पहनावे और सामाजिक इतिहास
NCERT अभ्यास
प्रश्न 1: अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
उत्तर: अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के कारण निम्नलिखित हैं:
- फ्रांसीसी क्रांति के कारण कम फैशनेबल कपड़े पहनने का प्रचलन बढ़ गया। जब महिलाओं ने वोटिंग राइट के लिए आंदोलन किया तो धीरे धीरे अमीर और गरीब महिलाओं के कपड़े एक जैसे दिखने लगे।
- औद्योगीकरण के दौर में भारत से छींट नामक कपड़ा यूरोप पहुँचा। छींट सस्ता था और रख रखाव में आसान था।
प्रश्न 2: फ्रांस के सम्प्चुअरी कानून क्या थे?
उत्तर: सम्प्चुअरी कानूनों से समाज के निचले तबके के लोगों के व्यवहार को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती थी। समाज के निचले तबके के लोगों को कई बातों की मनाही होती थी, जैसे कि विशेष कपड़े पहनना, विशेष भोजन, शराब और कुछ इलाकों में शिकार करना, आदि।
प्रश्न 3: यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फर्क बताइए।
उत्तर: यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच के दो अंतर नीचे दिए गए हैं।
पगड़ी और हैट: ये दोनों ही पोशाक सिर पर पहने जाते हैं। भारत में पगड़ी को सम्मान की निशानी समझा जाता है और किसी के सामने सिर पर से पगड़ी उतर जाने को लोग अपनी तौहीन समझते हैं। यूरोप के लोग जब किसी के आगे सम्मान जताते हैं तो अपना हैट उतारकर उस व्यक्ति को सम्मान जताते हैं।
जूते: भारतीय लोग पूजा के स्थल या घर या हैसियत में बड़े व्यक्ति के पास जाते हैं तो जूते उतार कर जाते हैं। यूरोप के लोग ऐसा नहीं करते हैं।
प्रश्न 4: 1805 में अंग्रेज अफसर बेंजमिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीजों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे।
अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े, मोटी छींट, मखमल, रेशमी कपड़े
बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गये होंगे और क्यों?
उत्तर: मखमल को बुनकर लोग अपने हाथों से बनाते थे। लेकिन जब मशीनों से कपड़े का उत्पादन होने लगा तो मखमल का उत्पादन लगभग समाप्त हो चुका था। इसलिए मखमल का प्रयोग बीसवीं सदी तक बंद हो चुका होगा। छींट सस्ती होती थी इसलिए उसका इस्तेमाल जारी रहा होगा। जनाना कपड़ों के नाम हो सकता है बदल चुके हों लेकिन आज भी कई पारंपरिक परिधान इस्तेमाल किए जा रहे हैं। अपनी अनूठी चमक और नजाकत के कारण रेशम काफी लोकप्रिय हुआ। आज भी रेशमी कपड़ों की अच्छी माँग है।
प्रश्न 5: उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर: काम के सिलसिले में पुरुष अक्सर घर से बाहर निकलते हैं और बाहरी दुनिया के सम्पर्क में रहते हैं। आज भी अधिकतर महिलाएँ घरों में रहती हैं और परिवार के पालन पोषण का काम करती हैं। इसलिए बाहरी दुनिया से महिलाओं का सम्पर्क कम ही रहता है। इसलिए उन्नीसवीं सदी में भारत में औरतें परंपरागत कपड़े पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे। इससे पता चलता है कि समाज में औरतों की स्थिति पुरुषों से कम ही थी।
प्रश्न 6: विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज्यादा कुछ नहीं हैं और ‘अधनंगे फकीर का दिखावा’ कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर: चर्चिल को महात्मा गांधी के प्रभाव के बारे में पता था। इसलिए उसने उन्हें राजद्रोही कहा यानि वह व्यक्ति जो अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ काम कर रहा हो। महात्मा गांधी वकालत भी करते थे। इंग्लैंड के कोर्ट में वकीलों के चार अलग अलग धड़े हैं, जिनमें से एक का नाम है मिडिल टेम्पल। इसलिए चर्चिल ने गांधी को राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील कहा था। चर्चिल को लगता था कि गांधीजी की अजीबोगरीब वेशभूषा महज दिखावा भर थी इसलिए उसने गांधी को अधनंगा फकीर कहा।
प्रश्न 7: समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधीजी का सपना भरतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा?
उत्तर: खादी का कपड़ा मोटा और रुखड़ा होता है। खादी महंगी होती है और इसका रखरखाव भी मुश्किल होता है। दूसरी तरफ इंग्लैंड की मिलों से बने कपड़े सस्ते होते थे और उनका रखरखाव आसान होता था। आम आदमी की इतनी हैसियत नहीं थी कि नियमित रूप से खादी पहन सके। इसलिए समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित रहा।