भारत में खेती
1757 में हुए प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने धीरे धीरे भारत में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरु किया। उपनिवेशी शासक भू-राजस्व, उसकी दर और कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए एक प्रभावी सिस्टम बनाना चाहते थे। लगान की बढ़ती दर और घटते हुए जंगलों ने भारत के किसानों और घुमंतू लोगों के लिए समस्या शुरु कर दी।
उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत गन्ना, कपास, गेहूँ और कई अन्य फसलों का महत्वपूर्ण उत्पादक और निर्यातक बन चुका था। अब ज्यादातर किसान यूरोप की शहरी आबादी के लिए गेहूँ और लैंकाशायर और मैनचेस्टर की मिलों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करने लगे थे।
चीन के साथ व्यापार
इंगलिश ईस्ट इंडिया कंपनी चीन से चाय और रेशम खरीदती थी। 1785 में चीन से 15 मिलियन पाउंड चाय का आयात इंग्लैंड पहुँचा था। यह आँकड़ा 1830 में 30 मिलियन पाउंड हो चुका था। चाय का व्यापार इतने अधिक मूल्य का था कि उससे ईस्ट इंडिया कंपनी के मुनाफे पर बुरा असर पड़ने लगा।
चीन का मंचू शासक विदेशी व्यापारियों को शक की निगाह से देखता था क्योंकि उन्हें डर था कि विदेशी व्यापारी स्थानीय राजनीति में हस्तक्षेप करने लगेंगे। इसलिए चीन के शासक विदेशी माल को अपने यहाँ नहीं आने देते थे। इसका मतलब था कि इंग्लैंड के खजाने से भारी राशि चीन को भेजनी पड़ती थी क्योंकि कीमत चुकता करने के लिए चाँदी के सिक्के (बुलियन) का इस्तेमाल होता था। इंगलिश व्यापारी कोई ऐसा सामान तलाश रहे थे जिसे चीन में आसानी से बेचा जा सके और फिर चाय का व्यापार मुनाफे वाला हो जाए।
पुर्तगालियों ने सोलहवीं सदी की शुरुआत में चीन को अफीम से रूबरू कराया था। चीनी शासकों को अफीम की लत के नुकसान के बारे में पता था। इसलिए चीन के राजा ने औषधीय इस्तेमाल को छोड़कर अफीम के व्यापार और उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन पश्चिम के व्यापारियों ने अठारहवीं सदी के मध्य में अफीम का गैर कानूनी व्यापार शुरु कर दिया।
दक्षिण-पूर्वी चीन के बंदरगाहों पर अफीम उतरता था और फिर स्थानीय एजेंटों द्वारा अंदर के इलाकों में पहुँचता था। 1820 के दशक तक चीन में अफीम के लगभग 10,000 क्रेट तस्करी के रास्ते पहुँचने लगे थे। अगले पंद्रह वर्षों में यह बढ़कर 35,000 क्रेट हो चुका था। इससे चीन में अफीम की बढ़ती लत का पता चलता है।
अफीम कहाँ से आती थी?
बंगाल पर फतह के बाद अंग्रेजों ने अपने अधीन इलाकों में अफीम उगाना शुरु किया। चीन में अफीम की माँग बढ़ने के साथ बंगाल के बंदरगाहों से होने वाला निर्यात बढ़ गया। 1767 से पहले 500 पेटी अफीम ही चीन जाती थी। लेकिन चार वर्षों के भीतर यह मात्रा तीन गुनी हो गई। लगभग 100 वर्षों के बाद, यानि 1879 में 50,000 पेटियाँ हर साल निर्यात होने लगीं।
भारत के किसान अपने सबसे अच्छे खेतों को अफीम के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे क्यों इससे अनाज और दाल का उत्पादन घटने का डर था। कई काश्तकारों के पास अपनी जमीन नहीं थी। अफीम उगाने के लिए वे जमींदारों से पट्टे पर जमीन लेते थे और उसका किराया चुकाते थे। अफीम की खेती मुश्किल थी और इसमें बहुत समय लगता था। इसलिए अन्य फसलों की देखभाल के लिए किसानों को कम ही समय मिल पाता था। सरकार से अफीम की बहुत कम कीमत मिलने के कारण यह काम फायदेमंद नहीं था।
किसानों पर दबाव
अंग्रेजों ने किसानों को अफीम की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एडवांस का सिस्टम शुरु किया। 1780 के दशक में गाँव का मुखिया गरीब किसानों को अफीम की खेती के लिए कैश एडवांस देने लगा। मुखिया को इसके लिए सरकारी एजेंटों से पैसे मिलते थे। एक बार जो किसान एडवांस ले लेता था उसे अन्य फसल उगाने की मनाही हो जाती थी। उसपर से समस्या ये थी कि उसे अपने उत्पाद को कम कीमत पर ही बेचना होता था। सरकार कभी भी खरीद मूल्य बढ़ाने के पक्ष में नहीं थी, क्योंकि वह सस्ता खरीदकर कलकत्ता के एजेंटों को महँगा बेचना चाहती थी। असल में अंग्रेज अफीम व्यापार से भारी मुनाफा कमाना चाहते थे।
यह सिस्टम किसानों के हितों से कोसों दूर था इसलिए कई किसानों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में विद्रोह करना शुरु किया। अब किसान एडवांस लेने से मना भी करने लगे थे। कई किसान अब उन पैकारों को फसल बेचने लगे जो अधिक दाम देते थे। गाँवों में घूम घूम कर सामान खरीदने वाले व्यापारियों को पैकार कहते हैं।
1773 तक बंगाल के अफीम व्यापार पर अंग्रेजी सरकार की मोनोपॉली बन चुकी थी। किसी अन्य को इस व्यापार में आने की अनुमति नहीं थी। 1820 के दशक में अंग्रेजों ने देखा कि उनके इलाके में अफीम का उत्पादन तेजी से घट चुका था। ब्रिटिश इलाकों से बाहर अफीम का उत्पादन बढ़ रहा था। मध्य भारत और राजस्थान (जो अंग्रेजी शासन से बाहर थे) में अफीम का उत्पादन होने लगा था। इन इलाकों के व्यापारी किसानों को अच्छी कीमत देते थे। वे व्यापारी हथियारों से लैस होकर अफीम को लाने ले जाने का काम करते थे। सरकार ने उन राजाओं के इलाकों में अपने एजेंट से कहा कि सारी अफीम जब्त कर लें और फसल को बरबाद कर दें।