संस्थाओं का कामकाज
प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद
प्रधानमंत्री का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है बल्कि वह अपने पद पर तब तक बने रह सकते हैं जब तक उन्हें लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं लेकिन वह अपनी मर्जी के अनुसार ऐसा नहीं कर सकते। राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करते हैं जिसकी लोकसभा में बहुमत साबित करने की संभावना सबसे अधिक होती है। उसके बाद प्रधानमंत्री अपनी मंत्रीपरिषद का गठन करते हैं।
मंत्रीपरिषद में विभिन्न रैंकों के 60 से 80 मंत्री होते हैं। मंत्रियों की रैंक इस प्रकार है।
(a) कैबिनेट मंत्री: अक्सर सत्तादल के शीर्ष नेताओं को कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है। उन्हें प्रमुख मंत्रालयों का भार दिया जाता है। परिषद में कैबिनेट मंत्रियों की संख्या लगभग 20 होती है।
(b) स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री: इन्हें अक्सर छोटे मंत्रालयों का भार दिया जाता है। ये केवल निमंत्रण मिलने पर ही कैबिनेट की बैठक में शामिल होते हैं।
(c) राज्य मंत्री: ये किसी कैबिनेट मंत्री के सहायक के रूप में काम करते हैं।
कैबिनेट मीटिंग: महत्वपूर्ण फैसले अक्सर कैबिनेट मीटिंग (मंत्रीपरिषद की बैठक) में लिए जाते हैं। इसलिए संसदीय लोकतंत्र को कैबिनेट वाली सरकार भी कहते हैं। हो सकता है कि मंत्रियों के अलग अलग विचार हों लेकिन कैबिनेट द्वारा लिये गये निर्णय की जिम्मेदारी हर मंत्री को लेनी होती है। कोई भी मंत्री कबिनेट के निर्णय की आलोचना नहीं कर सकता है।
कैबिनेट सेक्रेटेरियट: हर मंत्रालय में सचिव (सेक्रेटरी) होते हैं जो सिविल सर्विसेज से आते हैं। पूरी कैबिनेट को जरूरी सहायता देने के लिए कैबिनेट सेक्रेटेरियट होता है जिसमें कई अधिकारी होते हैं। ये अधिकारी काफी वरिष्ठ सिविल सर्वेंट होते हैं और विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल का काम करते हैं।
प्रधानमंत्री के अधिकार
- मंत्रीपरिषद की बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।
- प्रधानमंत्री विभिन्न विभागों के बीच तालमेल बिठाते हैं। दो या अधिक विभागों के बीच मतभेद होने की स्थिति में प्रधानमंत्री का निर्णय मान्य होता है।
- प्रधानमंत्री विभिन्न मंत्रालयों के कार्यों की निगरानी करते हैं। वह मंत्रियों के कार्यभार में फेरबदल भी कर सकते हैं। यदि प्रधानमंत्री इस्तीफा देते हैं तो पूरे मंत्रीमंडल को इस्तीफा देना होता है।
केंद्र सरकार में कांग्रेस पार्टी की मोनोपॉली के जमाने में प्रधानमंत्री काफी शक्तिशाली हुआ करते थे, जैसा की पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी के समय होता था। लेकिन बाद में गठबंधन की सरकारें बनने लगीं और स्थितियाँ बदल गईं। गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री को विविधता से भरे गठबंधन की बातों को मानना पड़ता है। प्रधानमंत्री को अपनी सरकार के लिए समर्थन बनाए रखने के उद्देश्य से अपने गठबंधन के दलों की भावनाओं का खयाल रखना पड़ता है।
राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्राध्यक्ष राष्ट्रपति होते हैं। सरकार का हर निर्णय राष्ट्रपति के नाम में लिया जाता है लेकिन राष्ट्रपति का पद केवल अलंकारिक है।
जब कोई बिल संसद से पास हो जाता है तो उस पर राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद ही वह कानून बन पाता है।
सरकार के हर महत्वपूर्ण निर्णय को लागू करने से पहले उसपर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना जरूरी है। सभी अंतर्राष्ट्रीय संधि समझौते राष्ट्रपति के नाम में ही बनाए जाते हैं।
नियुक्तियाँ: भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और निचली अदालतों के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा होती है। सभी अहम नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं। भारत के राष्ट्रपति यहाँ की सेनाओं के सुप्रीम कमांडर हैं।
जब किसी एक पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति यह निर्णय लेते हैं कि सरकार कौन बनायेगा। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति उस व्यक्ति को सरकार बनाने का न्यौता देते हैं जो उनकी नजर में सदन का बहुमत पाने की सबसे अधिक संभावना दिखाता हो। उसके बाद उस नये नियुक्त हुए प्रधानमंत्री को लोकसभा में बहुमत साबित करने के लिए एक निश्चित अवधि की मोहलत दी जाती है।
न्यायपालिका
किसी भी लोकतंत्र के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली न्यायपालिका महत्वपूर्ण होती है। भारत में एक एकीकृत न्यापालिका है जो सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालय और निचली अदालतों से मिलकर बना है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, देश में सर्वोच्च न्यायालय का स्थान सबसे ऊपर है और इसके निर्णय भारत के किसी भी अन्य न्यायालय में मान्य होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय इनमें से किसी भी मुद्दे की सुनवाई कर सकता है।
- देश के नागरिकों के बीच
- नागरिकों और सरकार के बीच
- दो या अधिक राज्य सरकारों के बीच
- केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच
स्वतंत्र न्यायपालिका की मुख्य भूमिका है संविधान द्वारा दिये गये मूलभूत अधिकारों की रक्षा करना। यदि केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा कोई ऐसा कानून पास होता है जो संविधान द्वारा दिये गये मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट को उस नियम को खारिज करने का अधिकार है। ऐसे कई मामले हुए हैं जब सरकार द्वारा पारित कानून के खिलाफ जनता ने मुकदमे किये थे। स्वतंत्र न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी सरकार तानाशाही रवैया नहीं अपना सकती।