आधुनिक विश्व में चरवाहे
अफ्रिका के चरवाहे
दुनिया भर के चरवाहों की आधी से अधिक आबादी अफ्रिका में रहती है। आज भी 22 मिलियन से अधिक अफ्रिकी किसी न किसी रूप में इसी पेशे पर निर्भर हैं। अफ्रिका के कुछ चरवाहा समुदायों के नाम हैं बेडुइन, बर्बेर, मसाई, सोमाली, बोरान, और तुर्काना। इनमें से अधिकतर लोग अर्ध-शुष्क घास के मैदानों और शुष्क रेगिस्तानों में रहते हैं। ये लोग ऊँट, मवेशी, बकरी, भेड़ और गधे पालते हैं और दूध, माँस, जानवरों की खाल और ऊन बेचकर अपना गुजारा करते हैं। कुछ लोग व्यापार और यातायात संबंधी काम भी करते हैं। कई लोग चरवाही के साथ साथ खेती भी करते हैं। कुछ लोग अपनी कमाई बढ़ाने के खयाल से छोटे मोटे काम धंधे भी कर लेते हैं।
मसाई: ये मवेशी पालते हैं मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रिका में रहते हैं। केन्या में 300,000 मसाई रहते हैं और तंजानिया में 150,000.
उपनिवेशवाद का प्रभाव
उपनिवेशी शासन शुरु होने से पहले मसाई का इलाका उत्तरी केन्या से लेकर उत्तरी तंजानिया तक एक विशाल भूभाग में फैला हुआ था। जब यूरोप की उपनिवेशी शक्तियों के बीच झगड़े शुरु हुए तो उन्होंने उन्नीसवीं सदी के आखिर में अफ्रिकी महाद्वीप का आपस में बँटवारा कर लिया। इसके परिणामस्वरूप 1885 में मसाई का इलाका दो भागों में बँट गया। अब एक सीमा खींच दी गई जिससे ब्रिटिश केन्या और जर्मन तंजान्यिका अलग हो गये। प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों ने तंजान्यिका पर कब्जा कर लिया।
अब उपनिवेशी काल के पहले की तुलना में मसाई लोगों का 60% से अधिक हिस्सा उनके हाथ से चला गया। अब उन्हें ऐसे क्षेत्र पर निर्भर रहना था जहाँ खराब चरागाह वाला शुष्क भूभाग था और कभी कभार ही बारिश होती थी।
उन्नीसवीं सदी के आखिर में अंग्रेजी सरकार ने स्थानीय समुदायों को खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना शुरु किया। उपनिवेशी शासन से पहले मसाई लोग वहाँ के किसानों पर बीस ही पड़ते थे लेकिन अब स्थिति उलट चुकी थी।
चरागाह के बड़े हिस्से को शिकारगाह बना दिया गया, जैसे केन्या का मसाई मारा और साम्बूरू नेशनल पार्क और तंजानिया का सेरेंगेती पार्क। अब इन इलाकों में मसाई अपने पशुओं को लेकर नहीं जा सकते थे।
बंद रास्ते
उपनिवेशी शक्तियों द्वारा सीमाओं में फेरबदल होने के बाद चरवाहा समुदायों की गतिविधियों पर अंकुश लग चुका था। अब उन्हें कहीं जाने के लिए परमिट लेनी पड़ती थी, और परमिट लेना बहुत ही मुश्किल काम साबित होता था। नियम तोड़ने वाले को कड़ी सजा दी जाती थी। उन्हें श्वेत लोगों के बाजारों में जाने की अनुमति नहीं थी। यूरोपीय लोगों को लगता था कि मसाई लोग बर्बर और खतरनाक थे। इसलिए यूरोपीय लोग उनसे दूर रहना ही पसंद करते थे।
सूखते चरागाह
उपनिवेशी शासन से पहले चरवाहों के मौसमी भ्रमण के कारण उन्हें किसी भी इलाके में पड़ने वाले सूखे के दौर से निबटने में मदद मिलती थी। लेकिन अब सूखे के दौरान उनके मवेशी बड़ी संख्या में मारे जाते थे। 1930 में केन्या के मसाइयों के पास 720,000 मवेशी, 820,000 भेड़ और 171,000 गधे थे। लेकिन 1933 और 1934 के दो वर्षों के सूखे के बाद उनके आधे से अधिक पशु मर चुके थे।
मसाई समाज दो समूहों में बँटा हुआ था, वरिष्ठ जन (एल्डर्स) और योद्धा (वारियर्स)। वरिष्ठ जन शासन करते थे। वे समय समय पर अपनी सभा बुलाते थे जिसमें समुदाय के मुद्दों पर चर्चा होती थी और झगड़े सुलझाए जाते थे। युवक योद्धा का काम करते थे और कबीले की सुरक्षा की जिम्मेदारी उनपर होती थी। योद्धा अक्सर दूसरे कबीले पर हमला करके मवेशी चुराने का काम करते थे। चूँकि मवेशी ही उनकी असली संपत्ति थी इसलिए यह काम उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था। जब कोई युवक पहली बार मवेशी चुराकर लाता था तो इससे उसकी मर्दानगी साबित हो जाती थी।
अंग्रेजों ने मसाई समाज पर नियंत्रण के लिए कई कदम उठाये। मसाई के अलग अलग समूहों के मुखिया नियुक्त किये गये। अब हमले और युद्ध पर कई पाबंदियाँ लगा दी गईं। इससे वरिष्ठों और योद्धाओं के बीच के सत्ता का समीकरण खराब हो गया।
सरकार द्वारा नियुक्त मुखिया कुछ समय बीतने पर अच्छी खासी संपत्ति बना लेता था। इस धन से वह पशु, जमीन और अन्य सामान खरीद सकता था। वह अब जरूरत पड़ने पर कर्ज भी देता था। उनमें से कई लोग शहरों में रहने लगे और व्यापार करने लगे। इस तरह से मुखिया बहुत शक्तिशाली बन गया।
गरीब चरवाहों के पास इतने संसाधन नहीं थे कि बुरा वक्त निकाल पाएँ। उनमें से कई को रोजी रोटी की तलाश में शहर की ओर पलायन करना पड़ता था। अधिकतर को छोटे मोटे काम ही मिल पाते थे। कुछ किस्मतवालों को सड़क या भवन निर्माण में नियमित काम मिल पाता था।
इस तरह से मसाई समुदाय में अमीर और गरीब का भेद बढ़ने लगा।