संयुक्त राज्य अमेरिका में खेती
अठारहवीं सदी के अंत में जब इंग्लैंड में बाड़ेबंदी हो रही थी तब तक अमेरिका में खेती उतनी विकसित नहीं हुई थी कि बड़े पैमाने पर हो। 800 मिलियन एकड़ से अधिक भूमि जंगलों से ढ़की थी और 600 मिलियन एकड़ पर घास के मैदान थे।
रोटी की टोकड़ी और रेतीला बंजर
1780 के दशक तक श्वेत आबादी अमेरिका के पूर्वी तट पर एक संकरी पट्टी तक ही सीमित थी। अधिकतर भागों में अमेरिका के मूल निवासी ही रहते थे। उनमें से अधिकतर घुमंतू जीवन जीते थे, जबकि कुछ स्थाई निवास बनाकर रहते थे। इन लोगों के लिए जीवनयापन का मुख्य जरिया शिकार, भोजन बीनना और मछली पकड़ना था। कुछ लोग मक्का, बीन, तंबाकू और कद्दू की खेती करते थे।
अठारहवीं सदी के आखिरी वर्षों में श्वेत अमेरिकी लोगों ने पश्चिम की ओर चलना शुरु किया। अपनी बसावट बढ़ाने के क्रम में उन्होंने स्थानीय आदिवासियों को विस्थापित कर दिया और पूरे भूदृश्य को बदलकर कृषि क्षेत्र बना दिया। अंत में श्वेत लोग अमेरिका के पश्चिमी तट तक छा गये थे। बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों तक अमेरिका की शक्ल ही बदल चुकी थी। अब कृषि उत्पादों के मामले में पूरी दुनिया के बाजार पर अमेरिका का दबदबा था।
पश्चिम की ओर प्रसार और गेहूँ की खेती
1775 से 1783 तक चले अमेरिकी आजादी की लड़ाई के बाद और संयुक्त राज्य अमेरिका बनने के बाद, श्वेत अमेरिकी पश्चिम की ओर फैलने लगे। 1800 तक 700,000 श्वेत अपेलेशियन पठार के क्षेत्र में बस चुके थे।
अमेरिका में असीम संभावनाएँ दिखती थीं। विशाल बीहड़ को खेती करने लायक बनाया जा सकता था। वहाँ लकड़ी, जानवरों की खाल और खनिजों का भंडार था। लेकिन उन संभावनाओं को सच करने के लिए वहाँ से अमेरिकन इंडियन को खदेड़ना जरूरी था।
अमेरिकी सरकार ने 1800 में औपचारिक नीतियाँ बनाई ताकि अमेरिकन इंडियन को पश्चिम की ओर विस्थापित किया जा सके। इंडियन के खिलाफ कई लड़ाईयाँ लड़ी गईं जिनमें बड़े पैमाने पर उनका नरसंहार किया गया। इंडियन ने थोड़ा बहुत प्रतिशोध किया लेकिन अंत में उनसे जबरद्स्ती समझौतों पर दस्तखत करा लिए गए।
श्वेत प्रवासियों की लहर पर लहर आती गई। अठारहवीं सदी के पहले दशक तक वे अपेलेशियन पठार तक पहुँच चुके थे। 1820 से 1850 के दशकों में वे मिसीसिपी की घाटी तक पहुँच चुके थे। वे खेती के लिए जमीन साफ करते थे, बड़े क्षेत्र में बाड़े लगाते थे और फिर मक्का और गेहूँ बोना शुरु कर देते थे।
जब एक जगह की मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती थी तो लोग नई जमीन की तलाश में पश्चिम की ओर आगे बढ़ जाते थे। 1860 के दशक के बाद श्वेत प्रवासी मिसीसिपी के पार के विशाल मैदानों तक बस गये। आने वाले दशकों में यह क्षेत्र अमेरिका का मुख्य गेहूँ उत्पादक क्षेत्र बन गया।
गेहूँ उत्पादक किसान
उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों के बाद अमेरिका की शहरी आबादी बढ़ने लगी और निर्यात का बाजार बड़ा होता गया। माँग बढ़ने के साथ कीमतें भी बढ़ीं। अब किसान और भी अधिक गेहूँ उगाने लगे। रेलवे के विस्तार के बाद गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों से निर्यात के लिए पूर्वी तटों पर गेहूँ की ढ़ुलाई आसान हो गई।
