही है।
बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों की सफाई हो रही है। हम जानते हैं कि पेड़ों की जड़ें जमीन के अंदर गहराई तक जाती हैं और शैलों को इतना तोड़ती हैं कि उनसे होकर पानी आसानी से रिस जाता है। पेड़ों की कमी होने से इस काम में भी बाधा आई है।
असमान वर्षण: भारत एक विशाल देश है। हमारे देश के कुछ भागों में अतिवृष्टि होती है तो अन्य भागों में अल्पवृष्टि की समस्या रहती है। इसलिए देश के कुछ भागों में भीषण बाढ़ आती है तो कुछ भागों में सूखा पड़ जाता है। इसलिए देश के कई हिस्सों में जल की किल्लत हमेशा बनी रहती है।
जल की कमी का निदान
वर्षा जल संग्रहण
भविष्य में इस्तेमाल के लिए वर्षा जल को जमा करने की क्रिया को वर्षा जल संग्रहण कहते हैं। भारत में वर्षा जल संग्रहण के लिए जरूरी निर्माण का एक लंबा इतिहास रहा है, खासकर अल्पवृष्टि वाले क्षेत्रों में। भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में, खासकर राजस्थान में टंका और बावड़ी का इस्तेमाल वर्षा जल संग्रहण के लिए होता रहा है। टंका एक भूमिगत टंकी होती है जिसमें वर्षा का पानी जमा किया जाता है। बावड़ी एक खुली टंकी होती है। बावड़ी में सीढ़ियाँ बनी होती हैं ताकि लोग आसानी से पानी लेने के लिए नीचे उतर सकें।
आधुनिक मकानों में वर्षा जल संग्रहण किया जा सकता है। छत से बहने वाला वर्षा का पानी पाइपों द्वारा भूमिगत टंकियों में जमा किया जा सकता है। इस टंकी में रेत और कंकड़ डाले जाते हैं ताकि पानी में से कचरा छन जाए। उसके बाद इस पानी को इस्तेमाल किया जा सकता है या फिर इससे भौमजल को रिचार्ज किया जा सकता है।
बूँद सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन)
इस विधि से कम से कम पानी के इस्तेमाल से अधिक से अधिक पादपों की सिंचाई हो सकती है। इसके लिए पौधों की कतारों के साथ पाइप बिछा दिए जाते हैं। पाइप में थोड़ी थोड़ी दूरी पर छोटे छेद होते हैं जिनसे पानी बूँद बूँद कर रिसता रहता है। इससे पौधों को जरूरी मात्रा में पानी मिल जाता है लेकिन पानी की बरबादी को रोका जाता है।