लोकतांत्रिक अधिकार
लोकतंत्र में सरकार के पास जो भी शक्ति होती है वह जनता द्वारा दी जाती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि सरकार की शक्तियों की कुछ सीमाएँ भी हों। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सरकार अपनी लक्ष्मण रेखा ना लाँघ ले नागरिकों को कुछ अधिकार दिये जाते हैं।
लोकतंत्र में सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती है। इन अधिकारों के कारण हर नागरिक को एक इज्जतदार जिंदगी जीने का मौका मिलता है ताकि वह भी सुखी रहे और बाकी के नागरिक को भी कोई तकलीफ न पहुँचे। इस लेसन में आप भारत के संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकारों के बारे में पढ़ेंगे। साथ में आप यह भी पढ़ेंगे कि इन मौलिक अधिकारों के साथ कौन सी शर्तें जुड़ी हुई हैं।
अधिकार: लोगों द्वारा सरकार से किये गये दावे जिन्हें समाज और कानून की सहमति प्राप्त होती है उन्हें अधिकार कहते हैं। इसका मतलब है कि किसी व्यक्ति का बेहिसाब दावा उसका अधिकार नहीं हो सकता। अधिकारों का अर्थ एक समाज से दूसरे समाज में और एक काल से दूसरे काल में अलग हो जाता है।
लोकतंत्र में अधिकारों की जरूरत
लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए अधिकार जरूरी होते हैं। हर नागरिक को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार होता है। हर नागरिक को लोकतांत्रिक सरकार का हिस्सा बनने का अधिकार भी होता है।
अधिकार बहुसंख्यकों से अल्पसंख्यकों की रक्षा भी करते हैं। यदि कोई नागरिक किसी दूसरे नागरिक के अधिकारों के हनन की कोशिश करता है तो स्थिति बिगड़ सकती है।
भारतीय संविधान में अधिकार
मौलिक अधिकार
कुछ अधिकार हमारे जीवन के लिए मौलिक होते हैं इसलिए उन्हें संविधान में विशेष दर्जा दिया गया है। ऐसे अधिकारों को मौलिक अधिकार कहते हैं। भारत के संविधान द्वारा निम्नलिखित मौलिक अधिकार दिये गये हैं।
समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, संवैधानिक उपचार का अधिकार
समानता का अधिकार
सरकार किसी भी नागरिक को कानून की नजर में समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है। भारत के कानून की नजर में हर भारतीय नागरिक (प्रधानमंत्री से लेकर एक गरीब खेतिहर मजदूर तक) एक समान है। यहाँ का कानून किसी भी दो व्यक्तियों के बीच सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेद नहीं करता है।
हर नागरिक को सार्वजनिक स्थानों और सुविधाओं के इस्तेमाल का समान अधिकार है। सार्वजनिक स्थलों और सुविधाओं के कुछ उदाहरण हैं, पूजा के स्थल, स्नान-घाट, सड़क, सार्वजनिक शौचालय, सार्वजनिक कुँआ, आदि।
हर नागरिक को सरकारी नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने का समान अधिकार है। लेकिन समाज के कुछ वर्ग के लोगों को इसके लिए विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं, यानि इन नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाएँ, और विकलांगों को आरक्षण दिया जाता है। कुछ लोगों को लगता होगा कि आरक्षण तो समानता के अधिकार से अलग है। लेकिन संविधान निर्माताओं का मानना था कि जिन लोगों ने हजारों वर्षों से दबाये जाने का अभिशाप झेला है उन्हें समाज में आगे बढ़ाने के लिए विशेष सुविधा की जरूरत थी। इसलिए ऐसे लोगों को आरक्षण की सुविधा दी जाती है ताकि वे अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधार सकें।
छुआछूत के किसी भी रूप पर प्रतिबंध है और यह एक दंडनीय अपराध है। छुआछूत एक अभिशाप की तरह है। आज भी बहुत स्थानों पर सवर्ण लोग दलितों की छाया से भी दूर रहते हैं। आज भी कई गाँवों में दलितों के साथ बहुत भेदभाव होता है। पुराने जमाने में स्थिति अधिक खराब थी।
स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता के अधिकार का मतलब है कि हम बिना किसी की दखलंदाजी के, खासकर सरकार की दखलंदाजी के, जो करना चाहें कर सकते हैं। स्वतंत्रता के अधिकार के तहत निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं।