बीसवीं सदी की शुरुआत में माँग और बढ़ गई थी। प्रथम विश्व युद्ध के समय दुनिया का बाजार तेजी से बढ़ने लगा था। युद्ध के दौरान रूस से सप्लाई आनी बंद हो चुकी थी और अब पूरे यूरोप को भोजन मुहैया कराने का काम अमेरिका का था।
1910 में अमेरिका में लगभग 45 मिलियन एकड़ भूमि पर गेहूँ की खेती होती थी। 1919 तक यह बढ़कर 74 मिलियन एकड़ हो चुका था। कई बड़े फार्म के पास तो 2,000 से 3,000 एकड़ तक जमीन होती थी।
नई तकनीक का आगमन
जब किसान मध्य-पश्चिम के घास के मैदानों में पहुँचे तो साधारण हल बेकार साबित हो रहे थे। उन मैदानों में घास की मोटी परत थी जिनकी जड़ें बहुत मजबूत थीं। सख्त जमीन को तोड़ने के लिए किसानों ने नये तरीके का हल इजाद किया। कुछ नये हल 12 फीट लंबे होते थे। उनका अगला सिरा पहिये पर टिका होता था और उन्हें छ: घोड़ों या बैलों से खींचा जाता था।
बीसवीं सदी की शुरुआत में जमीन जोतने के लिए ट्रैक्टर और डिस्क वाले हल आ चुके थे। ट्रैक्टर की सहायता से विशाल जमीनों को साफ करना आसान हो गया। सायरस मैक कॉर्मिक ने 1831 में पहला मेकैनिकल रीपर का आविष्कार किया। इस मशीन से एक दिन में इतनी फसल कट जाती थी जितना 16 आदमी हाथ से काट पाते थे। बीसवीं सदी की शुरुआत तक अधिकतर किसान कम्बाइन हार्वेस्टर का इस्तेमाल करने लगे। इस मशीन से दो सप्ताह में 500 एकड़ में लगी फसल को काटा जा सकता था।
अब पावर-चालित मशीनों से चार आदमी एक सीजन में 2,000 से 4,000 एकड़ खेत में जुताई, बुआई और कटाई कर लेते थे। विशाल मैदानों के किसानों के लिए ये मशीनें वरदान साबित हो रही थीं।
गरीबों की स्थिति
कई गरीब किसानों ने भी इन मशीनों को खरीदा, कर्ज लेकर ही सही। लेकिन उनमें से अधिकतर को कर्ज चुकता करने में परेशानी होने लगी। कई लोग अपने खेत छोड़कर भाग गये और काम की तलाश में कहीं और चले गये। मशीनें आने के कारण मजदूरों की जरूरत कम हो गई और नौकरी मिलना मुश्किल हो गया। 1920 के दशक के मध्य तक पुराने दौर के अच्छे दिन समाप्त हो चुके थे।
उसके बाद अनाज नहीं बिक रहे थे और भंडार ठसाठस भरे हुए थे। मक्के और गेहूँ के एक बड़े हिस्से को जानवर के चारे के रूप में इस्तेमाल करना पड़ा। गेहूँ की कीमतें गिर गईं और निर्यात का बाजार तबाह हो गया। इसके परिणामस्वरूप 1930 के दशक की महामंदी की शुरुआत हो गई। महामंदी ने हर जगह के किसानों को तबाह कर दिया।
रेत का कटोरा
जब अमेरिका में गेहूँ की खेती का विस्तार हो रहा था, तब किसानों ने जमीन साफ करने के चक्कर में हर तरह की वनस्पति को उखाड़ फेंका। इससे अमेरिका का एक बड़ा भूभाग रेत के कटोरे में बदल गया। 1930 के दशक के शुरु के कई वर्षों में लगातार सूखा पड़ा। पूरे अमेरिका में घातक गति से हवाएँ चलती थीं। गेहूँ के खेतों पर प्राकृतिक वनस्पति के अभाव में साधारण सी धूल की आँधी भी काले तूफान में बदल जाती थी। काले गुबार 7,000 से 8,000 फीट ऊँचे होते थे। ऐसा लगता था जैसे गंदे कीचड़ की विशाल लहरें उठ रही हों। काला तूफान अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर देता था, जैसे कि गेहूँ के खेत, मकान, मवेशी, आदि। हजारों मवेशी दम घुटने से मारे गये। कीचड़ और धूल समा जाने के कारण खेती की मशीनें जाम पड़ गईं और खराब हो गईं। 1930 के दशक में काले तूफान ने गेहूँ के खेतों को कई बार बरबाद किया। उसके बाद किसानों को पर्यावरण संरक्षण का महत्व मालूम हुआ।