- अभिव्यक्ति की आजादी: अभिव्यक्ति की आजादी लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। किसी भी मुद्दे पर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है। हर व्यक्ति को विभिन्न तरीकों से अपना मत रखने की आजादी होनी चाहिए। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी कुछ शर्तों के साथ मिलती है। अपना मत व्यक्त करते समय आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते जिससे जनता में आक्रोश और हिंसा फैले या किसी समुदाय की भावना आहत हो। आप किसी को देश के खिलाफ विरोध करने के लिए नहीं उकसा सकते हैं। आप बिना किसी आधार के किसी को बदनाम नहीं कर सकते हैं।
- शांतिपूर्ण ढ़ंग से जमा होने की आजादी: कई ऐसे मुद्दे होते हैं जब किसी व्यक्ति को या व्यक्तियों के समूह को जन सभा करने की जरूरत पड़ती है। कोई भी व्यक्ति ऐसी जनसभा कर सकता है लेकिन उसे यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि ऐसी सभा शांतिपूर्ण हो और हिंसा न भड़के। किसी भी जनसभा या जुलूस से सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए। रैली या जनसभा में कोई भी हथियार लेकर नहीं जा सकता है।
- संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता: मजदूर और पेशेवर लोग अक्सर संगठन और संघ बनाते हैं। मजदूरों की बात रखने के लिए देश में कई ट्रेड यूनियन हैं। अपने हितों की बात करने के लिए पेशेवर लोग भी यूनियन बनाते हैं, जैसे कि डॉक्टर, व्यवसायी, वकील, आदि।
- देश में कहीं भी आने जाने और रहने बसने की स्वतंत्रता: हर नागरिक को देश के किसी भी भाग में आने जाने की आजादी है। कोई भी व्यक्ति देश के किसी भी हिस्से में रह बस सकता है। इस स्वतंत्रता के कारण लोगों को आजीविका की तलाश में दूसरे स्थानों पर पलायन करने की सुविधा मिलती है। गाँव से कई गरीब आजीविका की तलाश में और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से शहरों की ओर पलायन करते हैं। लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में भारत के दूसरे भाग के लोग स्थायी निवास नहीं बना सकते हैं। आपातकाल में (जैसे दुश्मन देश से आक्रमण या आक्रमण की संभावना की स्थिति में) इस आजादी पर अंकुश लगाये जा सकते हैं।
- कोई भी काम करने, धंधा चुनने या पेशा अपनाने की आजादी: कोई भी नागरिक अपनी पसंद का कोई भी पेशा चुन सकता है। इस आजादी से यह सुनिश्चित होता है कि वह व्यक्ति अपनी प्रतिभा का पूरा पूरा इस्तेमाल कर पाये।
कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा संविधान ने जीने का अधिकार भी दिया है। इसका मतलब है कि जब तक किसी अदालत से मौत की सजा न मिले, किसी के जीवन को खत्म नहीं किया जा सकता है। इसका यह भी मतलब है कि बिना उचित कानूनी अनुमति के पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है। यदि किसी को हिरासत में लिया जाता है या गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस को इन बातों का पालन करना होता है:
- पुलिस उस व्यक्ति को हिरासत के कारणों के बारे में सूचित करेगी।
- 24 घंटे के भीतर पुलिस उस व्यक्ति को किसी मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करेगी।
- हिरासत में लिए व्यक्ति के पास वकील से संपर्क करने और अपने लिए वकील ठीक करने का अधिकार होता है।
शोषण के खिलाफ अधिकार
यह अधिकार तीन बिंदुओं पर केंद्रित होता है जो नीचे दिए गए हैं।
- मानव तस्करी: मनुष्यों का गुलाम के तौर पर या फिर अनैतिक कार्यों के लिए तस्करी नहीं की जा सकती है। यह अधिकार मुख्य रूप से महिलाओं को देह व्यापार में धकेलने की रोकथाम करने के लिए बनाया गया है।
- बंधुआ मजदूर: संविधान ने बेगार या बंधुआ मजदूरी पर पाबंदी लगा दी है। यदि किसी व्यक्ति को बिना पगार के या बहुत कम पगार पर काम करने के लिए बाध्य किया जाता है तो ऐसे काम को बेगार कहते हैं। यदि बेगार लंबे समय तक चले तो उसमें काम करने वाले को बंधुआ मजदूर कहते हैं।
- बाल श्रमिक: पूरे देश में बाल श्रम पर प्रतिबंध है। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को खतरनाक कामों में नहीं लगा सकते हैं, जैसे कारखाने में, रेलवे स्टेशन पर, ढ़ाबों पर, आदि। सरकार के अथक प्रयासों के कारण आज खतरनाक जगहों पर (बीड़ी निर्माण, पटाखा फैक्ट्री, चूड़ी फैक्ट्री, आदि) बाल श्रमिक बहुत कम नजर आते हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी दिया है। इस अधिकार के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अपनी पसंद के धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र होता है। नागरिकों के धार्मिक मामले में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसपर आचरण करने और उसका प्रचार प्रसार करने की आजादी है। लेकिन कोई भी आदमी किसी भी तरीके से दूसरे आदमी को धर्मपरिवर्तन के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। कोई अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन के लिए स्वतंत्र है। धार्मिक स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं है कि धर्म के नाम पर आप कुछ भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी किसी विधवा को सर मुंडवाने के लिए या सफेद साड़ी पहनने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। धर्म के नाम पर कोई नरबलि या पशुबलि नहीं दे सकता है। सरकारी या सरकार द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान किसी धर्म का प्रचार नहीं कर सकते लेकिन निजी संस्थान ऐसा करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
हर अल्पसंख्यक समूह को अपनी अनूठी संस्कृति को बचाये रखने और उसे बढ़ावा देने का अधिकार है। अल्पसंख्यक का मतलब केवल धार्मिक अल्पसंख्यक से नहीं होता है बल्कि भाषाई या सांस्कृतिक अल्पसंख्यक भी हो सकते हैं। जैसे तेलुगू भाषी लोग आंध्र प्रदेश में बहुसंख्यक हैं लेकिन कर्णाटक में अल्पसंख्यक हैं। सिख धर्म के अनुयायी पंजाब में बहुसंख्यक हैं लेकिन दिल्ली और हरियाणा में अल्पसंख्यक हैं। यदि कोई अल्पसंख्यक समूह अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करना चाहता है तो उसे इसकी स्वतंत्रता मिली हुई है। ऐसा उस समूह की अनूठी भाषा और संस्कृति के संरक्षण करने के लिए जरूरी हो सकता है। सरकारी शिक्षण संस्थान धर्म या भाषा के आधार पर किसी को प्रवेश देने से मना नहीं कर सकते हैं।
संवैधानिक उपचार का अधिकार
जब किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो पीड़ित व्यक्ति को उसके संवैधानिक उपचार का अधिकार मिला हुआ है। अपनी शिकायत की सुनवाई के लिए वह व्यक्ति अदालत जा सकता है। सरकार का कोई भी अंग (विधायिका, कार्यपालिका या कोई अन्य सरकारी संस्थान) मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकता है। मौलिक अधिकारों के किसी भी प्रकार का उल्लंघन होने की स्थिति में कोई भी व्यक्ति जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल कर सकता है। जनहित याचिका एक हथियार है जिसकी मदद से कोई भी व्यक्ति अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। ऐसी स्थिति में उसे सीधा हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार है।
अधिकारों का बढ़ता दायरा
जब हमारा संविधान लिखा गया था तब से समय बहुत बदल चुका है। समय समय पर नये मौलिक अधिकारों की माँग उठती रही है। इनमें से कई माँगों को मौलिक अधिकारों के दायरे में शामिल भी किया गया है। जैसे हाल ही में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया है। इसी तरह सूचना के अधिकार (आरटीआई) को भी शामिल किया गया है। सूचना के अधिकार के अनुसार, अब कोई भी व्यक्ति सरकारी विभाग या सरकारी अधिकारी के कामकाज का ब्यौरा माँग सकता है। इस अधिकार के लागू होने के बाद से सरकारी विभागों में पारदर्शिता आई है।